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स्वच्छता
स्वच्छ भारत का नारा साकार कैसे होगा
Posted on 04 Jan, 2016 01:29 PMआज लाखों रुपए पंचायतों व नगरों के चुनाव जीतने-जिताने पर खर्च किए जाते हैं, वोटें लेने के
खुले में शौच यानी बीमारियों को निमंत्रण
Posted on 29 Dec, 2015 09:35 AM भारत की आधी से अधिक आबादी खुले में शौच जाने को मजबूर है। इसके परिणामस्वरूप अनेक बीमारियां जिनमें उल्टी-दस्त प्रमुख हैं, बड़े पैमाने पर फैलती हैं, जिनकी परिणति कई बार मृत्यु पर ही होती है। सरकारी योजनाओं में शौचालय निर्माण की बात तो जोर-शोर से की जाती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर हमारे सामने रख रही है। दुनिया में सर्वाधिक लोग दूषित जल से होने वाली बीमारियों से पीड़ित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकड़े बताते हैं कि दुनिया में प्रतिवर्ष करीब 6 करोड़ लोग डायरिया से पीड़ित होते हैं, जिनमें से 40 लाख बच्चों की मौत हो जाती है। डायरिया और मौत की वजह प्रदूषित जल और गंदगी ही है। अनुमान है कि विकासशील देशों में होने वाली 80 प्रतिशत बीमारियां और एक तिहाई मौतों के लिए प्रदूषित जल का सेवन ही जिम्मेदार है। प्रत्येक व्यक्ति के रचनात्मक कार्यों में लगने वाले समय का लगभग दसवां हिस्सा जलजनित रोगों की भेंट चढ़ जाता है। यही वजह है कि विकासशील देशों में इन बीमारियों के नियंत्रण और अपनी रचनात्मक शक्ति को बरकरार रखने के लिए साफ-सफाई, स्वास्थ्य और पीने के साफ पानी की आपूर्ति पर ध्यान देना आवश्यक हो गया है। निश्चित तौर पर साफ पानी लोगों के स्वास्थ्य और रचनात्मकता को बढ़ावा देगा। कहा भी गया है कि सुरक्षित पेयजल की सुनिश्चितता जल जनित रोगों के नियंत्रण और रोकथाम की कुंजी है।सफाई अभियान का एकमात्र सूत्र - ‘देवालय से पहले शौचालय’
Posted on 26 Dec, 2015 01:06 PMसंकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठकर देखेंगे तो समझ आएगा कि जैसे मन्दिर में जाने से पहले शरीर को शौचालय जाकर साफ-सुथरा रखना हमारी प्राथमिकता होती है वैसे ही देश जैसे मन्दिर को हम गन्दा कैसे रख सकते हैं?
गाँवों में सफाई से हो शुरुआत
Posted on 26 Dec, 2015 12:32 PMगाँवों में विधायक, सांसद निधि से शौचालय बनाने और स्कूली स्तर पर जागरुकता कार्यक्रम चला जाना जरूरी है
बेंगलुरु की कूड़ा कथा
Posted on 14 Dec, 2015 11:38 AMमंडूर गाँव में अब एक जाँच केंद्र इस काम के लिये बनाया जाएगा जो हर क्षेत्र से कूड़ा लेकर आ
फ्लश टॉयलेट की गन्दगी बनाम सूखे शौचालयों की पवित्रता
Posted on 25 Nov, 2015 04:34 PM ‘हर घर में शौचालय अपना, यही है हमारा सपना’ का सरकारी नारा अक्सर सुनाई पड़ता है। सपने को साकार करने में विभिन्न सरकारें अपनी ओर से तत्पर भी हैं। पर अगर हर घर में शौचालय बन गए तो स्वच्छता के लिहाज से बहुत बुरा होगा क्योंकि प्रचलित ढंग के शौचालयों से मानव-मल का निपटारा नहीं होता।महज खुले में मल त्याग करने से छुटकारा मिल जाती है और शौचालयों में एकत्र मानवमल आखिरकार जलस्रोतों को मैला करता है। तकनीकी विकास के आधुनिक दौर में भी मानव मल का निपटारा एक बड़ी समस्या बना हुआ है। ऐसे में बरबस गाँधीजी की सीख ‘मल पर मिटटी’ की याद आती है। उस तकनीक के आधार पर बिहार के बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में खास किस्म के शौचालयों का विकास हुआ जिसके परिष्कृत रूप को ‘इकोसेन’ कहा जा सकता है।
सारे जहाँ से गन्दा
Posted on 20 Nov, 2015 02:10 PMमहान शायर इक़बाल आज होते तो अपनी नज्म की ऐसी दुर्गति पर सिर पीट लेते। भारत के एक पीछड़े, अर्थशास्त्रियों की भाषा में कहें तो बीमारू राज्य की राजधानी के सबसे गए गुजरे मोहल्ले का एकमात्र बौद्धिक व्यक्ति बौका अपने बाथरुम में जोर-जोर से गा रहा था :सारे जहाँ से गन्दा
है मोहल्ला हमारा
हम सब सुअर उसके
वो सूअरबाड़ा हमारा
कूड़ा है सबसे ऊँचा
पर्वत जैसा फैला
क्या आप जॉन स्नो को जानते हैं
Posted on 17 Nov, 2015 04:09 PMविश्व शौचालय दिवस, 19 नवम्बर 2015 पर विशेष
यह सच है कि जॉन स्नो इतने लोकप्रिय नहीं हैं कि उनके बारे में बगैर गूगल किये कोई बात की जाये लेकिन यह भी उतना ही सच है कि जन स्वास्थ्य और सार्वजनिक साफ-सफाई (शौचालयों समेत) को लेकर होने वाली कोई भी बात बगैर जॉन स्नो के पूरी नहीं हो सकती।
सन् 1813 में जन्मे ब्रिटिश चिकित्सक जॉन स्नो ही वह पहले व्यक्ति थे जिनके अध्ययनों ने दुनिया भर में पानी की व्यवस्था, शौचालयों की साफ-सफाई और जलजनित बीमारियों के बारे में पारम्परिक समझ को पूरी तरह बदल दिया।
कॉलरा (ऐसा डायरिया जो कुछ घंटों में जान भी ले सकता है) से उनकी पहली मुठभेड़ सन् 1831 में हुई जब वह न्यू कैसल के सर्जन विलियम हार्डकैसल के यहाँ प्रशिक्षु के रूप में काम कर रहे थे। सन् 1937 तक वह अपनी पढ़ाई खत्म कर वेस्टमिंस्टर हॉस्पिटल में नौकरी शुरू कर चुके थे। इस बीच सन् 1849 और 1854 में लन्दन पर दो बार कॉलरा का कहर बरपा जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की जानें गईं।