कृषि

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Meta Description
Agriculture, an important sector of our economy accounts for 14 per cent of the nation’s GDP and about 11 per cent of its exports. India has the second largest arable land base (159.7 million hectares) after US and largest gross irrigated area (88 milion hectares) in the world. Rice, wheat, cotton, oilseeds, jute, tea, sugarcane, milk and potatoes are the major agricultural commodities produced. More importantly, over 60 per cent of the country’s population, comprising several million small farming households, depends on agriculture as a principal income source and land continues to be the main asset for livelihood security. 
Meta Keywords
Flowers, trees
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रहट से ध्यान गया भटक
Posted on 12 Jan, 2011 10:29 AM रहट सिंचाई तकनीक के नाम से शायद अब अधिकांश लोग वाकिफ भी नहीं रहे होंगे। इस सिंचाई तकनीक से किसान जहां पर्यावरण का संरक्षण करते थे वहीं बिजली और डीजल की बचत भी होती थी। वर्तमान में बदलती तकनीक और विकास की इस रफ्तार में किसानों को भी पुरानी परंपराओं को बदलने के लिए मजबूर कर दिया है। अति सरल और किफायती तकनीक को इस्तेमाल करने में किसान अब बोझ समझने लगे हैं।
खेती में असली क्रांति
Posted on 05 Jan, 2011 09:26 AM


2010 तो इतिहास बनने जा रहा है। मैं सशंकित हूं कि क्या नया साल किसानों के लिए कोई उम्मीद जगाएगा? अनेक वर्षो से मैं नए साल से पहले प्रार्थना और उम्मीद करता हूं कि कम से कम यह साल तो किसानों के चेहरे पर मुस्कान लाएगा, किंतु दुर्भाग्य से ऐसा कभी नहीं हुआ।

green revolution
बूंद—बूंद में बरकत
Posted on 14 Oct, 2010 03:10 PM


पश्चिमी महाराष्ट्र में पहाडियों के बीच बसे जलगांव के किसान टपक सिंचाई और कॉन्टै्रक्ट फार्मिग के जरिए दो से तीन गुना उत्पादन बढाने में कामयाब हुए हैं। 'मोर क्रॉप, पर ड्रॉप' पर आधारित तकनीक ने किसानों और कृषि व्यवसाय को नई दिशा दी है।

जैविक खेतीः सफलता की कहानी किसानों की जुबानी
Posted on 11 Oct, 2010 09:58 AM
एक बहुत पुराना नुस्खा है, जब समस्या बहुत बढ़ जाए तो मूल की ओर लौटो। आज देश में किसानों के आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं ने साफ कर दिया है कि अब व़क्त मूल की ओर लौटने का है। इसका अर्थ यह है कि खेती तब भी होती थी, जब रासायनिक खाद और ज़हरीले कीटनाशक उपलब्ध नहीं थे। तब गोबर किसानों के लिए बेहतर खाद का काम करता था। नीम और हल्दी उनके लिए प्रभावी कीटनाशक थी, लेकिन बदलते व़क्त के साथ जैसे-जैसे रासायनिक खाद
जल संकट के समाधान की राह
Posted on 21 Sep, 2010 09:03 AM
हरित क्रांति के दिनों यानी 1960 के दशक के मध्य से ही पंजाब के गेहूं और चावल के खेत भारतीयों के पेट भर रहे हैं। लेकिन भारत के जल संसाधनों को सुखाए बिना इन फसलों के लिए पानी उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती है। भारत और अमेरिका के कृषि विज्ञानी और अध्येता मिलकर इसी चुनौती के समाधान में जुटे हैं।
कटे डंठलों की नमी से जुड़ना
Posted on 13 Aug, 2010 09:41 AM

जोबनेर में अंग्रेजी राज के समय ही कृषि की आधुनिक पढ़ाई की शुरूआत हो गई थी। वहां की रियासत के राजा ने, ठिकानेदार ने अपने एक महल को कृषि महाविद्यालय खोलने के लिए दान में दिया था। आजादी के बाद यहां आधुनिक कृषि शिक्षा का विस्तार हुआ। आज इस क्षेत्र से न जाने कितनी तरह के शोध होते हैं। पर किसान के इस कौशल की ओर हमारे नए कृषि पंडितों का अधिकारियों का, किसी का भी ध्यान नहीं जा पाया है।

पिछले साल इन्हीं दिनों की बात है। हम लोग राजस्थान के जोबनेर क्षेत्र से निकल रहे थे। सड़क के दोनों तरफ खेतों में गेहूं कट चुका था। अभी पूले खलियान में नहीं पहुंचे थे। सारा दृश्य वही तो था जो बैसाखी के आसपास गेहूं के खेतों से गुजरते हुए दिखता था।

नहीं। सारा दृश्य वैसा नहीं था। यहां खेतों में कुछ नया-सा, कुछ अटपटा-सा दिख रहा था। और जगहों से कुछ ज्यादा व्यवस्थित, कुछ अलग, कुछ विचित्र सुंदरता लिए। हमारी गाड़ी थोड़ी तेज रफ्तार से भाग रही थी। फिर भी जोबनेर के इन खेतों की कोई एक अलग विशेषता हमारी आंखों को ब्रेक-सा लगा रही थी। यहां केवल गेहूं नहीं था। यहां तो कनक यानी सोना बिखरा हुआ था, चारों तरफ। इस सोने के भंडार का आकर्षण, खिंचाव इतना तेज था
wheat crop
खुशहाली की भगीरथी बहा रही है माही
Posted on 17 Jul, 2010 10:51 AM
देश में हरित क्रान्ति की श्रृंखला में माही बजाज सागर परियोजना एक अनमोल कड़ी है। विश्व की बडी नदियों ने कई प्राचीन सभ्यताओं को जन्म दिया है किन्तु वागड प्रदेश में बहने वाली गंगा रूपी माही नदी ने एक ऎसी आधुनिक सभ्यता को जन्म दिया जो आदिवासियों के उत्थान की गाथा तो कहती ही है, क्षेत्र के विकास का संगीत भी सुना रही है।
कीड़ों की मौत मरते पंजाब के किसान
Posted on 01 May, 2010 02:35 PM
कीटनाशकों की वजह से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कुप्रभावों के संबंध में ठोस वैज्ञानिक साक्ष्यों ने पंजाब सरकार को कैंसर के मामलों के पंजीकरण हेतु मजबूर कर दिया है। इस संबंध में पूर्व में जारी अनेक रिपोर्टों के अलावा दो ताजा रपटों ने भी राज्य में इससे मानव स्वास्थ्य की बिगड़ती स्थिति को उजागर किया है। पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला द्वारा कराए गए एक अध्ययन में कीटनाशकों की वजह से किसानों के डी.एन.
कर्ज और जहर के बगैर खेती
Posted on 14 Apr, 2010 09:39 AM

आज खेती के लिये किसान को हर चीज खरीदनी पड़ती है। इसलिये वह कर्ज में दबा रहता है। इसके साथ-साथ उसे हर बार पहले से ज्यादा (रासायनिक) खाद और दवाइयों का प्रयोग करना पड़ता है। परन्तु उपज की मात्रा और कीमत का कोई भरोसा नहीं रहता। दूसरी ओर उपज की गुणवत्ता भी घट रही है। बीमारियाँ बढ़ रही हैं। पानी, मिट्टी और यहाँ तक कि माँ के दूध में भी जहर के अंश पाये गये हैं। आम तौर पर औरतें तो शराब और सिगरेट नहीं पीतीं पर उनमें भी कैंसर बढ़ रहा है। इसका एक कारण (लेकिन एकमात्र नहीं) खेती में प्रयोग होने वाले जहर है। क्या इस का कोई विकल्प हो सकता है? क्या कर्ज और जहर के बगैर खेती हो सकती है?

भोजन हम सब की जरूरत है। इस के साथ-साथ अगर खेती स्वावलंबी हो जाती है, किसान को बाहर से कुछ खरीदने की जरूरत नहीं रहती, छोटी जोत वाला किसान भी आजीविका कमा-खा सकता है, पूरे साल खेत में काम रहता है, तो हमारे खाने के लिए स्वस्थ भोजन उपलब्ध होने के साथ-साथ, गाँवों और पूरे समाज की दशा और दिशा ही बदल जायेगी। पर्यावरण संकट में भी कुछ कमी होगी।

agriculture
खेत का पानी खेत में
Posted on 19 Jan, 2010 01:30 PM

देश में मध्यवर्ती भाग विशेष कर मध्यप्रदेश के मालवा, निमाड़, बुन्देलखण्ड, ग्वालियर, राजस्थान का कोटा, उदयपुर, गुजरात का सौराष्ट्र, कच्छ, व महाराष्ट्र के मराठवाड़ा, विदर्भ व खानदेश में वर्ष 2000-2001 से 2002-2003 में सामान्य से 40-60 प्रतिशत वर्षा हुई है। सामान्य से कम वर्षा व अगस्त सितंबर माह से अवर्षा के कारण, क्षेत्र की कई नदियों में सामान्य से कम जल प्रवाह देखने में आया तथा अधिकतर कुएं और ट्य

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