पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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केन
Posted on 19 Feb, 2010 08:41 PM केन नदी बुन्देलखण्ड की जीवनदायिनी है। केन और सोन विन्ध्य कगारी प्रदेश की प्रमुख नदियाँ हैं। केन मध्यप्रदेश की एकमात्र ऐसी नदी है जो प्रदूषण मुक्त है। केन नदी मध्यप्रदेश की 15 प्रमुख नदियों में से एक है। इसका उद्गम मध्यप्रदेश के दमोह की भाण्डेर श्रेणी/कटनी जिले की भुवार गाँव के पास से हुआ है। पन्ना जिले के दक्षिणी क्षेत्र से प्रवेश करने के बाद केन नदी पन्ना औ
चेलना नदी
Posted on 19 Feb, 2010 08:21 PM पावा क्षेत्र जैन धर्मावलम्बियों का तीर्थ स्थल है। इसी क्षेत्र के दक्षिण, पश्चिम की ओर चेलना नदी बहती है। यह बेतवा की सहायक नदी है। चेलना आगे चलकर बेतवा में मिल जाती है। दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र पावा जी क्षेत्र से जैन मुनि को मोक्ष मिला था। यहाँ की पहाड़ी सिद्ध पहाड़ी कहलाती है। यह पहाड़ी चेलना नदी के किनारे स्थित है। यहां अनेक वेदियों वाला मन्दिर, मौसरा गुफा, मंदिर प्रांगण में मान स्तम्भ हैं। गुफ
बेतवा
Posted on 19 Feb, 2010 08:29 AM एक कवि ने नदियों के बारे में कहा है कि-

शुचि सोन केन बेतवा निर्मल जल धोता कटि सिर वक्ष स्थल,
पद रज को फिर श्रद्धापूर्वक धोता गंगा, यमुना का जल।
वनमालिन सुन्दर सुमनों से तुव रूप सँवारे ले विराम।

बेतवा प्राचीन नदियों में से एक मानी गयी है। बेतवा नदी घाटी की नागर सभ्यता लगभग पाँच हजार वर्ष पुरानी है। एक समय निश्चित ही बंगला की तरह इधर भी जरूर बेंत (संस्कृत में वेत्र) पैदा होता होगा, तभी तो नदी का नाम वेत्रवती पड़ा होगा। बेतवा तथा धसान बुन्देलखण्ड के पठार की प्रमुख नदियाँ हैं जिसमें बेतवा उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश की सीमा रेखा बनाती है। इसे बुन्देलखण्ड की गंगा भी कहा
नदियाँ
Posted on 18 Feb, 2010 05:12 PM

वे सभी जल धाराएँ जो भूमि पर स्वाभाविक रूप से बहती हैं, नदियाँ कहलाती हैं। नदियाँ निरंतर बहती रहें यह प्रकृति का नियम है। यह जल चक्र श्रृंखला का आवश्यक अंग है। नदी समुद्र में समाहित होती है। समुद्र का जल वाष्प बनकर पुनः वर्षा का रूप धारण करता है। और यह जल फिर समुद्र में मिल जाता है। नदियाँ पृथ्वी की ऊपरी सतह का व्यापक और विशिष्ट भौतिक रूप होती हैं। भूमि, ढाल और वर्षा से यह उत्पन्न होती हैं। नदिय

भूमि, जल, वन और हमारा  पर्यावरण 
Posted on 17 Feb, 2010 02:09 PM






देश की माटी, देश का जल
हवा देश की, देश के फल
सरस बनें, प्रभु सरस बनें!

देश के घर और देश के घाट
देश के वन और देश के बाट
सरल बनें, प्रभु सरल बनें !

देश के तन और देश के मन
देश के घर के भाई-बहन
विमल बनें प्रभु विमल बनें!


भूमि, जल. वन और हमारा  पर्यावरण
कानून की दृष्टि में जल प्रदूषण
Posted on 16 Feb, 2010 08:42 AM - जल प्रदूषण निवारण नियंत्रण अधिनियम, 1974
- जल प्रदूषण निवारण नियंत्रण के लिए बोर्ड
- राष्ट्रीय अधिकरण का गठन
- जल प्रदूषण निवारण नियंत्रण उपकर अधिनियम, 1977
- जल प्रदूषण निवारण नियंत्रण उपकर नियमावली, 1978
- प्रदूषण की रोकथाम तथा नियंत्रण जल अधिनियम, 1974

पर्यावरण प्रदूषण से संबंधित अन्य नियम-कानून


- पर्यावरण संरक्षण नियम, 1981
देश में जल की उपलब्धता
Posted on 16 Feb, 2010 08:28 AM -देश की 24 थालों में लगभग 1929-87 घन किलोमीटर जल संसाधन हैं। जिनमें से लगभग 690 घन कि.मी. सतही जल का ही इस्तेमाल किया जा सकता है।

-पुनः आपूर्ति किये जाने योग्य भूमिगत जल स्रोतों की क्षमता 432 घन किलोमीटर है।
जल
Posted on 16 Feb, 2010 08:15 AM पृथ्वी पर पहला जीव जल में ही उत्पन्न हुआ था। जल इस युग में अनमोल है। ऐसा नहीं है कि इसी युग में पानी की अत्यधिक महत्ता प्रतिपादित की गई है, वरन हर युग में पानी का अपना महत्व रहा है। तभी तो रहीम का यह पानीदार दोहा हर एक की जुबान पर आज तक जीवित है-

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।
सुरंगी रूत आई म्हारा देस
Posted on 15 Feb, 2010 12:01 PM


जल की काया
जल की माया
जल का सकल पसारा
कहत कबीर सुनों भई साधो
जल से कौन नियारा?


यह जल का समष्टि स्वरूप है। कबीलों से लेकर कबीर तक और कबीर से लेकर कांक्रीट तक हर वक्त और हर शख्स के लिए जल के इस स्वरूप को स्वीकारना एकमात्र विकल्प रहा होगा। जल का विकल्प जल ही है, और कुछ भी नहीं।

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लिफ्ट से पहले
Posted on 15 Feb, 2010 08:46 AM


25 सितम्बर 1988।
ग्राम छकतला।
विकासखंड सोण्डवा।

एक प्रशासनीक शिविर में झाबुआ जिले के सोण्डवा के जनपद अध्यक्ष श्री डेढू भाई ने एक प्रस्ताव रखाः ‘पास ही के गांव गेदा में स्टापडेम पर गुजरात राज्य की तरह यहां भी उद्वहन सिंचाई योजना शुरू की जाए।’

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