उत्तराखंड

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हिमालय के एक जलस्रोत की कहानी
Posted on 26 Jun, 2016 09:37 AM
लगभग आधे भारत में पानी की किल्लत ने देश के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। सरकारी अनुमान के मुताबिक लगभग 33 करोड़ लोग सूखे की चपेट में हैं। सूखे से परेशान ग्रामीण किसान पलायन को भी मजबूर हो रहे हैं। किसानों का आरोप है कि सरकारी उदासीनता ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा है।
500 जलधाराओं का होगा पुनर्जीवन
Posted on 25 Jun, 2016 10:33 AM


प्राकृतिक जलधाराओं से ही नदियों का स्वरूप बनता है। नदियों के संरक्षण की बात राज्यों से लेकर केन्द्र तक हो रही है। मगर सूख रही जल धाराओं के प्रति हमारी चिन्ता दिखाई नहीं दे रही है। यही नहीं हमारे पास जलधाराओं का कोई आँकड़ा भी नहीं है।

जनता ही बचा सकती है जंगल
Posted on 21 Jun, 2016 04:35 PM
दुर्भाग्य है कि जो जनता सदियों से जंगलों को पालती-पोसती रही और जंगलों को बचाना जिसकी परम्परा रही, जब कभी पेड़ों पर कुल्हाड़ियाँ और आरियाँ चलीं तो वह उन पर चिपक गई, वही जनता आज जंगलों को जलाने की दोषी ठहराई जा रही है।
जलते जंगल व्याकुल लोग
Posted on 14 Jun, 2016 12:43 PM
वनों की हिफाजत और पौधरोपण के काम में नाम मात्र की रकम खर्च की
अनियोजित विकास की मार प्राकृतिक आपदा
Posted on 11 Jun, 2016 04:18 PM


उत्तराखण्ड में इस साल मौसम ने फिर से करवट ली है। बेतरतीब बरसात और तूफान ने जहाँ लोगों के आवासीय भवनों की छतें उड़ाकर लील ली वहीं अत्यधिक वर्षा के कारण बादल फटने और बाढ़ के प्रकोप से लोगों की जानें खतरे में पड़ गई है। मौसम इतना डरावना है कि प्रातः ठीक-ठाक दिखेगा और सायं ढलते ही मौसम का विद्रुप चेहरा बनने लगता है।

उत्तराखण्ड में फटे बादल, भारी तबाही का अंदेशा (Uttarakhand cloud burst, the fear of massive destruction)
Posted on 30 May, 2016 05:22 PM
उत्तराखण्ड चारधाम यात्रा मार्ग पर फिर कहर बरपा है। शनिवार की रात तीन जगहों पर बादल फटने से भारी तबाही हुई है। कई जगह सड़कें बह गई हैं। बादल फटने की घटनाओं से हुई भारी बारिश की वजह से पहाड़ों में भू-स्खलन कई जगह हुआ है। भारी बारिश और भू-स्खलन की वजह से पाँच से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। भू-स्खलन के कारण राजमार्गों और केदारनाथ यात्रा मार्ग पर जगह-जगह
फिर प्राकृतिक आपदा की चपेट में उत्तराखण्ड
Posted on 30 May, 2016 04:31 PM


टिहरी जनपद की भिंलगनाघाटी हमेशा से ही प्राकृतिक आपदाओं की शिकार हुई है। साल 1803 व 1991 का भूकम्प हो या 2003, 2010, 2011 या 2013 की आपदा हो, इन प्राकृतिक आपदाओं के कारण भिंलगनाघाटी के लोग आपदा के निवाला बने हैं।

उत्तराखण्ड के 3100 हेक्टेयर जंगल आग में स्वाहा
Posted on 30 May, 2016 09:56 AM


उत्तराखण्ड के जंगलों में लगी आग ने विकराल रूप धारण कर लिया है। 1993 के बाद एक बार फिर जंगलों में लगी आग को बुझाने के लिये सेना का हेलीकाप्टर उतारा गया। जिला प्रशासन ने पहले चरण में उन जगहों को चिन्हीकरण किया है, जहाँ आग आबादी की ओर बढ़ रही है।

पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, नैनीताल, बागेश्वर, पिथौरागढ़ जिलों सहित हरिद्वार और ऋषिकेश के जंगलों में 15 दिनों तक लगातार आग धधकती रही। इस मौसम में अब तक आग की 213 घटनाएँ हो चुकी हैं। राज्य के गढ़वाल और कुमाऊँ कमिश्नरी में 3100 हेक्टेयर जंगल आग लगने से राख हो चुके हैं। यही नहीं राजाजी और कार्बेट पार्क का 145 हेक्टेयर हिस्सा आग ने अपने हवाले कर दिया।

वनाधिकार ही वन आग का समाधान है
Posted on 28 May, 2016 09:31 AM
जंगल बचाने की आड़ में वनवासी समुदाय को वनों से बेदखल कर दिया गया। परिणामस्वरूप वन अनाथ हो गए। वन विभाग और वनों का रिश्ता तो राजा और प्रजा जैसा है। यदि वन ग्राम बसे रहेंगे तो उसमें रहने वाले अपना पर्यावास, आवास व पर्यावरण तीनों का पूरा ध्यान रखते हैं। परन्तु आधुनिक वन प्रबन्धन का कमाल जंगलों की आग के रूप में सामने आ रहा है।
पर्यावरण के ठेकेदारों का नहीं कोई अता-पता
Posted on 20 May, 2016 11:37 AM
पिथौरागढ़। दावानल की प्रचण्ड ज्वालाएं सुनहरी घाटियों के लिये अभिशाप बन गयी हैं, पहाड़ों में जंगलों में लगी आग के कारण वनों का सौन्दर्य नष्ट होता जा रहा है। खाक में विलय होते वन पर्यावरण जगत में गहरे संकट का कारण बनते जा रहे हैं, वन्य जीव-जन्तुओं का अब वनों में रहना दुश्वार हो गया है। सूखते जल स्रोतों ने लोगों के माथे की चिंताएं बढ़ा दी हैं। अन
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