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कृषि उत्पादकता, पोषण स्तर एवं कुपोषण जनित बीमारियाँ : निष्कर्ष एवं सुझाव
Posted on 12 Oct, 2017 04:35 PM

विकास और उससे उत्पन्न समस्याओं का आश्य यह नहीं है कि धरा का कोष रिक्त हो गया है और भी भार

कृषि उत्पादकता में वृद्धि के उपाय
Posted on 08 Oct, 2017 09:59 AM
स्वतंत्रता के लगभग 53 वर्ष बाद गत 28 जुलाई 2002 को केंद्रीय कृषि मंत्री श्री नीतीश कुमार ने नई राष्ट्रीय कृषि नीति संसद के पटल पर रखी, इसकी मुख्य विशेषता यह है कि सरकार ने अगले दो दसकों के लिये कृषि क्षेत्र में प्रतिवर्ष 4 प्रतिशत की विकास दर निर्धारित की है। 17 पृष्ठों की कृषि नीति में भूमि सुधार के माध्यम से गरीब किसानों को भूमि प्रदान करना, कृषि जोतों का समेकन, कृषि क्षेत्र में निवेश को ब
कृषक परिवारों के स्वास्थ्य का स्तर
Posted on 07 Oct, 2017 11:18 AM
स्वस्थ्य जीवन के लिये यह आवश्यक है कि व्यक्ति को ऐसा भोजन मिले जिसमें सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में उपस्थित हों, ऐसा तभी संभव है जब उसको संतुलित भोजन प्राप्त हो परंतु हर व्यक्ति का संतुलित भोजन सामान्य नहीं हो सकता है। व्यक्ति भिन्न-भिन्न प्रकार के कार्य संपादित करता है। अत: कार्य की विभिन्नता के आधार पर उसे भोजन की भी आवश्यकता होती है। समझदार व्यक्ति को अपना भोजन इस आयु, जलवायु, ऋतु तथा लिं
भोजन के पोषक तत्व एवं पोषक स्तर
Posted on 05 Oct, 2017 03:51 PM
भोजन मनुष्य की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आधारभूत आवश्यकता है जिसके बिना कोई भी प्राणी जीवन की कल्पना नहीं कर सकता है। जीवन के प्रारंभ से जीवन के अंत तक शांत करने तथा शारीरिक विकास के लिये मनुष्य को भोजन की आवश्यकता होती है। डॉ.
कृषकों का कृषि प्रारूप कृषि उत्पादकता एवं खाद्यान्न उपलब्धि की स्थिति
Posted on 03 Oct, 2017 11:35 AM
किसी प्रदेश अथवा क्षेत्र के फसलों के प्रतिरूप में परिवर्तन की संभावना के विषय में दो मत हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि फसलों के प्रतिरूप में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है जबकि कुछ विद्वान मानते हैं कि सुविचारित नीति के सहारे इसे बदला जा सकता है। वसु केडी ने यह मत व्यक्त किया है ‘‘परंपराबद्ध तथा ज्ञान के अत्यंत निम्न स्तर वाले देश के कृषक प्रयोग करने की उद्यत नहीं होते हैं, वे प्रत्येक बात
कृषि उत्पादकता एवं जनसंख्या संतुलन (भाग-2)
Posted on 02 Oct, 2017 11:54 AM
प्राकृतिक संसाधन किसी देश की अमूल्य निधि होते हैं, परंतु उन्हें गतिशील बनाने, जीवन देने और उपयोगी बनाने का दायित्व देश की मानव शक्ति पर ही होता है, इस दृष्टि से देश की जनसंख्या उसके आर्थिक विकास एवं समृद्धि का आधार स्तंभ होती है। जनसंख्या को मानवीय पूँजी कहना कदाचित अनुचित न होगा। विकसित देशों की वर्तमान प्रगति, समृद्धि व संपन्नता की पृष्ठभूमि में वहाँ की मानव शक्ति ही है जिसने प्राकृतिक संस
कृषि उत्पादकता एवं जनसंख्या संतुलन
Posted on 01 Oct, 2017 11:03 AM
किसी भी क्षेत्र की कृषि जटिलताओं को समझने के लिये उस क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली समस्त फसलों का एक साथ अध्ययन आवश्यक होता है। इस अध्ययन से कृषि क्षेत्रीय विशेषतायें स्पष्ट होती हैं। सस्य संयोजन अध्ययन के अध्यापन के अभाव में कृषि की क्षेत्रीय विशेषताओं का उपयुक्त ज्ञान नहीं होता है। फसल संयोजन स्वरूप वास्तव में अकस्मात नहीं होता है अपितु वहाँ के भौतिक (जलवायु, धरातल, अपवाह तथा मिट्टी) तथा स
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