मानसून

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August 10, 2024 While citizens need to play their part to prevent diseases such as Zika, municipal bodies/urban area authorities need to pull their socks up and set right the poor governance mechanisms that are slowly turning cities into hotbeds of diseases, filth and mismanagement.
The Aedes aegypti mosquito, the culprit for causing Zika (Source: Wikimedia Commons)
चौमास की बारिश
Posted on 31 Aug, 2015 11:15 AM

बीड़ी का सुट्टा लगाते हुए मधिया देहरी पर बैठ गया। उसका मन भी बेचैन था। मधिया के चेहरे की बेचैनी

यहं सूखा, वहं बाढ़
Posted on 13 Aug, 2015 11:52 AM वर्ष-2015, भारत के लिये सूखा वर्ष है या बाढ़ वर्ष?

बाढ़ और सुखाड़ के दुष्प्रभावों के बढ़ाने में इंसानी हाथ को लेकर एक पहलू और है। घोषणा चाहे बाढ़ की हो या सुखाड़ की, तद्नुसार अपनी फसलों और किस्मों में बदलाव की सावधानी अभी ज्यादातर भारतीय किसानों की आदत नहीं बनी है। सुखद है कि पंजाब ने धान की एक तरफा रोपाई की जगह विविध फसल बोने का निर्णय लिया है। किन्तु कम वर्षा की घोषणा बावजूद, उत्तर प्रदेश और बिहार के किसानों ने इस वर्ष की धान की रोपाई में कोई कमी नहीं की। इस प्रश्न का कोई एक उत्तर नहीं हो सकता। अब तक हुई बारिश और आई बाढ़ के आधार पर एक भारतीय इसे ‘सूखा वर्ष’ कह रहा है, तो दूसरा ‘बाढ़ वर्ष’? एक जून, 2015 से 10 अगस्त, 2015 तक के आँकड़ों के मुताबिक देश के 355 जिलों में सामान्य से अधिक और 258 में सामान्य से कम बारिश हुई है। इस आधार पर वर्ष 2015 भारत के लिये अधिक वर्षा वर्ष है। एक जून से अगस्त प्रथम सप्ताह तक का राष्ट्रीय औसत देखें, तो वर्षा दीर्घावधि औसत से छह फीसदी कम रही। तय मानकों के मुताबिक, इसे आप सामान्य वर्षा की श्रेणी रख सकते हैं। इस आधार पर यह सामान्य वर्षा वर्ष है।

ग़ौरतलब है कि 1951-2000 का दीर्घावधि औसत 89 सेंटीमीटर है। किसी भी मानसून काल में यदि औसत, दीर्घावधि औसत का 96 से 104 फीसदी हो, तो सामान्य माना जाता है। यदि यह 90 से 96 फीसदी हो, तो सामान्य से कम और 90 फीसदी से कम हो, तो सूखे की स्थिति मानी जाती है और यदि यह 104 से 110 फीसदी हो, तो सामान्य से अधिक वर्षा मानी जाती है। 110 फीसदी से अधिक होने पर इसे अत्यधिक वर्षा की श्रेणी में माना जाता है।
drought
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी
Posted on 10 Aug, 2015 03:51 PM भारतीय परम्परा के अनुसार मूलतः छह ऋतुएँ होती हैं, पर मुख्यतः तीन
क्यों आती है बाढ़
Posted on 31 Jul, 2015 01:04 PM

सालों से वैज्ञानिक पर्यावरणीय खतरों को लेकर आगाह करते रहे हैं। दो दशक पहले रिमझिम बारिश का एक ल

Flood
उड़ती नदी, बहता बादल
Posted on 05 Jul, 2015 11:36 AM मेघ ही वे कहार हैं, जो नदी-नाले, गाड़-गधेरे और कुआँ-बावड़ी, ताल-तलैया- हर जलस्रोत में पानी भरते हैं। मेघ प्रति वर्ष यह काम सचमुच कश्मीर से कन्याकुमारी तक अथक करते हैं। मेघ बड़े बहादुर कहार हैं। ये खूब भारी डोली यानी सारा तरल वाष्प लेकर हजारों मील दूर से भारत की यात्रा केरल से शुरू करते हैं। हमारे यहाँ मानसून हिन्द महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से आता है। कभी-कभी मानसून जम्मू-कश्मीर की सीमाओं को पार कर पाकिस्तान होते हुए ईरान की ओर यात्रा पर चला जाता है, तो कभी पूर्वी सीमा पार कर जापान की ओर।

दिल्ली तक आते-आते ये मेघ लगभग पच्चीस सौ से चार हजार किलोमीटर की यात्रा कर चुके होते हैं। बूँद, बारिश, मेघ और मानसून के इस मिले-जुले खेल का रूप है वर्षाऋतु। प्रकृति ने धरती की सतह का दो-तिहाई भाग को समुद्र बनाया है। पानी की कोई कमी नहीं छोड़ी है। सूरज की तपस्या से, सूरज के तपने से समुद्र का पानी भाप बनता है। बूँद-बूँद भाप बनकर ऊपर उठती है और नीचे जो खारा समुद्र है, उसका कुछ अंश उठाकर आकाश में निर्मल जल का एक और सागर तैरा देती है।
rain
मानसून का बदलता मिजाज
Posted on 16 Jun, 2015 09:03 AM

देश में इस साल सूखा पड़ने की कोई सम्भावना नहीं है। मौसम वैज्ञानिकों के नए पूर्वानुमानों के अनुसा

मानसून की मोहताज अर्थव्यवस्था
Posted on 29 May, 2015 10:21 AM प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुनीता नारायण ठीक कहती हैं कि मानसून ही देश का ‘वित्त मन्त्री’ है। आज भी देश के 14 करोड़ से अधिक परिवार खेती पर निर्भर हैं। ज्यादा या कम बारिश की स्थिति इस देश के 60-70 करोड़ लोगों के जीवन को प्रभावित करती है। कमजोर मानसून या अति वर्षा दोनों में फसल का उत्पादन प्रभावित होता है। दोनों ही स्थितियों में किसान की आय घटती है। 60-70 करोड़ लोगों की आय घटने से पुरी अर्थव्यवस्था की
कैसे लौटेगा वो सावन
Posted on 07 Sep, 2014 04:17 PM जैसे योगेश्वर श्रीकृष्ण लोक कल्याण हेतु ब्रज तज कर चले गए, वैसे ही श्रीकृष्ण का आनंद पर्व कहा जाने वाला सावन आज ब्रजवासियों और उनके भक्तों की उपेक्षा के चलते कृष्ण की तरह ही अन्यत्र चला गया है। आज ब्रजवासी और उनके भक्त श्रीकृष्ण की तरह सावन के मेघों की बाट जोह रहे हैं। प्रकृति विरोधी आधुनिकता से पैदा हुई इस बेचैनी और व्याकुलता पर गंभीर चिंतन करने की जरूरत है। प्रकृति का महोत्सव कहा जाने वाला सा
आंकड़ों में छुपा है पानी
Posted on 01 Sep, 2014 01:04 PM महोबा के मदन सागर का प्रदूषित पानी बीमारियां बांट रहा है। बीते पांच
एक छोटे लड़के की कारस्तानी है कम वर्षा
Posted on 31 Aug, 2014 12:40 PM

मॉनसून के शुरुआती दिनों को अरब सागर की मॉनसून प्रणाली ‘नानुक’ प्रभावित करती है। मूसलाधार वर्षा

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