उत्तराखंड

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विकास, प्रगति और उत्तराखंड की त्रासदी
Posted on 12 Jul, 2013 02:28 PM पश्चिम का विज्ञान अधूरा है और अब तो वह पूंजीवाद का नौकर हो कर रह गया है। साथ ही यह साधारण मनुष्य को भयंकर रूप से अहंकारी, आस्थावा
आपदा प्राकृतिक, मौत हमने बुलाई
Posted on 09 Jul, 2013 11:09 AM यदि नदी के प्राकृतिक मार्गों में निर्माण होगा तो प्रकृति इसी तरह अतिक्रमण हटाएगी
जी डी अनशन में कब दिखेगी समाज की हनक
Posted on 09 Jul, 2013 09:15 AM दुर्भाग्यपूर्ण है कि उत्तराखंड त्रासदी के बावजूद भी शासन आज हरिद्व
GD Agrawal
कहीं बन न जाए राजनीतिक आपदा
Posted on 07 Jul, 2013 02:13 PM अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 22 मई 2013 को लैंडसेट-8 उपग्रह के
Urban management
भगीरथ तो मन में ही बसा
Posted on 02 Jul, 2013 11:36 AM 16वीं और 17वीं सदी तक गंगा-यमुना इलाका घने जंगलों से ढंका था। पर ध
आपदा प्रबंधन के मोर्चे पर
Posted on 02 Jul, 2013 10:47 AM कुदरत को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। अलबत्ता मुकम्मल तैयारी हो तो प्राकृतिक आपदा से होने वाली तबाही बहुत हद तक कम की जा सकती है। मौसम के तीव्र उतार-चढ़ाव और जलवायु बदलाव के दौर में आपदा प्रबंधन की अहमियत और बढ़ गई है। लेकिन उत्तराखंड की त्रासदी से एक बार फिर जाहिर हुआ है कि हमारे देश में आपदा प्रबंधन बहुत लचर है। इसकी खामियों की पड़ताल कर रहे हैं, प्रसून लतांत।

प्राकृतिक आपदाएं प्राचीन काल से आती रही हैं, जिन्हें हम प्रकृति का, ईश्वर का प्रकोप मान कर छाती पर पत्थर रख कर फिर नए सिरे से जीवन की शुरुआत करते रहे हैं। हमारे देश में न केवल बड़ी आपदाओं से बल्कि छोटी-मोटी दुर्घटनाओं और बीमारियों तक से मुकाबला करने और उससे निजात पाने के तौर-तरीके उपलब्ध थे पर नए तरह के तथाकथित आधुनिक ज्ञान-विज्ञान ने हमारी परंपराओं और सरोकारों को पिछड़ा बताकर हमें उन तौर-तरीकों से अलग-थलग कर दिया है।

उत्तराखंड में आसमान फटने, लगातार मूसलाधार बारिश होने और पहाड़ के टूट कर बिखरने से हुई तबाही में जानमाल की जो हानि हुई है, उससे एक बार फिर आपदा प्रबंधन पर सवालिया निशान लगा है। अभी तक आपदा प्रबंधन के नाम पर किसी एजेंसी की इस मामले में कोई भूमिका देखने सुनने को नहीं मिल रही है। उलटे उसका खोखलापन ही सामने आ रहा है। राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने तक सीमित हैं। यह भी तय नहीं हो पा रहा है कि केदारनाथ घाटी में आई आपदा राष्ट्रीय है या स्थानीय। विपक्ष इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग कर रहा है तो केंद्र इस मामले में चुप्पी साधे हैं। पर्यावरणविद और भू-वैज्ञानिक जहां इसे प्रकृति के साथ खिलवाड़ और अंधाधुंध विकास का दुष्परिणाम बता रहे हैं वहीं कुछ अंधविश्वासी लोग ईश्वर या दैवीय प्रकोप बताकर लोगों को भ्रम में डाल रहे हैं।
चुनौतियों के बरक्स
Posted on 01 Jul, 2013 04:10 PM अंतरराष्ट्रीय मंचों के साथ-साथ राष्ट्रों की सरकारें भी आपदा प्रबंध
आपदा का आर्थिक कनेक्शन
Posted on 01 Jul, 2013 11:16 AM यदि हमारे दल व मीडिया ऐसे साजिशों से अनभिज्ञ हैं, तो यह मामला और जागरूक होने का है। यदि जानते-बूझते वे इनकी वकालत कर रहे हैं, तो
disaster
आपदा और पर्यावरण रक्षक
Posted on 30 Jun, 2013 03:15 PM विकास के साथ-साथ हो सकती है पर्यावरण रक्षा। इस बात की हजारों मिसाल
शीशा पत्थर पर दे मारना
Posted on 30 Jun, 2013 02:39 PM बस जरा सी गफलत होती है और जंगल,
आदमी की गिरफ्त से छूटकर,
दीवारों की कवायद में शामिल
हो जाता है!

धूमिल
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