उत्तराखंड

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उत्तराखंड में पत्रकारिता कैसी हो?
Posted on 10 Jun, 2014 01:09 PM

उत्तराखंड में पर्यावरण को बचाने की चिंता रही हो या स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय लोगों

सहभागी लोकतंत्र की चुनौतियां
Posted on 09 Jun, 2014 04:17 PM उत्तराखंड एक मिनी भारत है। जो कि हर नदी-घाटी में एक दूसरे से बिल्कु
मौसम परिवर्तन के संदर्भ में टिकाऊ जीवन पद्धतियों की समझ
Posted on 09 Jun, 2014 12:03 PM

प्रस्तुत दस्तावेज में हमने कोशिश की है कि सदियों से दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिकीय तंत्र ‘उत्तराखंड‘ में रहने वाले लोगों की जीवन परंपरा में टिकाऊ जीवन शैली के सूत्र तलाशें। हमने यहां रहने वाले लोगों की बुद्धि तथा जीवनशक्ति के संयोग से बने जीवन के आधार - खेती-बाड़ी को अपनी वार्ता का केंद्र बनाया। प्रशिक्षित शोधार्थियों तथा शोध संस्थाओं को यह शोध प

pine forest
उत्तराखंड का कहानी, लोगों की जुबानी
Posted on 08 Jun, 2014 10:57 AM उत्तराखंड का अधिकतर भू-भाग पहाड़ी है। उत्तराखंड की स्थापना 9 नवम्बर 2000 को हुई अर्थात उस दिन उत्तराखंड को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता मिली। उत्तराखंड के पूरे भू-भाग को 13 भागों अर्थात जिलों के आधार पर जाना जाता है।
नदियों को बचाने का सफल इतिहास
Posted on 06 Jun, 2014 04:57 PM

उत्तराखंड में नदी बचाओ अभियान ने सतत संघर्ष कर अनेक बांधों का निर्माण रद्द करवाया है। इसके फलस्वरूप कई नदियों का प्रवाह पुनः निर्बाध हुआ है। इस पूरे आंदोलन में महिलाओं की अत्यंत सक्रिय भूमिका रही है। उत्तराखंड के नदी बचाओ अभियान की सफल यात्रा को हमारे सामने लाता महत्वपूर्ण आलेख।

उत्तराखंड के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जनता के साथ मिलकर सन् 2008 को नदी बचाओ वर्ष घोषित करके पदयात्राएं की थी। उत्तराखंड के गठन से लोगों को आश थी कि यह नया ऊर्जा प्रदेश नौजवानों का पलायन रोकेगा और उन्हें रोजगार मिलेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यहां कई निजी कम्पनियों ने बिजली बनाने के नाम पर नदियों के उद्गमों को संकट में खड़ा करने हेतु पूरी ताकत झोंक रखी थी और निवेश का लालच देकर समझौता कराने पर आमादा थीं। इसके विरोध में लोग 2003 से जून 2007 तक विभिन्न स्थानों पर जल, जंगल, जमीन बचाने के मुद्दों पर संघर्ष करते रहे। अंततः सन् 2007 में उत्तराखंड के सामाजिक संगठनों को एक साथ इकट्ठा होने का एक ऐतिहासिक मौका भी मिला। इसकी पूर्व तैयारी के लिए उत्तरकाशी में भागीरथी एवं जलकुर घाटी में दो स्थानों पर बैठकें की गई। इसमें सुझाव आया कि नदियों के संकट पर अब राज्य स्तर पर एक व्यापक नदी बचाओ अभियान की आवश्यकता है। दूसरी बैठक 8 जुलाई, 07 को स्व. सरला बहन की पुण्य तिथि पर लक्ष्मी आश्रम कौसानी में हुई। यहां पर नदी बचाओ अभियान की रूप-रेखा बनाई गई। प्रत्येक नदी-घाटी में संयोजक चुने गए।

उत्तराखंड त्रासदीः क्या हुआ, क्या बाकी
Posted on 02 Jun, 2014 09:10 AM उत्तराखंड के तमाम पर्वतीय इलाकों में बादल के कहर ने आपदा प्रबंधन तंत्र के दावों और वादों की धज्जियां उड़ा दी। संकट को भापने, बचाव के उपाय, जानकारियों का आदान-प्रदान तथा राहत के मोर्चे पर तंत्र पूरी तरह असफल रहा। 16 जून को आपदा का एक साल पूरा हो जाएगा। ऐसे में आपदा प्रबंधन तंत्र की ओर निगाहें जाना स्वाभाविक है।केदारघाटी समेत उत्तराखंड के तमाम पर्वतीय इलाकों में बीते साल जो प्राकृतिक आपदा आई थी उसके असर की भयावहता के लिए आपदा प्रबंधन तंत्र को भी काफी हद तक जिम्मेदार माना गया था। इसने संकट को भांपने में शुरुआती चूक तो की ही, बचाव और राहत के मोर्चे पर भी यह बुरी तरह पस्त पड़ गया था।

इस भयानक आपदा को हुए अब साल भर होने को है। केदारनाथ सहित उत्तराखंड के चारों धामों की यात्रा शुरू होने वाली है। इसलिए सरकार और खास तौर पर उसके आपदा प्रबंधन तंत्र की तैयारियों की तरफ निगाहें टिकना स्वाभाविक है। उम्मीद की जा रही है कि इतनी बड़ी आपदा से सबक सीखकर प्रदेश सरकार का आपदा प्रबंधन विभाग अब पहले से बेहतर तरीके से तैयार होगा।
आपदा के अवशेष पर केदारनाथ यात्रा
Posted on 01 Jun, 2014 02:35 PM पिछले वर्ष 16-17 जून को उत्तराखंड के पहाड़ों पर पानी कहर बनके बरसा
विकेंद्रीकृत विकास की खोज
Posted on 30 May, 2014 04:39 PM कुछ मित्रों को विकेंद्रीकरण के विचार से कुछ आपत्ति हो सकती है क्य
उत्तराखंडी मानस और सांस्कृतिक लोकतंत्र की चुनौतियां
Posted on 30 May, 2014 11:54 AM हम पहाड़ के लिए कुछ कर नहीं पाए, हमको उसके लिए कुछ करना चाहिए। मे
वनों पर स्थानीय लोगों का अधिकार हो
Posted on 28 May, 2014 01:41 PM भुवन पाठक द्वारा एस.पी.सत्ती का लिया गया साक्षात्कार।

आप अपना परिचय दीजिए।
मेरा नाम एस.पी. सती है। मैं, वर्तमान में गढ़वाल विश्वविद्यालय में भू-विज्ञान पढ़ाता हूं और जब, 1994 से राज्य आंदोलन की शुरूआत, तभी से मैं, उसमें संयुक्त छात्र संघर्ष समिति में केन्द्रीय संयोजक राज्य स्तर के तौर पर रहा और तमाम बड़े-बड़े कार्यक्रमों में भाग लिया।
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