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समुद्र किनारे शिक्षा
Posted on 30 Jun, 2010 01:18 PM अक्टूबर में चेन्नई समुद्रतट पर पहुंचे 24,300 टन वजनी सैलानी पोत से उतरे लोग दक्षिण भारत के सुंदर समुद्रतट को निरखने आए कैमरे लादे पर्यटक नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन के अनुभवों को पढ़ने आए 520 अमेरिकी छात्र और उनके अध्यापक थे। एक सेमेस्टर समुद्र पर पढ़ने वाले इन छात्रों को संसार को देखने की एक व्यापक दृष्टि के साथ ही शैक्षणिक क्रेडिट भी मिलेंगे। पोत पर और उससे परे लगने वाली इनकी कक्षाएं अपने आप में न
कचरा बीनने वालों का मसीहा बना इंजीनियर
Posted on 30 Jun, 2010 12:27 PM गुड़गांव : पिछले पंद्रह सालों से गुड़गांव तथा यूपी व बिहार के कई क्षेत्रों में कचरा बीनने वालों का मसीहा बने आरसी विद्यार्थी ने ऐच्छिक रिटायरमेंट लेकर इन्हीं लोगों के लिए काम कर रहे हैं व इन्हीं के हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसी लड़ाई जिसमें न तो पैसा है और न ही नाम। हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड, भारत एलुमिनियम कंपनी, इंजीनियरिंग इंडिया लिमिटेड , डेटामेशनल रिसर्च एनालिस्ट, नई दिल्ली जैसी दर्जनों सरकार
कचरा बीनने वालों के जीवन में उम्मीद
Posted on 29 Jun, 2010 01:25 PM
आपका कचरा, उसका कारोबार एक पर्यावरण कार्यकर्ता के प्रयासों से
सुनो, चिड़िया कुछ कहती है
Posted on 29 Jun, 2010 11:02 AM चिड़िया हमारे पर्यावरण की थर्मामीटर जैसी हैं। उनकी सेहत ,उनकी खुशी बताती हैकि जिस माहौल में हमरह रहे हैं , वह कैसा है।प्रदूषित हवा से होनेवाली तेजाबी बारिश काअसर हमारी जिंदगी मेंदेर से जाहिर होता है ,लेकिन इससे चिड़ियों केअंडे पतले पड़ने लगते हैंऔर उनकी आबादी घटने लगती है। मोबाइल फोन से निकलनेवाली तरंगें इंसान पर क्या प्रभाव छोड़ती हैं , इस पर रिसर्चअभी चल ही रही है। लेकिन गौरैया , श्यामा औ
अमीरी की गरीबी
Posted on 26 Jun, 2010 04:20 PM देश छोटा-सा है, आबादी भी हम जैसे देशों की तुलना में बहुत ही कम है। लेकिन दूध, डेयरी और मांस का उत्पादन बहुत ही ज्यादा है। इसलिए पशुओं की संख्या भी खूब है। यहां एक व्यक्ति पर आठ पशुओं का औसत आता है। और इस कारण पशुओं का गोबर भी खूब है। हमारे देश में वरदान माना गया गोबर यहां के पर्यावरण के लिए अभिशाप बन चुका है। यहां इसे ‘राष्ट्रीय’ समस्या माना जा रहा है।अपरिग्रह, जरूरत से ज्यादा चीजों का संग्रह न करने की ठीक सीख सभी पर लागू होती है। सभी पर यानी सभी समय, सभी जगह, सभी देशों में और सभी चीजों पर। ऐसा नहीं कि साधारण चीजों पर ही यह लागू होती हो। अमृत भी जरूरत से ज्यादा किसी काम का नहीं। गोबर को हमारे यहां अमृत जैसा ही तो माना गया है। पर यही गोबर यूरोप के एक देश नीदरलैंड में जरूरत से ज्यादा हो गया तो उसने वहां कैसी तबाही मचाई- इसे बता रहे हैं श्री राजीव वोरा। चीजों के संग्रह, बेतहाशा आमदनी-खर्च पर टिका आज का अर्थशास्त्र हर कभी हर कहीं गिर रहा है। दो बरस पहले अमेरिका में गिरा तो इस समय यह यूरोप में ग्रीस को हिला गया है। कई देशों पर यह संकट छा रहा है। कुछ बरस पहले नीदरलैंड ने अपने अर्थशास्त्र में छिपे अनर्थ को समझने के लिए भारत, इंडोनेसिया, ब्राजील और तंजानिया से चार मित्रो को बुलाकर लगभग पूरा देश घुमाया था, अपने समाज के विभिन्न पदों, क्षेत्रों
पहाड़ों में औधौगिक विकास तथा पर्यावरणः वास्तविकता व भावी दिशा
Posted on 25 Jun, 2010 04:25 PM पर्वतीय विकास और रोजगार-सुविधा के नाम से पिछले 10 वर्षों में उत्तराखण्ड में औद्यौगिकरण के कई नये उपायों को प्रारम्भ किया गया है। यूं तो रोजगार देने के हर प्रयास का स्वागत पहाड़ की जनता भी करती है और वहां के सरकारी, अर्द्धसरकारी व सामाजिक संस्थान भी करते हैं, क्योंकि पहाड़ की ‘युवा-पलायन’ की समस्या का हल इन उद्योगों के जरिये होगा तथा पहाड़ के under employment को पूरक-रोजगार भी इन उद्योगों से मिलेग
नये पुरुषार्थ का प्रारम्भ हिमालय से हो
Posted on 25 Jun, 2010 03:48 PM मेरी सहज समर्पित सेवाओं के लिए मुझे जो सम्मान दिया गया है, उसको मैं समाज का स्नेहपूर्ण आशीर्वाद मानती हूं।
नील का धब्बा
Posted on 22 Jun, 2010 11:30 AM हरा, पीला, लाल, सफेद, काला- ये सभी रंग प्रकृति में आसानी से मिल जाते हैं। पर नीला रंग मिलना सबसे मुश्किल रहा है। इसीलिए नीला रंग दे सकने वाले पौधे पर सबकी नजर टिक गई थी। व्यापारी की भी और शोषण करने वालों की भी। मारा गया किसान। नील के पौधे की खेती बिहार के चंपारण क्षेत्र में होती रही है। दुनिया की मांग का एक बड़ा भाग चंपारण से पैदा होता था और इसका सारा लाभ नील की खेती करने वाले किसानों को नहीं, बल्
कोई खास चिंता या पहल नहीं
Posted on 10 Jun, 2010 04:41 PM
अभी थोड़े दिनों पहले की बात है, जब यूरोप के आसमान पर छाई धुंध और गुबार ने यूरोपीय जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया था। आइसलैंड के एक ज्वालामुखी से निकलने वाले लावे और धुएं से पूरा आसमान कई दिनों तक भरा रहा। यह महज एक उदाहरण भर है कि किस तरह दुनिया भर में पर्यावरण संबंधी मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं। आज से कुछेक साल पहले तक किसी ने नहीं सोचा होगा कि पर्यावरण संबंधी ऐसी मुश्किलें भी आएंगी। हकीकत
सबसे बड़ा संकट- पानी
Posted on 29 May, 2010 09:20 AM बाबर ने अपने बाबरनामा में एक जगह लिखा है कि हिन्दुस्तान में चारों तरफ पानी-ही-पानी दिखाई देता है। यहां जितनी नदियां, मैने कहीं नहीं देखीं हैं। यहां पर वर्षा इतनी जोरदार होती है कि कई-कई दिनों तक थमने का नाम नहीं लेती है। बाबर के इस लेख से ज्ञात होता है कि पानी के मामले में भारत आत्मनिर्भर था लेकिन अब तो वह बूंद-बूंद पानी के लिए तड़प रहा है।भुखमरी, महामारी, अकाल के शिकार होकर प्राणियों को मरते तो देखा गया है, परन्तु किसी व्यक्ति ने पानी के बिना प्यास से दम तोड़ दिया हो इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता। 20वीं सदी की पहचान यही होगी कि प्यास के मारे प्राणियों ने दम तोड़ा है। बाबर ने अपने बाबरनामा में एक जगह लिखा है कि हिन्दुस्तान में चारों तरफ पानी-ही-पानी दिखाई देता है। यहां जितनी नदियां, मैने कहीं नहीं देखीं हैं। यहां पर वर्षा इतनी जोरदार होती है कि कई-कई दिनों तक थमने का नाम नहीं लेती है। बाबर के इस लेख से ज्ञात होता है कि पानी के मामले में भारत आत्मनिर्भर था लेकिन अब तो वह बूंद-बूंद पानी के लिए तड़प रहा है। पर्याप्त वर्षा न होना पर्यावरण प्रदूषण की गंभीरता
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