समाचार और आलेख

Term Path Alias

/sub-categories/news-and-articles

पानी की उत्पत्ति
Posted on 01 Nov, 2016 11:48 AM


कितना सुपरिचित नाम है पानी। जन्म से ही हमारा उससे नाता है। पैदा होते ही बच्चे को दाई पानी से नहलाती है। बचपन में सभी ने पानी में खूब मस्ती की है। सभी लोग उसे रोज काम में लाते हैं। बरसात में वह बूँदों का उपहार देकर धरती को हरी चुनरी की ओढ़नी ओढ़ाता है। उसका शृंगार करता है।

नदी, तालाबों तथा झरनों को जीवन देता है। शीत ऋतु में हरी घास के बिछौने, पत्तियों की कोरों और फूलों की पंखुड़ियों पर ओस कणों के रूप में उतर कर मन को आनन्दित करता है। बाढ़ तथा सुनामी बनकर आफत ढाता है तो प्यास बुझा कर समस्त जीवधारियों के जीवन की रक्षा करता है। वह जीवन का आधार है। वह, धरती के बहुत बड़े हिस्से पर काबिज है। उसके विभिन्न रूपों (द्रव, ठोस तथा भाप) से सभी बखूबी परिचित हैं।

जल
नदी जल विवादों का स्थायित्व और निरापद भविष्य
Posted on 15 Oct, 2016 11:40 AM


नदी जल विवाद चाहे वे अन्तरराष्ट्रीय हों या अन्तरराज्यीय, उनके समाधानों की तो खूब चर्चा होती है पर समाधानों के स्थायित्व और उनकी निरापदता की चर्चा नहीं होती। वह (स्थायित्व एवं निरापदता) समाधान सम्बन्धी विचार गोष्ठियों में चर्चा का मुख्य बिन्दु भी नहीं होता। इस कमी या अनदेखी के कारण, सामान्य व्यक्ति के लिये नदी जल विवादों के समाधानों के टिकाऊपन और वास्तविक असर को समझ पाना बेहद कठिन होता है।

यह अनदेखी, मुख्य रूप से जल्दी-से-जल्दी फैसले पर पहुँचने की उत्कट इच्छा और पानी की लगातार बढ़ती माँग का परिणाम होती है। अब समय आ गया है जब हमें आवंटित पानी के उपयोग की टिकाऊ और निरापद रणनीति विकसित करने और उस पर अमल करने की आवश्यकता है।

नदी जल विवाद
नीर, नारी, नदी सम्मेलन में जल योद्धाओं की माँग- सरकार बनाए नदी पुनर्जीवन नीति
Posted on 29 Sep, 2016 10:15 AM


इस वर्ष मानसून सामान्य रहा। बारिश भी खूब हुई। इसके बावजूद देश के कई राज्यों में सूखे जैसे हालात बन गए हैं। एक ओर कर्नाटक का बहुत बड़ा हिस्सा सूखे से प्रभावित है, वहीं उत्तर प्रदेश के गोरखपुर एवं बस्ती मण्डल में वर्षा के अभाव में धान की फसल नष्ट हो रही है। महाराष्ट्र के कई इलाकों में भी इस वर्ष सूखे के हालात हैं।

सिंधु जल-संधि पर सोचे भारत
Posted on 24 Sep, 2016 03:47 PM
आजादी के बाद से ही पाकिस्तान लगातार भारत के खिलाफ लड़ाईयाँ लड़ता रहा है। शुरू में उसने सीधा हमला करके भारत को परास्त करने की कोशिश की। पर होता रहा उल्टा; जब भी उसने हमला किया, मुँह की खाता रहा।

धीरे-धीरे पाकिस्तान समझ गया कि सीधी लड़ाई में भारत से वह जीत नहीं सकता। इसलिये करीब 30-40 सालों से पाकिस्तान ‘प्रॉक्सीवार’ यानी छद्मयुद्ध लड़ रहा है। हथियार, पैसा, ट्रेनिंग देकर भारत के खिलाफ आतंकवादियों का इस्तेमाल कर रहा है। हमेशा दुनिया की नजर में पाकिस्तान सरकार अपने को पाक-साफ दिखाना चाहती है और आतंकवादियों को ‘नॉन स्टेट प्लेयर’ के रूप में घोषित करती रहती है।
कावेरी विवाद - मेरा पानी तेरा पानी
Posted on 13 Sep, 2016 05:02 PM


कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी के पानी के बँटबारे का मामला लगभग 124 साल पुराना मामला है। इस विवाद को मानसून की बेरुखी हवा देती है। सन 1995 और सन 2002 में मानसून ने धोखा दिया। मानसून की बेरुखी हालात खराब किये। सन 2003 से 2006 तक के सालों में तामिलनाडु और कर्नाटक में मानसून की बरसात सामान्य हुई। पानी का बँटवारा, मुद्दा नहीं बना।

भूकम्प से कैसे निपटें (How to deal with Earthquake in Hindi)
Posted on 22 Aug, 2016 02:50 AM

भूकम्प का पूर्वानुमान सम्भव नहीं


भूकम्प एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका पूर्वानुमान सम्भव नहीं है। विज्ञान की तमाम आधुनिक सुविधाओं के बावजूद भूकम्प आने के समय, भूकम्प के असर का दायरा और तीव्रता बताना मुश्किल है।

बीबीसी को दिये गये अपने एक बयान में प्रो. चंदन घोष बताते हैं कि जब कोई भूकम्प आता है तो दो तरह के वेव निकलते हैं। एक को प्राइमरी वेव कहते हैं और दूसरे को सेकेन्ड्री वेव कहते हैं।

प्राइमरी वेव की गति औसतन 6 कि.मी. प्रति सेकेन्ड की होती है जबकि सेकेन्ड्री वेव औसतन 4 कि.मी. प्रति सेकेन्ड की रफ्तार से चलती है। इस अन्तर के चलते हरेक 100 कि.मी. पर 8 सेकेन्ड का अन्तर हो जाता है। यानि भूकम्प केन्द्र से 100 कि.मी. दूरी पर 8 सेकेन्ड पहले पता चल सकता है कि भूकम्प आने वाले है।
जलाशयों की गाद हटाने में बाढ़ का उपयोग
Posted on 26 Jul, 2016 12:19 PM
बाँधों के विशाल जलाशयों की गाद को कुदरती तरीके से निकाला जा सकता है। यह चमत्कार भी नहीं है। यह सुनकर या पढ़कर भले ही अटपटा लगे पर यह सम्भव है। चीन ने इसे बिना मानवीय श्रम या धन खर्च किये, कर दिखाया है। यह किसी भी देश में हो सकता है। भारत में भी ऐसा हो सकता है।
सूखा क्यों
Posted on 15 Jul, 2016 03:43 PM
झाबुआ, 1980 के दशक का उत्तरार्द्ध। मध्य प्रदेश के इस आदिवासी, पहाड़ी जिले की सतह चंद्रमा जैसी चट्टानी और बंजर नजर आती थी। मेरे चारों तरफ सिर्फ भूरे रंग की पहाड़ियाँ ही थीं। दूर-दूर तक पानी का कोई नामो-निशान नहीं था। किसी के पास कोई काम नहीं था। हर तरफ सिर्फ निराशा का वातावरण था। मुझे अभी तक धूल भरे सड़कों के किनारे, दुबक कर बैठे, पत्थर तोड़ते लोगों के दृश्य याद हैं।

चिलचिलाती धूप में हर साल क्षतिग्रस्त होने वाली सड़कों की मरम्मत का काम। पेड़ों के लिये ऐसे गड्ढों की खुदाई, जो कभी बचते नहीं थे। दीवारों का निर्माण जिनके ओर-छोर का कुछ पता नहीं था। यही थी सूखा राहत की असलियत। ये सब अनुत्पादक काम थे, लेकिन ऐसे संकट के समय में लोगों को जिंदा रहने के लिये यही सब करना पड़ता था।
अतिवृष्टि का चरम है बादल फटना (Cloudburst)
Posted on 05 Jul, 2016 02:00 PM


मौसम वैज्ञानिकों की नजर में बादल फटने की घटना अतिवृष्टि की चरम स्थिति और असामान्य घटना है। इस घटना की अवधि बहुत कम अर्थात कुछ ही मिनट होती है पर उस छोटी अवधि में पानी की बहुत बड़ी मात्रा, अचानक, बरस पड़ती है। मौसम वैज्ञानिकों की भाषा में यदि बारिश की गति एक घंटे में 100 मिलीमीटर हो तो उसे बादल फटना मानेंगे।

पानी की मात्रा का अनुमान इस उदाहरण से लगाया जा सकता है कि बादल फटने की घटना के दौरान यदि एक वर्ग किलोमीटर इलाके पर 25 मिलीमीटर पानी बरसे तो उस पानी का भार 25000 मीट्रिक टन होगा। यह मात्रा अचानक भयावह बाढ़ लाती है। रास्ते में पड़ने वाले अवरोधों को बहाकर ले जाती है। बादल फटने के साथ-साथ, कभी-कभी, बहुत कम समय के लिये ओला वृष्टि होती है या आँधी तूफान आते हैं।

पानी-रे-पानी तेरा रंग कैसा
Posted on 03 Jul, 2016 04:13 PM
पानी बचाने के हमारे तरीके कैसे-कैसे थे, इसका अहसास इस बात से
×