समाचार और आलेख

Term Path Alias

/sub-categories/news-and-articles

पीने योग्य पानी की कमी और इसका सही उपयोग
सोचने वाली बात तो यह है कि घरती पर 2 तिहाई हिस्सा पानी होने के बावजूद पीने योग्य शुद्ध पेयजल सिर्फ 1 प्रतिशत ही है। 97 फीसदी जल महासागर में खारे पानी के रुप में भरा हुआ है, जबकि 2 प्रतिशत जल का हिस्सा बर्फ के रुप में जमा है। जिसकी वजह से यह नौबत आ गई है कि कई जगह पर लोगों को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ रहा है। इसलिए सभी को जल संरक्षण के महत्व को समझना चाहिए और अनावश्यक पानी की बर्बादी नहीं करनी चाहिए। Posted on 12 Jun, 2024 06:15 AM

जल हमारे जीवन के लिए बेहद जरूरी है, जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन आजकल जल का व्यर्थ इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसकी वजह से आज भारत समेत पूरी दुनिया में जल की भारी कमी है। वहीं सोचने वाली बात तो यह है कि घरती पर 2 तिहाई हिस्सा पानी होने के बावजूद पीने योग्य शुद्ध पेयजल सिर्फ 1 प्रतिशत ही है। 97 फीसदी जल महासागर में खारे पानी के रुप में भरा हुआ है, जबकि 2 प्रतिशत जल का हिस्सा

पीने योग्य पानी आज सबसे बड़ा मुद्दा
दक्षिण बिहार की जीवनदायिनी 'पारम्परिक आहर-पईन जल प्रबन्धन प्रणाली' की समीक्षा (भाग 2)
भारतीय सभ्यता में मानवीय हस्तक्षेप द्वारा वर्षा जल संग्रहण और प्रबन्धन का गहन इतिहास रहा है। भारत के विभित्र इलाकों में मौजूद पारम्परिक जल प्रबन्धन प्रणालियाँ आज भी उतनी ही कारगर साबित हो सकती हैं जितनी पूर्व में थी। समय की कसौटी पर खरी उतरी और पारिस्थितिकी एवं स्थानीय संस्कृति के अनुरूप विकसित हुई पारम्परिक जल प्रबन्धन प्रणालियों ने लोगों की घरेलू और सिंचाई जरूरतों को पर्यावरण के अनुकूल तरीके से पूरा किया है। एकीकृत मानव अनुभव ने पारम्परिक प्रणालियों को कालांतर में विकसित किया है जो उनकी सबसे बड़ी खासियत व ताकत है। Posted on 11 Jun, 2024 07:56 PM

आहर-पईन खोदते समय निकली मिट्टी से अलंग बनाया जाता है जो अतिवृष्टि एवं बाढ़ की स्थिति का सामना करने में सहायक होता था। भू-क्षेत्र के केंद्र में गाँव और गाँव के चारों तरफ समतल खेत मगध के ग्रामीण बसाहट की विशेषता है। खेतों के बड़े आयताकार समुच्चय (50 से 100/200 एकड़ रकबे) को खंधा कहा जाता है। हर खंधे का विशेष नाम होता है जैसे मोमिन्दपुर, बकुंरवा, धोविया घाट, सरहद, चकल्दः, बडका आहर, गौरैया खंधा आदि

पारम्परिक आहर-पईन जल प्रबन्धन प्रणाली
अंटार्कटिका में घट रही है बर्फ
1986 में अंटार्कटिका से टूटकर अलग हुआ जो हिमखंड स्थिर बना हुआ था।  वह अब 37 साल बाद समुद्री सतह पर बहने लगा है।  उपग्रह से लिए चित्रों से पता चला है कि करीब एक लाख करोड़ टन वजनी यह हिमखंड अब तेज हवाओं और जल धाराओं के चलते अंटार्कटिका के प्रायद्वीप के उत्तरी सिरे की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। Posted on 10 Jun, 2024 04:12 PM

अंटार्कटिका से हिमखंड कट रहे हैं

जलवायु परिवर्तन के संकेत अब अंधी आंखों से भी दिखने लगे हैं।  नये शोध बताते हैं कि अंटार्कटिका से हिमखंड तो टूट ही रहे हैं, वायुमंडल का तापमान बढ़ने के कारण बर्फ भी तेज़ी से पिघल रही है।  जलवायु बदलाव का बड़ा संकेत संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में भी देखने में आया है।  बीते 75 सालों में यहां सबसे अधिक बारिश रिकॉर्ड की गयी है।  24 घंटे में 10 इंच से ज़्यादा

अंटार्कटिका से हिमखंड कट रहे हैं
भारतीय लोक संस्कृति और साहित्य में जल की महिमा
भारतीय धर्म, संस्कृति और साहित्य में जल को अमृत तुल्य और जीवनदाता माना गया है। एक ओर जहां जल को प्रदूषित न करने की बात कही गई है, वहीं दूसरी ओर उसका संरक्षण यानी अपव्यय न करने की बात कही गई है। सभी धर्मों में इसकी महत्ता को समझाया गया है। Posted on 10 Jun, 2024 06:25 AM

यदि हम प्राचीन ग्रंथों की बात करें तो ऋग्वेद में जल संरक्षण करने का उल्लेख मिलता है। अथर्ववेद में भी लोगों को जल संरक्षण के लिए आगाह किया गया है। इसके अलावा, तैतरीय उपनिषद, छांदग्योपनिषद और शंख स्मृति में भी कहा गया है कि पानी असीमित नहीं है, उसकी मात्रा निश्चित है। इसलिए उसे बचाने की चेतावनी दी गई है।

लोक साहित्य में जल
मिलकर भविष्य संवारें
दुनिया का बदलता मौसम समय के गहराते संकट को हमारे परिभाषित कर रहा है- और यह काम जितनी गति से हो रहा है, उसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी।  लेकिन इस वैश्विक संकट के सामने हम उतने असहाय नहीं हैं जितना हम समझ रहे हैं।  मौसम का यह संकट-काल भले ही आज हमें हारी हुई स्पर्धा लग रहा हो, पर हम यह मुकाबला जीत सकते हैं।  Posted on 09 Jun, 2024 07:24 PM

क्लाइमेट में हो रहे परिवर्तन के खतरनाक परिणामों से विश्व का कोई कोना अछूता नहीं है।  बढ़ता तापमान पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति को, प्राकृतिक विनाश को, खाद्यान्न और पानी की असुरक्षा, आर्थिक उतार-चढ़ाव को, अन्य संघर्षों को बढ़ावा ही दे रहा है।  समुद्र का जल-स्तर बढ़ रहा है, आर्कटिक पिघल रहा है, कोरल रीफ मर रहे हैं, समुद्रों में तेज़ाब की मात्रा बढ़ रही है, जंगल जल रहे हैं।  स्पष्ट है स्थितियां अनुक

बेहतर धरती के भविष्य के लिए
संयुक्त राष्ट्रसंघ के जलशांति वर्ष-2024 के अवसर पर एक अपील
मानवीय जीवन में जब जल का तीर्थपन था, तब मानवीय मन में जल-सुरक्षा, शांति और सम्मान भी था।  जल के बाजारू दुरुपयोग और दुर्व्यवहारों ने बहुत कुछ बदल दिया है।  इसीलिए संयुक्त राष्ट्रसंघ ने न्यूयॉर्क के दूसरे विश्व सम्मेलन में 2024 को जलशांति वर्ष घोषित कर दिया है।  Posted on 09 Jun, 2024 02:55 PM

भारत में हम लोग जल को शांति का प्रतीक मानते आये हैं।  जब भी हम यज्ञ अग्नि से करते हैं, तो उसकी शुरूआत, और सम्पन्नता भी, जल से ही होती है।  यज्ञ-स्थल की जल से परिक्रमा करके, शांति को आहूत करते हैं।  मतलब यह कि भारत जलशांति, व्यवहार, संस्कार और तीर्थपन में सदाचारी रहा है।  भारत और दुनिया के सभी धर्मों में जल को जीवन आधार माना गया है।  सभी धर्मों में अलग- अलग तरीकों से इसके दर्शन होते हैं। 

संयुक्त राष्ट्रसंघ का जलशांति वर्ष-2024
बढ़ते समुद्री स्तर से पनामा द्वीप खाली करने की तैयारी
गार्दी सुगडुब द्वीप से लगभग 300 परिवारों को द्वीप छोड़कर के कहीं सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए कहा गया है, इस द्वीप पर रहने वाले गुना समुदाय की जीविका समुद्र और पर्यटन पर निर्भर है। जानिए वजह क्या है Posted on 08 Jun, 2024 07:21 PM

जलवायु संकट अपने चरम होता जा रहा है। छोटे-छोटे द्वीप खाली करने पड़ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ते समुद्री स्तर से अबकी पनामा द्वीप वासियों को द्वीप खाली करना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ते समुद्री जलस्तर के कारण पनामा के छोटे-छोटे द्वीपों को खाली करने की तैयारी चल रही है। गदी सुगडुब द्वीप से लगभग 300 परिवारों को द्वीप छोड़कर के कहीं सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए कहा गया ह

प्रतिकात्मक तस्वीर
गर्म होते महासागर, ऑक्सीजन की कमी और अम्लीकरण : महासागरों में 10 गुना बढ़ेंगे 'Hot Days'
एक अध्ययन से पता चलता है कि समुद्री लू या हीटवेव (असामान्य रूप से उच्च समुद्री तापमान की अवधि) जो पहले हर साल लगभग 20 दिनों तक होती थी (1970-2000 के बीच), वह बढ़कर 220 से 250 दिन प्रति वर्ष हो सकती है। जानिए क्या होंगे इसके परिणाम? Posted on 06 Jun, 2024 02:15 PM

भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान की हीटवेव अध्ययन

एक हालिया अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2020 से लेकर 2100 तक हिंद महासागर की सतह का तापमान 1.7 से 3.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। इस बढ़ोतरी से समुद्री हीटवेव्स और चरम चक्रवातों की घटनाएं बढ़ेंगी, जिससे मानसून पर असर पड़ेगा और समुद्र का जलस्तर ऊंचा हो जाएगा।

गर्म होते महासागर
पर्यावरण प्रदूषण एवं स्वास्थ्य संकट
पी.विविर के अनुसार, "प्राकृतिक या मान-जनित कारणों से जल की गुणवत्ता में इस प्रकार के परिवर्तनों को प्रदूषण कहा जाता है, जो आहार, मानव एवं जानवरों के स्वास्थ्य, कृषि, मत्सत्य व्यवसाय, आमोद-प्रमोद के लिये अनुपयुक्त या खतरनाक होते है।" Posted on 04 Jun, 2024 08:51 PM

पर्यावरण के किसी भी तत्व में होने वाला अवांछनीय परिवर्तन, जिससे जीव जगत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, प्रदूषण कहलाता है। पर्यावरण प्रदूषण में मानव की विकास प्रक्रिया तथा आधुनिकता का महत्वपूर्ण योगदान हैं। यहां तक मानव की वे सामान्य गतिविधियां भी प्रदूषण कहलाती है, जिनसे नकारात्मक फल मिलते हैं। उदाहरण के लिए उद्योग द्वारा उत्पादित नाइट्रोजन आक्साइड प्रदूषक हैं। हालांकि उसके तत्व प्रदूषक नही है। य

पर्यावरण प्रदूषण एवं स्वास्थ्य संकट
पर्यावरण प्रदूषण के पीछे तत्विक शक्तियों की खोज
प्रदूषण का मुख्य कारण हैं वे तत्व जो हम प्राकृतिक रूप से प्रदान करते हैं, जिन्हें हम अपने योगदानों से परिवर्तित करते हैं। उदाहरण स्वरूप, उद्योगों और वाहनों के उपयोग से उत्पन्न होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड प्रदूषण का मुख्य कारण बन गए हैं। इन तत्वों के बढ़ते स्तरों का पर्यावरण पर क्या प्रभाव होता है, इसे समझने के लिए हमें उनके प्रभाव की अध्ययनी की आवश्यकता होती है। Posted on 04 Jun, 2024 08:03 PM

प्रदूषण आज मानवता के सामने एक महत्वपूर्ण चुनौती है, जिसका सीधा असर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर हो रहा है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी की तेजी से बढ़ती उन्नति ने विभिन्न तत्वों के प्रयोग में बदलाव किया है, जिनसे प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हुई है। इस अभियान में, हम पर्यावरण प्रदूषण के पीछे तत्विक शक्तियों की खोज करने का प्रयास करेंगे, जिनसे हमारे पर्यावरण में होने वाले प्रदूषण के कारणों को समझने में

पर्यावरण प्रदूषण के पीछे तत्विक शक्तियां
×