पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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गाड-गदेरों, छोटी नदियों की सुध जरूरी
Posted on 11 Apr, 2010 09:23 PM
गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा में छोटी, लेकिन बारहमासी नदियों को ‘गाड’ कहा जाता है। ‘गाड’ शब्द ‘गाद’ का स्थानीय रूप है। ‘गाद’ नदी में आने वाले मलबे को कहते हैं। अंग्रेजी में अत्यधिक कीचड़ के कारण मड और बारीक तलछट के कारण ‘सिल्ट’ कहते हैं। पर्वतीय क्षेत्र में बड़ी नदियों को छोड़कर तमाम छोटी नदियों को ‘गाड’ के नाम से जाना जाता है। यही गाड वर्षा ऋतु में पहाड़ों स
हमको पानी नहीं दिया तो...
Posted on 07 Apr, 2010 11:14 AM रघुवीर सहाय की कविता की पंक्तियां हैं: पानी पानी बच्चा बच्चा मांग रहा है हिंदुस्तानी... हमको पानी नहीं दिया तो हमको मानी नहीं दिया...
सावन हर्रै भादों चीत
Posted on 26 Mar, 2010 11:04 AM
सावन हर्रै भादों चीत। क्वार मास गुड़ खायउ मीत।।
कातिक मूली अगहन तेल। पूस में करै दूध से मेल।।

माघ मास घिउ खींचरी खाय। फागुन उठि के प्रात नहाय।।
चैत मास में नीम बेसहनी। बैसाके में खाय जड़हनी।।

जेठ मास जो दिन में सोवै।
ओकर जर असाढ़ में रोवै।।

भुइयाँ खेड़े हर हो चार
Posted on 26 Mar, 2010 11:02 AM
भुइयाँ खेड़े हर हो चार, घर हो गिहथिन गऊ दुधार।
अरहर दाल, जड़हन का भात, गागल निबुआ औ घिउ तात।।

खाँड दही जो घर में होय, बाँके नयन परोसै जोय,
कहैं घाघ तब सबही झूठ, उहाँ छोड़ि इहँवै बैकूंठ।।


शब्दार्थ- भुइयाँ-जमीन। खेड़े-गाँव के नजदीक। गागल- रसदार। तात-गर्म।
प्रात समै खटिया स उठिकै
Posted on 26 Mar, 2010 10:59 AM
प्रात समै खटिया स उठिकै, पीवै ठंडा पानी।
ता घर वैद कबौ नहीं आवै, बात घाघ की मानी।।


भावार्थ- घाघ का मानना है कि जो व्यक्ति प्रातः काल खाट से उठते ही ठंडा पानी पीता है उसका स्वास्थ्य इतना अच्छा रहता है कि कभी डॉक्टर या वैद्य की जरूरत नहीं पड़ती।

जाको मारा चाहिए
Posted on 26 Mar, 2010 10:58 AM
जाको मारा चाहिए, बिन लाठी बिन घाव।
वाको यही बताइए, घुइयाँ पूरी खाव।।


भावार्थ- यदि किसी व्यक्ति को बिना लाठी या बिना हथियार के मारना चाहते हो तो उसे धुइयाँ (अरुई) और पूड़ी खाने की सलाह दो क्योंकि घुइयाँ और पूड़ी स्वास्थ्य के लिए हानिकारिक होती हैं।

चैते गुड़ बैसाखे तेल
Posted on 26 Mar, 2010 10:54 AM
चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठे पन्थ असाढ़े बेल।
सावन साग न भादों दही, क्वार करेला न कातिक मही।।

अगहन जीरा पूसे धना, माघे मिश्री फागुन चना।
ई बारह जो देय बचाय, वहि घर बैद कबौं न जाय।।


शब्दार्थ- पन्थ-यात्रा, मही- माठा, धना-धनिया।
चइत सोवै रोगी
Posted on 26 Mar, 2010 10:52 AM
चइत सोवै रोगी, बइसाख सोवै जोगी।
जेठ सोवै राजा, असाढ़ सोवै अभागा।।

गाय दुहे, बिन छाने लावै
Posted on 26 Mar, 2010 10:51 AM
गाय दुहे, बिन छाने लावै, गरमा, गरम तुरन्त चढ़ावै।
बाढ़ै बल अउर बुद्धि भाई, घाघ कहे सच्ची बतलाई।


भावार्थ- घाघ का कहना है कि गाय को दूहकर उसी समय बिना छाने गरमागरम कच्चा दूध पीने से बल और बुद्धि दोनों बढ़ती हैं।

खाइ कै मूतै सूतै बाउँ
Posted on 26 Mar, 2010 10:49 AM
खाइ कै मूतै सूतै बाउँ।
काहै के बैद बसावै गाउँ।


भावार्थ- यदि व्यक्ति खाना खाने के पश्चत् पेशाब करके बायें करवट सो जाए, तो उसे अपने गाँव में वैद्य बसाने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी अर्थात् ऐसा करने वाला व्यक्ति सदैव स्वस्थ रहता है।

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