There is a need for a multi-faceted approach to disaster management, combining advanced monitoring, early warning systems, community preparedness, and sustainable land use practices to mitigate future risks.
एक अध्ययन से पता चलता है कि समुद्री लू या हीटवेव (असामान्य रूप से उच्च समुद्री तापमान की अवधि) जो पहले हर साल लगभग 20 दिनों तक होती थी (1970-2000 के बीच), वह बढ़कर 220 से 250 दिन प्रति वर्ष हो सकती है। जानिए क्या होंगे इसके परिणाम?
Posted on 01 Jul, 2013 03:31 PM कोई सात हजार वर्ष पुरानी बात है, हमारे ग्रह पर तब हिमयुग समाप्त हुआ ही था, मानव ने खुलकर धूप सेंकना शुरू किया था। इसी धूप से जन्मी प्रकृति या फिर कहें आधुनिक जलवायु। हमने इस जलवायु चक्र की गतिशीलता, सुबह-शाम, मौसम सबका हिसाब बरसों से दर्ज कर रखा है। सदियों से शांत अपनी जगह पर खड़े वृक्षों के तनों की वलयें, ध्रुवों पर जमी बर्फ, समंदर की अतल गहराइयों में जमी मूंगें की चट्टानें सब हमारे बहीखाते हैं। मगर न जाने कैसे यह चक्र गडबड़ाने लगा जनवरी-फरवरी सर्दी, मार्च से मई तक गर्मी, जून से सितंबर तक बारिश, अब नहीं रहती। पता ही नहीं चलता कब कौन सा मौसम आ जाए। कुछ-कुछ हरा, कुछ ज्यादा नीला, कहीं से भूरा और कहीं-कहीं से सफेद रंग में रंगा जो ग्रह अंतरिक्ष से दिखता है, वह पृथ्वी है। मिट्टी, पानी, बर्फ और वनस्पतियों से रंगी अपनी पृथ्वी। यहां माटी में उगते-पनपते पौधे, सूर्य की किरणों से भोजन बनाते हैं और जीवन बांटते हैं। इन पर निर्भर हैं हम सभी प्राणी, यानी जीव-जंतु और मानव। इस धरती का हवा-पानी और प्रकाश, हम सब साझा करते हैं। हम सब मिलकर एक तंत्र बनाते हैं। लेकिन कुछ समय से सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। पिछले कुछ वर्षों से हमारी धरती तेजी से गर्म हो रही है। पिछले कुछ वर्षों से हमारी धरती तेजी से गर्म हो रही है, मौसम बदल रहे हैं, बर्फ पिघल रही हैं, समंदर में पानी बढ़ रहा है और वो तेजी से जमीन को निगलता जा रहा है। कुल मिलाकर हम सभी का अस्तित्व खतरे में है। धरती के गर्म होने की रफ्तार इतनी ज्यादा है कि कुछ वर्षों बाद आप अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखेंगे तो या तो वहां सेहरा देखेंगे या फिर समंदर।
Posted on 09 Jun, 2013 02:24 PMजंगल की रक्षा एवं प्रबंधन में ग्रामीण, पंचायत और सरकार-तीनों की महत्वपूर्ण भूमिका है। जंगल को लेकर अगर इन तीनों स्तरों पर समझदारी और समन्वय बन जाए तो वन और वनावरण के सवाल पर एक व्यापक बदलाव हो सकता है। वन का सवाल एक बहुआयामी सवाल है और यह जलवायु एवं पर्यावरणीय संकटों से घिरे आज के समय का अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा है। जंगल एक ऐसा मुद्दा है जो जल, जीवन, जीविका, कृषि, जैवविविधता, संस्कृति, स्वास्थ्य,
Posted on 11 Apr, 2013 10:26 AMबुंदेलखंड आने वाले कल की भयावह तस्वीर आज हमारे सामने लाकर हमें चेताने का प्रयास कर रहा है, लेकिन हम यक्ष द्वारा युधिष्ठिर से पूछे गए प्रश्न कि दुनिया का सबसे बढ़ा आश्चर्य क्या है कि उत्तर को ही यथार्थ मान बैठे हैं कि सब कुछ नष्ट हो जाएगा तब भी हम बचे रहेंगे। इस दिवास्वप्न को झकझोरने की कोशिश लगातार जारी है, लेकिन शुतुरमुर्ग की मानसिकता हम सब में समा गई है।एक बड़ा सवाल है कि बुंदेलखंड में क्या वास्तव में जलवायु परिवर्तन ने दस्तक दे दी है? कुछ शोध और अध्ययन सामने आए हैं जो कहते हैं कि कहीं कुछ गर्म हो रहा है और जिसके चलते ज़मीन पर भी कुछ असर दिखने लगा है। युनाइटेड नेशंस इंस्टीट्यूट फॉर ट्रेनिंग एंड रिसर्च (संयुक्त राष्ट्र प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान) के अनुसार इस सदी के अंत तक बुंदेलखंड का तापमान 2 से 3.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। डेवलपमेंट आल्टरनेटिव की रिपोर्ट के अनुसार सन् 2030 तक ही बुंदेलखंड में तापमान बढ़कर 1.5 डिग्री तक बढ़ जाएगा। वहीं पुणे स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मिटियॉरलजी (भारतीय उष्ण देशीय मौसम विज्ञान संस्थान) के मुताबिक बुंदेलखंड अंचल में शीतकालीन वाष्पीकरण घटकर 50 फीसदी से भी कम रह जाएगा। ऐसी स्थिति में खरीफ की फसल को नुकसान होगा और ज़मीन पैदावार भी कम देगी। शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से हो रहा है। इसके चलते अरब सागर के ऊपर का तापमान बढ़ रहा है।
Posted on 13 Feb, 2013 10:15 AMकार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज-सीसीएस को जलवायु परिवर्तन दुरुस्त करने के उपकरण के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। नार्वे, जर्मनी, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे तेल और कोयले पर निर्भर देश कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए सीसीएस को अचूक रामबाण दवा मान रहे हैं। इस तकनीक के तहत कार्बन उत्सर्जन को परित्यक्त खदानों, गैस या तेल के खदानों या समुद्र की तलहटी में कार्बन को जमा किया जाएगा। अभी यह सब कुछ