पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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बूँदों में गाँधी दर्शन ‘बूंदों की मनुहार’
Posted on 27 Jan, 2010 06:16 PM भारत का लम्बा इतिहास इस बात का साक्षी है कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और संवर्द्धन की जिम्मेदारी समाज खुद ही वहन करते आया है। रियासतों का काल हो या लोकतांत्रिक सरकारों का दौर, ग्रामीण समाज अपने परिवेश के लिए सत्ता संस्थानों पर आश्रित नहीं रहते आया है। लेकिन पिछले कुछ वर्षो से समाज में यह धारणा घर करती गई कि जो कुछ भी करना है, सरकार ही करेगी। गाँव के काम को हम अपना काम क्यों समझे?
मालवा की गंगा-शिप्रा
Posted on 26 Jan, 2010 08:56 AM मालवा से प्रकट होकर मालवा में ही आत्मसमर्पित हो जाने वाली नदियों में शिप्रा का नाम अग्रणी है। मालवा के दणिक्ष में विन्ध्य की श्रेणियों के क्षेत्र से प्रकट होती है। शिप्रा और मालवा के मध्योत्तर में चम्बल में यह विलीन हो जाती है। यही नदीं वह तो प्राचीन पूर्व में कालीसिन्ध से उत्तर-पश्चिम में मन्दसौर और दक्षिण में नर्मदा तक व्यापक था। शिप्रा तो नर्मदा से पर्याप्त उत्तर में मालवा के पठार के दक्षिणी सि
बुरहानपुर की मुगलकालीन जलप्रदाय व्यवस्था
Posted on 25 Jan, 2010 05:41 PM मध्यकाल में भारत में कई शहरों का विकास हुआ जिनमें कुछ शहर प्रांतों की राजधानी थे, कुछ व्यापार या शिल्प के केन्द्र थे और कुछ सैनिक मह्त्त्व के शहर थे। इन विशाल शहरों में उस समय जलपदाय की कुशल व्यवस्था थी और उसके लिए प्राकृतिक नियमों और उस समय प्रचलित तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता था। मध्यप्रदेश को ही लें, तो पन्द्रहवीं और सोलहवीं सदी में माण्डू एक विशाल शहर था और वहाँ जलसंग्रहण की पारम्परिक व्यवस्थ
जल की मिथकीय अवधारणा
Posted on 25 Jan, 2010 09:40 AM
जब कुछ भी नहीं था, तब क्या था, यह प्रश्न हर किसी के मन में कौंध सकता है। तब शून्य था, कुछ भी नहीं था। अकाल था। न मिट्टी, न पानी, न हवा, न आकाश, न प्रकाश और न अंधकार तब स्थिति कैसी थी?
मालवा में रेगिस्तान
Posted on 20 Jan, 2010 02:39 PM भारतीय मनीषियों ने हजारों वर्षों से चिंतन– मनन के बाद जलसंचय की विश्वसनीय संरचनायें विकसित की थीं। यह सारी व्यवस्था समाजाधारित थी और इसके केन्द्र में था स्थानीय समुदाय। पिछली लगभग दो शताब्दियों के दौरान इस व्यवस्था की उपेक्षा कर हमारे यहाँ नई प्रणाली पर जोर दिया गया। जिसमें संरचना की परिकल्पना से लेकर उसके निर्माण एवं रखरखाव में समाज का कोई सरोकार नहीं होता है।
सम्पूर्ण जल प्रबंधन
Posted on 18 Jan, 2010 01:52 PM

धरती पर गिरने वाले वर्षा जल की प्रत्येक बूंद को रोका जा सकता है। बशर्ते इसके लिए संरचनाओं की ऐसी श्रृंखला तैयार कर दी जायें कि पानी की एक भी बूँद 10 मीटर से अधिक दूरी पर न बहने पायें। इसे कोई जल संरचना रोक ले और धरती में अवशोषित कर ले यही संपूर्ण जल प्रबंधन है। जलग्रहण का सिद्धांत है कि ‘पानी दौड़े नहीं, चले’ है, जबकि संपूर्ण जल प्रबंधन का सिद्धान्त है कि ‘पानी न दौड़े न चले, बल्कि रेंगे और अंत

Hydraulic structure
भाषा और पर्यावरण
Posted on 23 Oct, 2009 08:07 PM

किसी समाज का पर्यावरण पहले बिगड़ना शुरू होता है या उसकी भाषा- हम इसे समझकर संभल सकने के दौ

Language and environment
अकेले नहीं आता अकाल
Posted on 03 Oct, 2009 09:18 PM उत्तर भारत में जलस्तर 1.6 इंच तक गिर चुका है। यह अगस्त 2002 से अगस्त 2008 के बीच चार सेंटीमीटर सालाना की दर से गिरा। इस दौरान जलदायी स्तर से 26 घन मील से भी ज़्यादा भूजल उड़नछू हो गया। ऑर्गेनिक कृषि की तुलना में हरित क्रांति वाली रासायनिक खेती में 10 गुना ज़्यादा पानी का इस्तेमाल होता है।रासायनिक उर्वरक नाइट्रस ऑक्साइड नामक ग्रीनहाउस गैस का उत्पादन करते हैं, जो कार्बन डाईऑक्साइड की तुलना में 300 गुना ख़तरनाक है।सबसे सस्ती कारों के दौर में अब तक की सबसे महंगी दाल मिल रही है। मानसून की मेहरबानी कम रही, तो समूचे देश पर अकाल की काली छाया घिर आई है। अकाल से बहुत पहले अच्छे विचारों का अकाल पड़ने लगता है। अच्छी योजनाओं का अकाल और बुरी योजनाओं की बाढ़..

काल की पदचाप साफ़ सुनाई दे रही है और सारा देश चिंतित है। यह सच है कि अकाल कोई पहली बार नहीं आ रहा है, लेकिन इस अकाल में ऐसा कुछ होने वाला है, जो पहले कभी नहीं हुआ। देश में सबसे सस्ती कारों का वादा पूरा किया जा चुका है। कार के साथ ऐसे अन्य यंत्र-उपकरणों के दाम भी घटे हैं, जो 10 साल पहले बहुत सारे लोगों की पहुंच से दूर होते थे।
famine
आज भी खरे हैं तालाब
Posted on 26 Sep, 2009 08:10 PM

बुरा समय आ गया था।
भोपा होते तो जरूर बताते कि तालाबों के लिए बुरा समय आ गया था। जो सरस परंपराएं, मान्यताएं तालाब बनाती थीं, वे ही सूखने लगी थीं।
दूरी एक छोटा- सा शब्द है। लेकिन राज और समाज के बीच में इस शब्द के आने से समाज का कष्ट कितना बढ़ जाता है, इसका कोई हिसाब नहीं। फिर जब यह दूरी एक तालाब की नहीं, सात समुंदर की हो जाए तो बखान के लिए क्या रह जाता है?
प्रथम बुक्स की नयी पुस्तक कावेरी का विमोचन
Posted on 19 Sep, 2009 02:13 PM

नदी संरक्षण व जल बचाओ अभियान

बाल पुस्तक कावेरी के विमोचन के अवसर पर प्रथम बुक्स का निमंत्रण

हमारी महान नदियों की यात्रा का मुल्य पहचानिए और जल संरक्षण में अपना योगदान दीजिए।

यह सरल है जल संरक्षण पर दिए गए सुझाव पढ़िए। उनका अनुमोदन करते हुए प्रतिज्ञा कीजिए।

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