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ऐसा विज्ञापन, जो कहता है, मत खरीदो
Posted on 07 Dec, 2010 01:06 PM गिलास में गिरता टोंटी का पानी यानी ऐसी बात जो इटली में कम ही सुनने को मिलती है क्योंकि ज्यादातर इतालवी लोग बोतल बंद पानी या कहिए एक्वॉ मिनरल ही पीना पसंद करते हैं। वहां हर आदमी साल भर में 200 लीटर बोतल बंद पानी पीता है और साल भर में पूरे इटली का हिसाब लगाएं तो 12 अरब लीटर के आसपास बैठता है, जो दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले ज्यादा है।

लोग कहते हैं कि बोतल बंद पानी का स्वाद अच्छा होता है और साथ ही यह खूब चलन में भी है। लेकिन इस बात की शायद ही किसी को ही चिंता हो कि प्लास्टिक की बोतलों से कितना प्रदूषण होता है। इससे कार्बन डाइ ऑक्साइड का भी बहुत ज्यादा उत्सर्जन होता है। मारिसा
छुटकी की मनरेगा पर जागरूकता
Posted on 03 Dec, 2010 10:24 AM

छुटकी (छोटी लड़की) समर्थन की एक ऐसी पहल है जिसके माध्यम से कठिन मुद्दों को बड़े ही सरलतम तरीके से पेश किया गया है। छुटकी श्रोताओं को नरेगा के संबंध में क्या और कैसे जैसी जानकारियां बड़े ही कॉमिक अंदाज में बता रही है। इन आसान और कॉमिक तरीको को जानने के लिये आप यह पुस्तक पढ़ सकते हैं।

NAREGA
जल है धरती की धमनी का रक्त
Posted on 10 Nov, 2010 09:27 AM

सशक्त समुदाय सरकार व कंपनियों आदि की मदद के बिना भी पहल कर सकता है

पानी को सहेजने का सवाल
Posted on 11 Oct, 2010 09:20 AM
भारत का भूजल बहुत तेजी से नीचे जा रहा है, यह सिलसिला बहुत पहले नहीं था।
मेरा गांव
Posted on 31 Aug, 2010 01:29 PM यह कैसी विडम्बना है कि किसी भी राष्ट्र जीवन के स्थूल और नकारात्मक चिह्न दूसरे देश, विशेषकर भारत में जितनी जल्दी दिखाई देने लगते हैं, शायद ही किसी दूसरे देश के जातीय जीवन में उतनी जल्दी दिखाई देते हों? यह बात इसलिए ज्यादा बल देकर रेखांकित करना जरूरी है क्योंकि हमारे राष्ट्रीय जन-जीवन में पर्यावरण के प्रतिगामी और विनाशकारी लक्षण जितनी तेजी से दिखाई पड़ रहे हैं, वैसी प्रवृत्तियां एक समृद्ध पर्यावरणीय चिन्तन वाले देश में पनपना आत्मवंचना का साक्षात प्रमाण है।अपने वर्तमान नगरीय आवास से मात्र 65-70 किलोमीटर दूरी पर स्थित जब-जब अपने गांव सिवान जाता हूं तो पहुंचते ही मुझे वह नाला दिखाई देता है, जिसमें मेरे शैशव और कैशौर्य ने कितने संक्रान्ति कालों में डुबकियां लगाकर देह और मन की तपन शान्त की है। कितनी वर्षा ऋतुओं में तट की वर्जनाओं को तोड़कर मन के उच्छल आवेग को तरंगायित होने का अवसर हाथ लगा है। यह नाला हमारे गांव की जीवन रेखा था।

सुनता रहता था, उस नाले का स्रोत केंद्र कोई अनाम छोटा सा झरना है और देखता रहता था कि उस अनाम झरने से प्रवाहित होने वाली अक्षय और अनन्त जलराशि अपने जनपद के मेरे सबसे बड़े गांव के मनुष्य सहित सभी जीवधारियों और खेतों की प्यास बुझाने वाली संजीवनी धारा है। इस नाले की आद्रता गांव के समूचे कुओं और तालाबों की धमनियों में भी रक्त संचार किए रहती थी। राष्ट्रीय स्वतंत्रता के विकास के पहले चरण अर्थात पांचवें दशक में अचानक गांव में पेयजल टंकी और नलों में उपलब्ध कराया जाने लगा। कुएं अनुपयोगी मानकर कचरों के भण्डार में तब्दील होने लगे और उपेक्षित पड़े तालाब अपना अस्तित्व खोने लगे।

आखिर क्यों उफन जाती हैं नदियां
Posted on 28 Aug, 2010 07:27 AM


मई-जून के महीनों में जब तीन-चौथाई देश पानी के लिए त्राहि -त्राहि कर रहा था, पूर्वोत्तर राज्यों में भी बाढ़ से तबाही का दौर शुरू हो चुका था। अभी बारिश के असली महीने सावन की शुरुआत है और लगभग आधा हरियाणा, पंजाब का बड़ा हिस्सा, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार का बड़ा हिस्सा नदियों के रौद्र रूप से पानी-पानी हो गया है।

river
एक नहीं, हर दिन पानी का
Posted on 27 Jul, 2010 09:24 AM समाज में तीज-त्योहारों का अपना महत्व है। धर्म की तरह समाज के बाकी हिस्सों में भी गैर-सामाजिक व राजनीतिक हिस्सों में भी पिछले कुछ वर्षों से हम सब तरह-तरह के दिवस मनाने लगे हैं। इन दिवसों का अपना महत्व हो सकता है, लेकिन उनका वजन तभी बढ़ेगा, जब हम बाकी वर्षभर इन पर अमल करेंगे।

जल दिवस उसी तरह का एक दिवस है। एक तो हम में से ज्यादातर लोगों को यह नहीं पता कि ऎसे दिवस कौन तय करता है। हम तो बस मनाने लग जाते हैं। आठ-दस घंटे में भाषण, उद्घाटन, समापन आदि करके शाम तक भूल जाते हैं। हमारे यहां वर्षा के लिए पूरे चार महीने रखे गए हैं। सबको मालूम है कि चौमासा वर्षा के स्वागत व सम्मान के लिए ही किसान समाज ने बनाया था, लेकिन उसके आने की तारीखें वर्षा लाने वाले नक्षत्रों के हिसाब से ही तय होती हैं। इसी तरह चार महीने के समापन की तिथियां भी बादल समेटने के नक्षत्रों से जोड़कर देखी गई हैं
अनुपम मिश्र
तथ्य और सत्य में अंतर था
Posted on 16 Jul, 2010 01:13 PM
प्रख्यात चिंतक धर्मपाल जी कहा करते थे कि देश को चलाने का औजार गांव और गांव के आस-पास का चरित्र है। उनके निर्देशन में हमने एक जिले को समझने का प्रयास किया था। दक्षिण का एक जिला है चिंगलपेट। वहां अंग्रेजों ने 18वीं शताब्दी में एक सर्वेक्षण किया था। वे हर गांव में गये थे। गांव का घर कैसा है, घर के सामने की गली कितनी चौड़ी है, गांव के लोग कैसे हैं, खेत मे सिंचाई कैसे होती है, उत्पादन कैसे होत
कचरे के ढेर में सेहत का सवाल
Posted on 29 Jun, 2010 12:54 PM
एक मशहूर कहावत है कि ‘सेहत खरीदी नही जा सकती।’ इसका मतलब साफ है कि कुछ चीजें आप खरीद नहीं सकते लेकिन वे मानव जीवन के लिए अनिवार्य है और उन्हें मात्राओं और कीमतों की कसौटी पर रख कर नहीं देखा जा सकता। दरअसल, यह बात कुछ समय पहले दिल्ली के मायापुरी इलाके में हुई विकिरण की घटना के संदर्भ में कही जा रही है कि किसी भी समुदाय में ठोस कचरे का उचित प्रबंधन न केवल लोगों की सेहत के लिहाज से जरूरी है, बल
स्पेस, पानी और जिंदगी
Posted on 27 Jun, 2010 08:40 AM
पानी इधर हमारी साइंटिस्ट बिरादरी के अजेंडे पर है। अजेंडा सिर्फ यह नहीं है कि पृथ्वी पर पानी खत्म हो गया तो क्या होगा, बल्कि यह है कि स्पेस में अगर कहीं पानी मिलता है तो क्या वह हमारी धरती से बाहर जीवन की संभावना का आधार बन सकता है। इधर जब से चंद्रयान-1 से मिले डेटा के विश्लेषण से चंद्रमा पर भारी मात्रा में पानी की मौजूदगी के ठोस प्रमाण मिले हैं, तब से इस संभावना पर जोरशोर से विचार हो रहा है।
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