सफलता की कहानियां और केस स्टडी

Term Path Alias

/sub-categories/success-stories-and-case-studies

पत्थर पर दूध और धान की सफल खेती
Posted on 29 Jun, 2012 04:07 PM रासायनिक खादों के अंधाधुंध इस्तेमाल से पुणे जिले की खेतों का उर्वरा शक्ति खत्म हो गई थी। आज वहां के किसान लिफ्ट इरिगेशन की सहायता से अच्छी खेती कर रहे हैं। विश्वनाथ कभी ठेके पर मजदूर के तौर पर काम करते थे आज पुणे जिले में एक सफल किसान हैं और अपने घर में साल भर के लिए अनाज इकट्ठा करके और बाकी का अनाज गांव के लोगों को अच्छे दामों में बेच देते हैं। जिससे उनको अच्छी आमदनी होती है। संदीप खानेकर पॉल्
बिना सरकारी मदद के बनते शौचालय
Posted on 06 Jun, 2012 11:10 AM जहां एक तरफ हमारे ग्रामीण विकास मंत्री यह जानकर परेशान हैं कि भारत को खुला शौच मुक्त देश बनाने कि दिशा में धीमी प्रगति हुई है। वहीं कोलकाता के कमल कर ने बिना सरकारी मदद से लोगों को शौचालय मुहैया करा रहे हैं। देश में फोन धारकों और टीवी देखने वालों की संख्या में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई है तो संचार क्रांति के इसी असर को इस समस्या से लड़ने के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस समस्या
मौत के मुंह से बचे फौजी अफसर ने बदली एक गांव की तकदीर
Posted on 17 Apr, 2012 11:25 AM कर्नल डीके पिल्लई (दाएं से दूसरे) लांगदाईपबरम मेंमणिपुर के दूरदराज और दुर्गम गांव लांगदाईपबरम में पिछले हफ्ते जब जनता को आत्मावलंबी बनाने वाली एक परियोजना का उद्घाटन किया गया तो इसमें सेना के एक अधिकारी और गांव के बीच एक नए बंधन की नजीर पेश की। यह गांव राज्य के सबसे समस्याग्रस्त गांवों में है। अठारह साल पहले भारतीय सेना के युवा कैप्टन डीपीके पिल्लई लांगदाईपबरम में बागियों के खिलाफ एक फौजी दबिश के दौरान बुरी तरह घायल हो गए थे। यह 1994 की बात है।
कर्नल डीके पिल्लई (दाएं से दूसरे) लांगदाईपबरम में
पत्थरों पर खिलाए फूल
Posted on 06 Feb, 2012 11:50 AM

सहरसा के पटुआहा में बैंक की नौकरी छोड़कर वरुण सिंह ने डेयरी उद्योग लगाया है तथा वर्मी कम्पोस्ट का व्यावसायिक उत्पादन भी शुरू किया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें भी प्रोत्साहित किया। पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ गांवों की आर्थिक हालत में बेहतरी के लिए वैसे पेड़ लगाने का माहौल बनाया जा रहा है जो कम समय में बड़े होकर किसानों को अधिक पैसे देते हैं। मधेपुरा के सिंहेश्वर में निदान बायोटेक के संचालक सुधीर कुमार सिंह द्वारा आस्ट्रेलियन टीक के उत्पादन का प्रयोग मुख्यमंत्री को इतना पसंद आया कि उन्होंने अपने आवास पर भी लगाने का निर्देश दिए। यह पौधा पांच साल में लाखों रुपए देता है।

हौसला बुलंद हो तो बाधाओं के पहाड़ भी भरभरा कर गिर जाते हैं। दृढ़इच्छा शक्ति से नामुमकिन काम भी आसान हो जाता है, पसीना पत्थरों को पिघलाने में सफल होता है और तब खिलते हैं पत्थरों पर सुगंधित फूल। पहाड़- पुरुष के नाम से विख्यात गया के दशरथ मांझी ने गेहलौर पहाड़ी काटकर रास्ता बनाया था। बिहार ने उनके नाम पर दशरथ मांझी कौशल योजना चलाकर उनके इस जज्बे को सम्मान दिया।
बूँद-बूँद से सागर - तमिलनाडु: एक मिसाल
Posted on 01 Feb, 2012 11:55 AM

आई. आई. टी. में करीब 3000 छात्रों के लिए छात्रावास बनें हैं जिनके नाम भारत की प्रसिद्ध नदियों के ऊपर रखे गए हैं। पूरा कैम्पस करीब 650 एकड़ के विशाल हरे भरे प्रांगण में फैला हुआ है। उन्होंने आई. आई. टी की अपनी नियमित यात्रा के दौरान बड़ी विडंबनाओं को देखा, उनको पता चला कि हाल ही में हुई पानी की कमी के कारण संस्थान को दो महीनों के लिए बंद रखना पड़ा था। पर रामकृष्णन के द्वारा 'वर्षाजल संरक्षण' की तारीफ किये जाने के बाद छात्रावासों में धीरे-धीरे 'वर्षाजल संरक्षण संयंत्र' लगाया गया और इसका परिणाम है कि अब संस्थान को पहले की तरह पानी खरीदना नहीं पड़ता।

कहावत है बूँद-बूँद से सागर भरता है, यदि इस कहावत को अक्षरशः सत्य माना जाए तो छोटे-छोटे प्रयास एक दिन काफी बड़े समाधान में परिवर्तित हो सकते हैं। इसी तरह से पानी को बचाने के कुछ प्रयासों में एक उत्तम व नायाब तरीका है आकाश से बारिश के रूप में गिरे हुए पानी को बर्बाद होने से बचाना और उसका संरक्षण करना। शायद जमीनी नदियों को जोड़ने की अपेक्षा आकाश में बह रही गंगा को जोड़ना ज्यादा आसान है।
तस्वीर ही नहीं, बदल गई तकदीर भी
Posted on 30 Jan, 2012 01:01 PM

कृषि विभाग के सहायक निदेशक डॉ. अब्बास कहते हैं, ‘‘इन चारों गांवों में सौ फीसदी किसानों के खेतों में तालाब हैं चारों गांव में बने 400 से ज्यादा तालाबों के बनने से गांव में सबसे बड़ा बदलाव जैव विविधता में आया। तालाबों ने किसानों की तकदीर एवं गांव की तस्वीर बदल दी। उत्कृष्ट जैव विविधता, इतनी सुविधा एवं संपन्नता वाले गांव शायद ही कहीं दूसरी जगह हो।’’

जोश एवं जुनून के बेजोड़ संगम ने कुछ ऐसा कर दिखाया कि देवास जिले के एक नहीं, कई गांवों की तस्वीर एवं हजारों किसानों की तकदीर बदल गई। किसी गांव में सभी के पक्के मकान हो, आधे से ज्यादा के पास ट्रैक्टर हो, दर्जन भर से ज्यादा के पास टाटा सफारी सहित महंगी चार पहिया गाड़ी हो, दो पहिया गाड़ियों की संख्या घरों से ज्यादा हो, पानी की कोई समस्या नहीं हो और कुछ घरों में एसी भी लगी हो, तो यह विश्वास करना कठिन हो जाता है कि सचमुच में यह गांव ही है। पर इन सुविधाओं एवं संपन्नता वाला यह क्षेत्र टोंकखुर्द विकासखंड के धतूरिया, गोरवा, हरनावदा एवं निपानिया जैसे गांव ही हैं। इनके विकास से देश-दुनिया प्रभावित हुआ है। देश-विदेश की कई नामी संस्थाएं इनके विकास का अध्ययन कर रही हैं।

छन्ने ने बदली जिंदगी
Posted on 30 Dec, 2011 09:38 AM

इन फिल्टरों के लगने का सबसे अधिक फायदा महिलाओं को है। राज्य के अन्य भागों की तरह इन गांवों में महिलाओं की आबादी अधिक है, जिन्हें बरसात में पानी के लिए दूर-दूर भटकना पड़ता था लेकिन अब उन्हें साफ पानी घर के दरवाजे पर ही मिल रहा है। इससे न सिर्फ इनका स्वास्थ्य बेहतर हो रहा है बल्कि पानी को लेकर होने वाला श्रम भी घट गया है।

तीन गांवों में स्लो सैंड फिल्टर लगने से गंदे पानी की समस्या तो कम हुई ही, जलजनित बीमारियां भी कम हो गई हैं। उत्तराखंड में टिहरी गढ़वाल के चोपड़ियाली गांव की राजी देवी रावत इन दिनों बहुत खुश हैं। उनके गांव में जबसे स्लो सैंड फिल्टर लगा है, सभी परिवारों को गंदे पानी की समस्या से निजात मिल गई है। गांव में महिला मंगल दल की भी अध्यक्ष रावत का कहना है, “फिल्टर लगाए जाने के बाद गांव में पानी से फैलने वाली बीमारियां कम हो गई हैं।” ऐसी खुशी टिहरी के इंडवाल और साबली गांवों में भी दिखती है। तीनों गांवों में लगाए गए फिल्टरों से 188 परिवारों को फायदा मिल रहा है।
सामुदायिक वन प्रबंधन का अनूठा प्रयोग
Posted on 13 Dec, 2011 10:00 AM

गांव वालों के प्रयास से जंगलों को मिला नवजीवन


इस पंचायत में एक गांव है- कठारा। यह गांव मूलतः आदिवासियों का गांव है। आदिकाल से ही इनका जल, जंगल और जमीन से भावनात्मक लगाव रहा है। जल, जंगल और जमीन के प्रति गहरी आस्था उनकी परंपरा रही है। दरअसल जिरवा पंचायत के लोगों के लिए कठारा गांव के आदिवासी ही प्रेरणास्रोत बने। पंचायत के लोगों ने वनों के संरक्षण व संवर्धन की कला इन्हीं आदिवासियों से सीखी।

आधुनिकीकरण और औद्योगिकीकरण के नाम पर जिस तरह से जंगलों की अंधाधुंध कटाई हो रही है। उसका दुष्परिणाम हम सबके सामने है। जंगलों को बचाने के लिए कोई ठोस उपाय कारगर सिद्ध नहीं हो रहा है। ऐसे में झारखंड के चतरा स्थित सिमरिया के जिरवा पंचायत के लोगों ने तकरीबन पांच सौ हेक्टेयर क्षेत्र में जंगलों को पुनर्जीवित कर सामुदायिक वन प्रबंधन का अनूठा प्रयोग किया है। गांव वालों के प्रयास से यहां के जंगलों में सखुआ, आसन व चकोड़ी के हजारों वृक्ष अपने यौवन पर इतरा रहे हैं।
एक माह में बन गए 120 शौचालय
Posted on 30 Aug, 2011 04:30 PM

बीडीओ और अन्य अफसर आए तो अचरज से भर गए। लेकिन, योगेश और केशव निर्मल ग्राम पुरस्कार लेने नहीं गए। उस सरपंच को भेजा, जो राजनीतिक रंजिश में सारे कामों में पलीता लगाए हुए था। वह लौटा तो इस टीम का फैन बन गया। वह दिन था और आज का दिन है, गाँव में कोई गुट नहीं बचा।

किसी भी गाँव की साफ-सफाई में शौचालय का होना बेहद महत्त्वपूर्ण है। अगर गाँव वाले खुले में शौच करें तो गंदगी घर, शरीर और दिमाग में कब्ज़ा कर लेती है। वलनी तो आदर्श गाँव योजना में शामिल था। लेकिन, उसकी हालत भी दूसरे गाँव की तरह थी। लोग खुले में शौच करते। हमेशा बदबू आना गाँव का अभिशाप था। लेकिन, क्या हो सकता था? सब चाहते थे कि घर में ही शौचालय हो, पर सबसे बड़ी समस्या थी पानी का अभाव।

बरास्ता गाँधी, जीवन बदलता एक पानीदार गाँव
Posted on 30 Aug, 2011 02:52 PM

रहिमन कह गए हैं, बिन पानी सब सून...., नागपुर से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर एक गाँव ने पानी की महत्ता को कैसे समझा और स्वीकारा बता रहे हैं ….। इस बार वलनी के ग्राम तालाब की पार पर खड़ा हुआ तो दिल भर आया। हरे, मटमैले पानी पर हवा लहरें बनाती और इस किनारे से उस किनारे तक ले जाती। लगता दिल में भी हिलोरें उठ रही है। कहाँ था ऐसा तालाब ? जो था, वो सपनो में हीं था। सपने अगर सच हो जाएं तो दुनिया, दुनिया ना रह जाए।

<strong>मई माह में भी भरा पानी</strong>
×