सफलता की कहानियां और केस स्टडी

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सिंहास्रोत नदी में फूटे जलसोते
Posted on 09 Apr, 2011 11:04 AM चित्रकूट। बरगढ़ क्षेत्र में इस साल फिर सूखे की स्थिति है। यहां के अधिकांश कुएं, हैंडपंप तो सूख ही गए हैं, साथ ही नदियों का भी पानी खत्म हो गया है। जिसका असर फसलों पर भी पड़ा है और तमाम आदिवासी किसानों की फसल सूख गई है। ऐसे में बर्बादी की ओर बढ़ रहे छितैनी गाँव के किसानों ने बुंदेलखंड शांति सेना के साथ मिलकर नदी जागरण अभियान शुरू किया। और साफ कर डाली अपने गांव की सिंहास्रोत नदी, अब नदी में फिर से
अब के सिंघस्रोत नदी की एक झलक
आओ मूंडवा, पी लो पानी
Posted on 01 Apr, 2011 09:53 AM

हमारा शहर बड़ा नहीं है। पर ऐसा कोई छोटा-सा भी नहीं है। इस प्यारे से शहर का नाम है मूंडवा। यह राजस्थान के नागौर जिले में आता है। नागौर से अजमेर की ओर जाने वाली सड़क पर कोई 22 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में है यह मूंडवा। आबादी है कोई चौदह हजार। इसकी देखरेख बाकी छोटे-बड़े नगर की तरह ही एक नगर पालिका के माध्यम से की जाती है। शहर छोटा है पर उम्र में बड़ा है, काफी पुराना है। इसकी गवाही यहां की सुंदर हव

100 वर्ष पुराने तालाब का ग्रामीणों ने किया जीर्णोद्धार
Posted on 07 Mar, 2011 09:56 AM

चरखी दादरी, जागरण संवाद केंद्र : दादरी उपमंडल के गांव ऊण में 100 वर्ष पुराने पक्के तालाब के जीर्णोद्धार व उसकी सफाई के लिए ग्रामीणों ने श्रमदान कर सार्थक पहल की। ग्रामीणों ने 2 किलोमीटर लंबी पाइप लाइन नहर से तालाब तक जोड़कर स्वच्छ पानी भरने की व्यवस्था अपने स्तर पर की है। गांव ऊण के तालाब के जीर्णोद्धार, सफाई व इसमें लबालब स्वच्छ पानी भरने के बाद ग्रामीणों ने तालाब के किनारे यज्ञ का आयोजन कर बा

समुद समाया बूंद में
Posted on 06 Feb, 2011 08:53 AM एक जमाने की मशहूर साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग में कार्टून कोना डब्बूजी के रचनाकार एवं कई लोकप्रिय साहित्यिक कृतियों के रचयिता आबिद सुरती पिछले तीन साल से हर रविवार को सुबह नौ बजे अपने साथ एक प्लम्बर (नल ठीक करनेवाला) एवं एक महिला सहायक (चूंकि घरों में अक्सर महिलाएं ही दरवाजा खोलती हैं) लेकर निकलते हैं, और तब तक घर नहीं लौटते, जब तक किसी एक बहुमंजिला इमारत के सभी घरों के टपकते नलों की मरम्मत करवाकर उनका टपकना बंद नहीं करवा देते। मुंबई के पांचसितारा होटलों में अक्सर अजब-गजब चीजें देखने को मिल जाती हैं। ऐसा ही एक नजारा कुछ दिन पहले सामने आया, जब दुनिया में पानी बचाने की मुहिम चलानेवाली एक संस्था ने शाम को मीडिया के सामने अपना कारोबार पेश किया। कंपनी के कर्ता-धर्ताओं के साथ वहां सिनेमा जगत की मशहूर हस्तियां भी थीं, जो शायद भविष्य में जलसंरक्षण पर कोई फिल्म बनाकर आस्कर अवार्ड की किसी श्रेणी में नामित होने का स्वांग रचती दिखाई देंगी। हो सकता है, जल संरक्षण के नाम पर गंभीर प्रयास करने के एवज में उन्हें मैगसेसे या नोबल जैसे अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी नवाज दिया जाए। प्रेस कॉन्फ्रेंस के उपरोक्त स्वांग के बाद पांच सितारा संस्कृति के एक जरूरी रिति-रिवाज़ के रूप में लगभग
खेती में असली क्रांति
Posted on 05 Jan, 2011 09:26 AM


2010 तो इतिहास बनने जा रहा है। मैं सशंकित हूं कि क्या नया साल किसानों के लिए कोई उम्मीद जगाएगा? अनेक वर्षो से मैं नए साल से पहले प्रार्थना और उम्मीद करता हूं कि कम से कम यह साल तो किसानों के चेहरे पर मुस्कान लाएगा, किंतु दुर्भाग्य से ऐसा कभी नहीं हुआ।

green revolution
आंदोलन की अनोखी मुहिम
Posted on 01 Jan, 2011 09:07 AM
गढ़वाल मंडल के बारह हजार वर्ग किमी वन क्षेत्र में से ४.२ हजार में चीड़ के पेड़ हैं। गर्मियों में जंगल में लगने वाली आग को चीड़ के पेड़ तथा पिरूल बढ़ाने का काम करते हैं और हर साल आठ हजार वर्ग किमी मिश्रित वन क्षेत्र इस आग की चपेट में आ जाता है। चीड़ से सिर्फ यही नुकसान नहीं है, बल्कि इसने यहां के प्राकृतिक जल स्रोतों को भी सुखा दिया है। पहाड़ की जनता चिंतित है पर सरकार इसके समाधान से मुंह फेर
कोसी: स्नेह के स्पर्श से जी उठी
Posted on 30 Dec, 2010 12:54 PM

इंसानी करतूतों से पल-पल मरती कोसी के लिए उम्मीद की लौ करीब-करीब बुझ चुकी थी। कभी कोसी नदी की इठलाती-बलखाती लहरों में मात्र स्पंदन ही शेष था। यह तय था कि नदी को जीवनदान देना किसी के वश में नहीं। इन हालात में कोसी को संजीवनी देने का संकल्प लिया इलाके की मुट्ठीभर ग्रामीण महिलाओं ने। नतीजतन आज कोसी के आचल फिर लहरा रहा है। आसपास के इलाके में हरियाली लौट आई है।

लोगों ने दिखाई राह
Posted on 31 Dec, 2009 07:44 PM

सन् 2001 में फिर तीसरे साल गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश राज्य सूखे के प्रकोप में थे, लेकिन दाहोद आधारित एक गैर सरकारी संगठन `एन एम सदगुरु वाटर एण्ड डेवलपमेंट फाउंडेशन´(सदगुरु) बड़ी सूझबूझ से सूखा राहत कार्यक्रम चलाने में जुटा था। उन्होंने सामुदायिक जुड़ाव से अपने समेकित दृष्टिकोण का काफी बेहतर ढंग से क्रियान्वयन किया।
 

चित्तौड़ की जल परम्परा
Posted on 31 Dec, 2009 07:35 PM

सच पूछो तो राजस्थान की भौगोलिक परिस्थिति ने यहां के जनमानस को सैकड़ों साल पहले से ही यह सिखा दिया था कि अगर पानी का पुख्ता प्रबंध करना है तो इसके लिए वर्षा जल संग्रहण से बेहतर कोई उपाय नहीं हैं। और इसी सोच से इस पूरे इलाके में वर्षा जल संग्रहण की नायाब व्यवस्थाएं बनीं।

जल स्वराज अभियान के पहल-प्रयास
Posted on 31 Dec, 2009 07:24 PM पानी पर कार्यशाला

कानपुर आधारित एक गैर-सरकारी संगठन ‘इको फ्रेंड्स’ ने पानी के कई सवालों को लेकर 27-28 सितम्बर 2003 के बीच एक दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया, जिसमें कानपुर के 29 स्कूलों के 10वीं से लेकर 12वीं कक्षा तक के 80 से ज्यादा छात्रों के साथ-साथ अध्यापकों ने भी भाग लिया।

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