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नदियों को जोड़ने की खामख्याली
देश की सारी प्रमुख नदियों को जोड़ने के वाजपेयी सरकार के संकल्प पर यदि अमल किया गया, तो यह इतिहास में सहस्राब्दि की सनक के रूप में दर्ज होगा। ऐसा इसलिए कि यह योजना सारी इकॉलॉजिकल, राजनैतिक, आर्थिक व मानवीय लागत को अनदेखा करती है और इसका आकार अभूतपूर्व है। दुनिया में कहीं भी आज तक इतने बड़े पैमाने की और इतनी पेचीदगियों से भरी परियोजना नहीं उठाई गई है। Posted on 16 Nov, 2023 04:59 PM

प्रधानमंत्री तथा उनकी इस घोषणा पर मेजें थपथपाने वाले सांसद शायद सोचते हैं कि जब सड़कों का नेटवर्क बन सकता है, तो नदियों का क्यों नहीं? इस सोच में देश के बुनियादी संसाधनों मिट्टियों, नदियों, सागर संगमों, पहाड़ों और जंगलों के प्रति और जलवायु की तमाम विविधताओं के प्रति नासमझी ही झलकती है।

नदियों को जोड़ने की खामख्याली
फ्लोराइड : एक उभरती समस्या
फ्लोराइड हमारे आस-पास उभरती समस्याओं में से एक है, जो दांतों की संरचना, कंकाल की संरचना को प्रभावित करती है साथ ही हमारे शरीर में गैर कंकाल संरचनाएं (नरम ऊतक या गैर कैल्सीफाइड ऊतक) जो स्वास्थ्य में विविधता का कारण बनती हैं। Posted on 16 Nov, 2023 02:53 PM

सार -

डेंटल फ्लोरोसिस, जो फीके काले धब्बेदार या चाकलेट-सफेद दांतों की विशेषता है.

फ्लोराइड : एक उभरती समस्या
जल प्रबंधन एवं सिंचाई क्षमता वर्धन रबड़ बाँध एक विकल्प
जल भंडारण का कार्य प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। प्राचीन समय में जब तकनीक इतनी विकसित भी नहीं हुई थी, तब भी लोग तालाब एवं बावड़ी इत्यादि का प्रयोग वर्षा जल के भण्डारण के लिए करते थे। उस समय आबादी कम होने के कारण सीमित जल संसाधनों के होने पर भी मानव के कई दैनिक एवं व्यावसायिक कार्य सुचारू रूप से संपन्न हो जाते थे। जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि हुई अन्न की माँग भी बढ़ी इस बढ़ी हुई माँग की पूर्ति हेतु खेती के भू-भाग में बढ़ोत्तरी हुई। इस बढ़ी हुई खेती के भू-भाग की सिंचाई के लिए जल की मांग बढ़ने लगी जल की इस मांग ने बाँध जैसी जल भण्डारण वाली अवसंरचनाओं को जन्म दिया। Posted on 16 Nov, 2023 01:13 PM

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                             

जल प्रबंधन एवं सिंचाई क्षमता वर्धन रबड़ बाँध एक विकल्प
जानें जल संरक्षण, संवर्धन व जलवायु परिवर्तन का सम्बन्ध
जल संरक्षण के प्रति हमारी चेतना का उदाहरण है। कुमाऊँ हिमालय के अंतर्गत जल स्रोतों का पुनर्वेदभवन ही गैरहिमानी नदियों को बचाने का एकमात्र रास्ता है। अतः जल स्रोतों के संवर्धन, संरक्षण एवम् पुनउदभवन के प्रयास आवश्यक हो गये हैं Posted on 16 Nov, 2023 12:33 PM

पूरे विश्व में जल संरक्षण व संवर्धन की मूल समस्या का समाधान तभी हो पायेगा जब हम जल के ह्रास व पेय जल की कमी की समस्या की और विस्तृत व सम्पूर्ण पहलूओं को ध्यान में रखकर योजनाएं बनाएं क्योंकि स्थानीय स्तर पर जल संरक्षण व संवर्धन उतना ही आवश्यक है जितना जलवायु परिवर्तन व ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण ऋतु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों को हल करने के प्रयास।

जानें जल संरक्षण, संवर्धन व जलवायु परिवर्तन का सम्बन्ध
जलाभाव की त्रासदी  
एक समय था जब हमारे देश में जल की कोई कमी नहीं थीं। हमारे देश की नदियां जलाप्लावित रहती थी। जगह-जगह पर कुएं, बावड़ी, पाताल तोड़ कुएं तथा ट्यूबवेल हुआ करते थे जिनसे पीने का शुद्ध जल आसानी से प्राप्त हो जाता था। पशुओं तथा फसलों के लिए भी जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाता था। पृथ्वी पर जल स्तर भी पर्याप्त ऊंचाई पर था। हमारी प्राचीन सभ्यताएं भी नदियों के किनारे पर ही विकसित हुई क्योंकि प्राचीन काल में हमारे पूर्वजों ने अपने निवास स्थान अधिकतर नदियों के किनारे पर ही बनाए ताकि उन्हें पानी आसानी से उपलब्ध हो सके। जल की पवित्रता एवं शुद्धता के कारण ही नदियों को भारत में मां की तरह पूजा जाता है।' Posted on 16 Nov, 2023 11:29 AM

जलाभाव की समस्या मात्र भारत की ही नहीं अपितु विश्व की सबसे जवलंत समस्या है जब 21वीं सदी के प्रारंभ में ही इस समस्या ने इतना विकराल रूप 'धारण कर लिया है तो आगे आने वाले वर्षों में इसका रूप कितना भयानक होगा यह सोचकर भी दिल दहल जाता है। जन जीवन का पर्याय है। जब पृथ्वी पर पीने योग्य जल ही नहीं होगा तो मानव जीवन की कल्पना करना ही व्यथ है।

जलाभाव की त्रासदी ,Pc-जल चेतना
जलप्रबंधन का सामाजिक - ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य कोशी क्षेत्र के सन्दर्भ में
आजकल जल प्रबंधन सम्पूर्ण विश्व में मानवता के समक्ष ज्वलंत समस्या बनकर उभरा है। वैज्ञानिक अविष्कारों ने जहाँ जीवनस्तर को काफी ऊँचा उठा दिया है और जनसंख्या भी बढ़ी है। प्राकृतिक संसाधनों के प्रचूर मात्रा में दोहन के परिणाम स्वरूप प्राकृतिक संसाधन और मानव सभ्यता के बीच का संतुलन डगमगाने लगा है और इससे कोशी क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा है। सन् 1987 में कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार की स्थापना हुई जो जल प्रबंधन के क्षेत्र में पूर्ण पड़ाव जैसा था।

Posted on 15 Nov, 2023 01:19 PM

वैसे तो कोशी क्षेत्र जल के मामले में हमेशा से आत्मनिर्भर रहा है लेकिन कभी-कभी अत्याधिक आत्मनिर्भरता भी नई त्रासदी को जन्म दे देता है। कोशी क्षेत्र में फैले अकुत जल संपदा का अगर सही प्रबंधन नहीं किया जाता तो आज कोशी वासी पहले की अपेक्षा कोशी की क्रूरता से ज्यादा विस्थापन का दंश झेलने को मजबूर होते। प्राथमिक स्रोत जो कि अधिक प्रामाणिक और महत्वपूर्ण होते हैं के आधार पर 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में

जलप्रबंधन का सामाजिक - ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य कोशी क्षेत्र के सन्दर्भ में
शुद्ध जल के लिए जल संसाधन प्रबंधन की जरूरत (Need for water resources management for pure water)
हमारे देश में बढ़ते जल प्रदूषण के कारण जल जनित रोगों की वृद्धि इस कदर हुई है कि 10% से अधिक आबादी चपेट में आ चुकी है। जल में विकृति लाने वाले प्रदूषक तत्व विभिन्न स्रोतों से मानवीय क्रियाकलापों के दौरान ही प्रवेश करते हैं व मानव पर ही हानिकारक प्रभाव डालते हैं। मानव के अतिरिक्त जलीय एवं स्थलीय जीव-जन्तु भी प्रभावित होते हैं। Posted on 15 Nov, 2023 12:21 PM

धरती पर 70% हिस्से में पानी है। जो अधिकतर महासागरों और अन्य बड़े जल निकायों का हिस्सा होता है इसके अतिरिक्त, 1.6% भूमिगत जल एक्वीफर और 0-0.001% जलवाष्प और बादल के रूप में पाया जाता है। खारे जल के महासागरों में पृथ्वी का कुल 97%, हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ चोटियों में 2.4% और अन्य स्रोतों जैसे नदियों, झीलों और तालाबों मे 0.6% जल पाया जाता है। पृथ्वी पर जल की एक बहुत छोटी मात्रा, पानी की टंकियों, जै

शुद्ध जल के लिए जल संसाधन प्रबंधन की जरूरत
भूगर्भ जल दोहन : समस्या और समाधान (Ground water exploitation: problem and solution in Hindi)
बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं और उदार टाऊन प्लानिंग नियमों के कारण परम्परागत रूप से वर्षा जल संचयन जलस्रोत शनैः-शनैः खत्म होते जा रहे हैं। जल शोधन और रिसाइकिलिंग की स्थिति भारत में सोचनीय और दयनीय है। लगभग 80 प्रतिशत घरों में पहुँचने वाला जल भी प्रयोग के पश्चात यों ही सीवरों में बहा दिया जाता है, उसका प्रयोग अन्य किसी कार्य में नहीं लिया जाता है। यह प्रदूषित जल बहकर बड़े जलाशयों, नदियों आदि के जल को दूषित करता है। भारत को मरुभूमि में बसे इजरायल से शिक्षा लेनी चाहिए जो अपनी प्रत्येक जल-बूँद को बेहतर तरीके से प्रयोग करता है। यह देश प्रयोग किए गए जल का शत-प्रतिशत शोधन करता है तथा 94 प्रतिशत को रीसाइक्लिंग द्वारा पुनः घरेलू कार्यों में प्रयोग करता है। Posted on 15 Nov, 2023 12:11 PM

भारत विश्व में भूगर्भ जल दोहन करने वाले देशों में सबसे अग्रणी है। पृथ्वी के गर्भ से जल खींचने वाले विश्व के समस्त देशों में भारत प्रथम स्थान पर, दूसरे स्थान पर चीन तथा तीसरे स्थान पर अमेरिका है। आश्चर्य और कौतूहल का विषय है कि चीन और अमेरिका दोनों देशों को जितना भूगर्भ जल प्राप्त होता है, उससे भी ज्यादा अकेले भूगर्भ जल का दोहन भारत करता है। देश में भूगर्भ जल से ही स्वच्छ जल की पूर्ति होती है। य

भूगर्भ जल दोहन
हाथ धोने की आदत विकसित करने में मददगार हैं ये नवाचार
अमरीका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) का कहना है कि हाथ साफ रखने से 3 में से 1 को डायरिया संबंधी बीमारियों और 5 में से 1 को सर्दी या फ्लू जैसे श्वसन संक्रमण से बचाया जा सकता है। इसी सोच के साथ दुनिया में कुछ नवाचार किए गए हैं, जिनकी मदद से लोगों में हाथ धोने की आदत को विकसित किया गया है। Posted on 14 Nov, 2023 03:32 PM

साबुन से हाथ धोना कई बीमारियों के खिलाफ सबसे प्रभावी उपचार माना जाता है। जागरूकता के बावजूद, हाथों की उचित स्वच्छता की आदत का अभाव होने के कारण इसका पालन नहीं किया जाता है। दुनिया के कई देशों में पानी की कमी है तो कहीं साबुन की उपलब्धता नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया भर में हर साल 30 हजार महिलाओं और 4 लाख बच्चों को हाइजीन के कारण 1.

हाथ धोने की आदत विकसित करने में मददगार हैं ये नवाचार
पर्यावरण अध्ययन की पाठ्यपुस्तकें राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के नजरिए से विश्लेषण
पाठ्यपुस्तकों से अपेक्षा है कि ज्ञान को स्थानीय व वैश्विक पर्यावरण के संदर्भ में रखें ताकि विज्ञान, तकनीक व समाज के पारस्परिक संवाद के क्रम में मुद्दों को समझा जा सके। जब इस वैधता पर हम पुस्तकों को देखते हैं तो इनमें स्वच्छता, शौचालय, कचरा प्रबंधन आदि पर विस्तार से बात की गई है जिससे यह उम्मीद दिखती है कि इन मुद्दों पर समाज में संवाद कायम होगा और बदलाव भी आ सकेगा। लेकिन इनके महत्त्व को स्थापित करने हेतु उचित तर्क चुने जाने चाहिए थे। Posted on 14 Nov, 2023 02:55 PM

भारत में स्कूली शिक्षा कार्यक्रमों के अंतर्गत पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तकों और शिक्षण पद्धतियों को बनाने के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) 2005 दस्तावेज एक खाका प्रदान करता है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के अनुसार, शिक्षा के उद्देश्य हमारे संवैधानिक मूल्यों के आधार पर तय किए गए हैं (एनसीएफ 2005, अध्याय-1, पृ.

पर्यावरण अध्ययन की पाठ्यपुस्तकें
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