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अनुपम मिश्र ने अपनी किताब आज भी खरे है तालाब में लिखा था कि सैकड़ों, हजारों तालाब अचानक शून्य से प्रगट नहीं हुए थे। इनके पीछे एक इकाई थी बनवाने वालों की, तो दहाई थी बनाने वालों की। यह इकाई दहाई मिलकर सैंकड़ा हजार बनती थी।
समुद्र के किनारे लगा प्लास्टिक के कचरे का ढेर।