सफलता की कहानियां और केस स्टडी

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परंपरागत जल संसाधनों का संरक्षण
Posted on 04 Apr, 2013 09:18 AM जब सूखा पड़ा तो लोगों को अपने परंपरागत जल संसाधनों की याद आई और उन्होंने अपने यहां बंद पड़े कुओं की सफाई का काम कर न सिर्फ तात्कालिक तौर पर जल हासिल किया वरन दूरगामी परिणाम के रूप में गांव का जल स्तर भी बढ़ा।

संदर्भ


बुंदेलखंड में चार-पांच वर्षों की अनियमित तथा कम होने वाली वर्षा के कारण अकाल जैसी स्थिति उत्पन्न होने के पीछे सिर्फ प्राकृतिक कारक ही नहीं जिम्मेदार थे। मानवीय हस्तक्षेपों ने इस स्थिति को और भी भयावह बना दिया जब जल संरक्षण के प्राकृतिक स्रोतों को मानव बंद करना प्रारम्भ कर दिया। बुंदेलखंड सदैव से ही कम पानी वाला क्षेत्र रहा है, परंतु वहां पर जल संरक्षण के प्राकृतिक स्रोत जैसे कुएँ, तालाब आदि इतने अधिक थे कि पानी की कमी बहुत अधिक नहीं खलती थी। धीरे-धीरे विकासानुक्रम में लोगों ने इन कुओं, तालाबों को पाटना शुरू कर दिया। कहीं तो पाटने की यह क्रिया नियोजित थी और कहीं पर समुचित देख-रेख के अभाव में ये मूल स्रोत स्वयं ही पटने लगे और स्थिति की भयावहता बढ़ने लगी। जनपद हमीरपुर के विकास खंड सुमेरपुर के गांव इंगोहटा एवं मौदहा विकास खंड के ग्राम अरतरा, मकरांव, पाटनपूर में लोगों को इन्हीं स्थितियों का सामना करना पड़ा। तब लोगों की चेतना जगी कि यदि हम अपने परंपरागत काम को सुचारु रखते और समय-समय पर उनकी देख-भाल करते तो स्थिति इतनी न बिगड़ती और तब उन्होंने तालाबों, कुओं की खुदाई व गहराई का काम करना प्रारम्भ कर दिया।
जल संरक्षण से सूखे का मुकाबला
Posted on 03 Apr, 2013 12:43 PM सूखे की स्थितियों से निपटने के लिए समुदाय की सामूहिक रणनीति के तहत जल संरक्षण की गतिविधि बेहतर साबित हुई जिससे न सिर्फ सिंचाई की समस्या हल हुई वरन भयंकर गर्मी में पशुओं की प्यास भी बुझी।

संदर्भ


जनपद महोबा के विकास खंड कबरई में अत्यंत पिछड़ा व दुर्गम रास्ते वाला गांव चकरिया नाला के दोनों तरफ बसा हुआ है। जिला मुख्यालय व महोबा कानपुर रोड से लगभग 7 किमी. की दूरी पर उत्तर व पश्चिम के बीच यह गांव स्थित है, जो महोबा-कानपुर रोड से एक पक्के सम्पर्क मार्ग के द्वारा जुड़ा हुआ है। 2555 लोगों की आबादी वाले इस गांव की आजीविका का मुख्य साधन कृषि है। कृषिगत भूमि का रकबा लगभग 2400 एकड़ है, जिसमें से केवल 100 एकड़ ज़मीन सिंचित है। यहां पर सिंचाई के साधनों में व्यक्तिगत कुआं ही हैं। कुल कृषि योग्य भूमि में से 1100 भूमि राकड़ है, जो ढालू तथा उबड़-खाबड़ है। ढलान की स्थिति यह है कि कहीं-कहीं पर खेत का ढाल 1 मीटर तक है। अतः यहां पर बरसात का पानी रुकता नहीं है। मात्र 200 एकड़ ज़मीन ही समतल व उपजाऊ किस्म की है।
सामुदायिक तालाब पुनः निर्माण
Posted on 03 Apr, 2013 12:39 PM बुंदेलखंड पारंपरिक रूप से तालाबों का क्षेत्र रहा है और यही तालाब वहां पर पानी की उपलब्धता बनाए रखने में सक्षम थे। गलत तरीके से इनका अतिक्रमण और बचे हुए तालाबों से भी गाद न निकलने से पानी की समस्या बढ़ी। ऐसे में समुदाय द्वारा तालाबों का गहरीकरण करना क्षेत्र के लिए काफी उपयोगी रहा।

संदर्भ

एक निर्मल कथा
Posted on 04 Mar, 2013 10:41 AM
हमारे दूसरे शहरों की तरह कोलकाता अपना मैला सीधे किसी नदी में नहीं उंडेलता। शहर के पूर्व में कोई 30 हजार एकड़ में फैले कुछ उथले तालाब और खेत इसे ग्रहण करते हैं और इसके मैल से मछली, धान और सब्जी उगाते हैं। यह वापस शहर में बिकती है। इस तरह साफ हो चुका पानी एक छोटी नदी से होता हुआ बंगाल की खाड़ी में विसर्जित हो जाता है। हुगली नदी के साथ कोलकाता वह नहीं करता जो दिल्ली शहर यमुना के साथ करता है या कानपुर और बनारस गंगा के साथ। इस अद्भुत कहानी को समझने का किस्सा बता रहे हैं एक सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी, जिनके कई सालों के प्रयास से यह व्यवस्था आज भी बची हुई है।

कोलकाता शहर को इतनी सेवाएं मुफ्त मिल रही हैं। अगर शहर ढेर-सा रुपया खर्च कर यह सब करने के आधुनिक संयंत्र लगा भी ले तो उनका क्या हश्र होगा? जानना हो तो राजधानी दिल्ली के सीवर ट्रीटमेंट संयंत्रों को देख लें। बेहद खर्चीले यंत्रों का कुछ लाभ है, प्रभाव है- इसे समझना हो तो यमुना नदी का पानी जांच लें।
गोचर का प्रसाद बांटता लापोड़िया-भाग 1
कोई भी समाज शून्य में जीवित नहीं रह सकता। उसे अपने लोगों, अपने पशुओं, अपनी जमीन, अपने पेड़ पौधों, अपने कुएं, अपने तालाबों, अपने खेतों के लिए कोई न कोई ऐसी व्यवस्था बनानी पड़ती है, जो समयसिद्ध और स्वयंसिद्ध हो। काल के किसी खंड विशेष में समाज के सभी सदस्यों के साथ मिल-जुलकर जो व्यवस्था बनती है Posted on 14 Nov, 2012 09:23 AM

अनुपम जी द्वारा लिखी ‘गोचर का प्रसाद बांटता लापोड़िया’ पुस्तिका की मूल प्रति यहां पीडीएफ के रूप में संलग्न है। पूरी किताब पढ़ने के लिए इसे डाउनलोड कर सकते हैं।



जयपुर अजमेर रोड पर स्थित एक छोटा से गांव लापोड़िया ने तालाबों के साथ-साथ अपना गोचर भी बचाया और इन दोनों ने मिलकर यानि तालाब और गोचर ने लापोड़िया को बचा लिया। आज गांव की प्यास बुझ चुकी है। छः-छः साल के अकाल के बाद भी लापोड़िया की संतुष्ट धरती में हर तरफ हरियाली होती है।

चौका
अब मरुधरा में छलकेगा अमृत
Posted on 02 Nov, 2012 03:30 PM राजस्थान में जहां पारंपरिक जलस्रोतों का जीर्णोद्धार हुआ है वहीं, वृहद, मध्यम एवं लघु पेयजल परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन से लोगों को पेयजल उपलब्ध हुआ है। सरकार ने 23 महत्वपूर्ण परियोजनाओं की घोषणा की है।

प्रदेश में जहां पारंपरिक जलस्रोतों का जीर्णोद्धार हुआ है। वहीं वृहद, मध्यम एवं लघु पेयजल परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन से लोगों को पेयजल उपलब्ध हुआ है। पश्चिमी राजस्थान में मरुस्थल की गोद में बसे बाड़मेर और जैसलमेर जिलों में पेयजल परियोजनाओं ने इस क्षेत्र की प्यास बुझाने के साथ ही यहां विकास के नए द्वार खोले हैं। राजस्थान जैसे वृहद राज्य में कठिन भौगोलिक परिस्थितियां और पानी की कमी के बावजूद यहां के जनजीवन में कभी भी मायूसी का माहौल नहीं रहा। यहां कि महिलाएं सिर पर मटकी रखे मीलों चलकर पानी लाती रही हैं। पानी के लिए यहां के लोग सदैव ही इंद्रदेव की मेहरबानी के लिए दुआएं करते रहे हैं। इतने बड़े राज्य में देश में उपलब्ध पानी का मात्र एक प्रतिशत हिस्सा ही मौजूद है। ऐसे में पानी के महत्व को मरुधरा के लोगों से बेहतर कौन जान सकता है लेकिन समय बदलने के साथ ही पेयजल का परिदृश्य भी बदलने लगा है।
मीठे पानी की आस हुई पूरी
Posted on 27 Oct, 2012 04:50 PM राजस्थान के भरतपुर जिले के लोगों को पीने का पर्याप्त मीठा पानी मयस्सर नहीं था। करीब 70 से 75 फीसदी आबादी खारा पानी पीने को विवश थी। जाहिर है, खारे पानी से उनकी प्यास बमुश्किल ही बुझती थी लेकिन चंबल-धौलापुर-भरतपुर वृहद पेयजल परियोजना ने काफी हद तक इस कमी को दूर किया है।

प्रस्तावित 599 गांवों में चंबल नदी के जल के वितरण के कार्य के लिए गांवों के क्लस्टर निर्माण के विस्तृत तखमीने बनाने का कार्य भी अलग से प्रारंभ किया जा रहा है। चंबल-धौलपुर-भरतपुर परियोजना की मुख्य ट्रांसमिशन पाइप लाइन से रूपवास में ऑफटीक देकर रूपवास तहसील के खारे पानी की समस्या से ग्रस्त 30 गांवों को चंबल नदी का जल उपलब्ध कराने की योजना की विस्तृत तकनीकी प्रस्ताव भी तैयार किए गए हैं। इन प्रस्तावों की प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति शीघ्र जारी कर कार्यों को प्रारंभ किया जाएगा। राजस्थान के भरतपुर जिले के लोगों की मीठे पानी पीने की आस अब पूरी हो रही है। भरतपुर शहर के बाशिंदों को अब मीठे पानी का स्वाद पता चला है। यहां के लोग अब तक खारा पानी पीने के लिए ही अभिशप्त थे। हालांकि साल 1970 से इस शहर को बांध बारेठा से मीठे पानी की आपूर्ति की जा रही थी लेकिन यह पानी इस शहर की मात्र 20-25 प्रतिशत आबादी की प्यास बुझा रहा थ। अब चंबल नदी का पानी भरतपुर पहुंचने से राजस्थान के इस ऐतिहासिक शहर की फिजां बहुत बदली-सी नजर आने लगी है।
मनरेगा योजना में नदी को मिला नया जीवन
Posted on 23 Aug, 2012 10:53 AM 23 अगस्त 2012, कोलकाता। महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना को ढंग से लागू करने पर उसका एक सकारात्मक असर भी सामने आया है। सौ दिन काम देने की केंद्र सरकार की रोजगार गारंटी योजना के तहत न सिर्फ एक छोटी नदी को जीवन दान मिला है। बल्कि, बांध निर्माण होने से एक बड़े इलाके में हर साल आने वाली बाढ़ का संकट इस बार टल गया है। हावड़ा के उदयनारायनपुर इलाके में दामोदर वैली कारपोरेशन का अतिरिक्त जल अब कैचमेंट इलाके से बाहर निकल कर लोगों को तबाह नहीं कर रहा।

उदयनारायनपुर और आमता ब्लॉकों के अधिकांश हिस्से दामोदर नदी के पश्चिमी छोर से निकलने वाली शाखा नदी के किनारे पड़ते हैं। सिंचाई विभाग की भाषा में यह इलाका स्पिल कहा जाता है। जमींदारी के दिनों का एक जर्जर बांध बाढ़ की तेजी को नहीं झेल पा रहा था। हर साल ये इलाके जलमग्न हो जाते थे और लोगों के सामने विस्थापन का संकट होता था 2007 में जमींदारी बांध के पास से चार सौ मीटर का इलाका घंसक कर नदी में समा गया। तब से हालात और भी खराब हो चले थे। तब से पिछले साल तक सिंचाई विभाग, स्थानीय पंचायत, नगर विकास विभाग और ग्रामीण विकास विभागों के बीच यहां मरम्मत का खर्च वहन करने को लेकर खींचतान चल रही थी।

मिसाल : ललगड़ी की हरी गाड़ी
Posted on 27 Jul, 2012 01:24 PM नक्सल प्रभावित और अत्यंत पिछड़े राज्य में गिना जाने वाला झारखंड के लतेहार जिले का ललगड़ी एक मिसाल कायम की है। इस गांव में ग्रामीणों के आपसी समझदारी के कारण आज तक एक भी केस-मुकदमा नहीं हुआ है। ललगड़ी गांव में 69 प्रतिशत लोग पढ़े-लिखे हैं। जहां देश में सूखे का संकट मंडरा रहा है। लेकिन ललगड़ी में व्यवस्थित इंतजाम से साल भर चारों तरफ हरियाली छाई रहती है। पंचायत में लगा आर्थिक दंड का पैसा आरोपी के खिलाफ नहीं जाता बल्कि गांव के विकास कार्य में जाना एक मिसाल है।

ज्ञान-विज्ञान के इस दौर में बड़े-बड़े शहर आधुनिकता की चाहे जितनी डींगें हांकें, सघन रूप से नक्सल प्रभावित और अत्यंत पिछड़े क्षेत्र के रूप में पहचान बना चुके लातेहार का एक गांव ललगड़ी ने जो मिसाल कायम की है, उससे पूरी दुनिया को सीख लेनी चाहिए।
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