पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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या तो बोओ कपास औ ईख
Posted on 23 Mar, 2010 12:30 PM
या तो बोओ कपास औ ईख।
ना तो माँग के खाओ भीख।।


भावार्थ- घाघ का मानना है कि किसान को कपास और ईख की खेती अवश्य करनी चाहिए, जो ऐसा नहीं करते वे भीख मांगकर ही काम चलायेंगे।

मघा मारै पुरवा सँवारै
Posted on 23 Mar, 2010 12:28 PM
मघा मारै पुरवा सँवारै।
उत्तरा भर खेत निहारे।।


भावार्थ- यदि किसान मघा में जड़हन की बोवाई कर दे और पूर्वा भर देखभाल करे तो उत्तरा में उसका खेत हरा-भरा रहता है।

मकड़ी घासा पूरा जाला
Posted on 23 Mar, 2010 12:27 PM
मकड़ी घासा पूरा जाला।
बीज चने का भरि-भरि डाला।।


भावार्थ- जब मकड़ी घास पर जाला लगाने लगे तब चना बोना चाहिए।

मक्का जोन्हरी औ बजरी
Posted on 23 Mar, 2010 12:25 PM
मक्का जोन्हरी औ बजरी।
इनको बोवे कुछ बिड़री।।


भावार्थ- मक्का, जोन्हरी (ज्वार) और बाजरा को कुछ बीड़र अर्थात् कुछ दूर-दूर पर ही बोना चाहिए।

मारूँ हरनी तोडूँ कास
Posted on 23 Mar, 2010 12:22 PM
मारूँ हरनी तोडूँ कास।
बोऊँ उर्द हथिया की आस।।


भावार्थ- घाघ कहते हैं कि अगस्त नामक तारे के उदय की और कास में फूल लगने की चिन्ता छोड़कर हस्त नक्षत्र लगते ही उर्द बो देनी चाहिए।

बोबत बनै तो बोइयो
Posted on 23 Mar, 2010 12:20 PM
बोबत बनै तो बोइयो।
नहीं बरी बना कर खइयो।।


भावार्थ- उड़द को यदि बोते बने तभी बोना चाहिए अन्यथा बड़ी-बड़ा बना कर खा लेना चाहिए। व्यर्थ खेत में नहीं फेंकना चाहिए।

बुध वृहस्पति दो भलो
Posted on 23 Mar, 2010 12:19 PM
बुध वृहस्पति दो भलो, सुक्र न भले बखान।
रवि मंगल बौनी करै, द्वार न आवै धान।।


भावार्थ- बोवाई के लिए बुधवार और वृहस्पतिवार सबसे शुभ दिन होते हैं जबकि शुक्रवार अच्छा नहीं होता है और यदि किसान ने रविवार या मंगलवार को खेत की बोवाई की तो बीज भी लौट कर नहीं आता, ऐसा घाघ का मानना है।

बोओ गेहूँ काट कपास
Posted on 23 Mar, 2010 12:17 PM
बोओ गेहूँ काट कपास।
होवे न ढेला न होवे घास।।


भावार्थ- गेहूँ की बोवाई कपास को काटकर की जा सकती है किन्तु किसान को यह ध्यान रखना चाहिए की खेत में ढेले और घास न हों।

बुध बउनी
Posted on 23 Mar, 2010 12:16 PM
बुध बउनी।
सुक लउनी।।


भावार्थ- किसान को फसल की बोवाई बुध एवं कटाई शुक्र के दिन करनी चाहिए, ऐसा घाघ का मानना है।

बाड़ी में बाड़ी करै
Posted on 23 Mar, 2010 12:14 PM
बाड़ी में बाड़ी करै, करै ईख में ईख।
ये घर ओइसे जायँगे, सुनै पराई सीख।।


शब्दार्थ- बाड़ी-कपास। ओइसे-उसी प्रकार।

भावार्थ- जो कपास के खेत में पुनः कपास और ईख के खेत में दूसरे वर्ष भी ईख बोता है उसका घर वैसे ही नष्ट हो जाता है जैसे पराई सीख सुनने वाले का घर नष्ट हो जाता है।

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