उत्तराखंड

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भीमताल झील में महासीर मत्स्य प्रजातियों की पिछले दशक में जनसंख्या एवं प्रजनन का व्यवहारिक अध्ययन (Practical studies of population and fertility in the last decade of Mahasir Fishery species in Bhimtal Lake)
Posted on 01 Sep, 2017 11:04 AM
हिमालय के कुमाऊँ क्षेत्र को छकाता अथवा पश्चिम-मूर क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस क्षेत्र में विभिन्न आकार की सुन्दर शीतजलीय झीलें विद्यमान हैं। जैसे कि नैनीताल, भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल, पन्नाताल (गरुड़ताल) एवं खुरपाताल में वर्षभर जल उपलब्ध रहता है जबकि सरियाताल, मलवाताल, सुखाताल, एवं खोरियाताल, केवल वर्षाऋतु के बाद ही झील का रूप ले लेती हैं एवं ग्रीष्मकाल में सूख जाती हैं।
नैनीताल झील के पारिस्थितिकीय संतुलन में जलीय पौधों की भूमिका (Role of aquatic plants in the ecological balance of Nainital lake)
Posted on 31 Aug, 2017 04:57 PM
उत्तराखंड राज्य 9 नवम्बर, 2000 को भारतीय गणतन्त्र का 27वां राज्य बना जिसका नाम उत्तरांचल रखा गया था। मध्य हिमालय में 28047’ से 31020’ उत्तर एवं 77035’ से 80055’ पूर्व देशान्तर तक फैला तथा 198 से 7,116 मी. समुद्रतलीय ऊँचाई वाला यह राज्य 53,483 वर्ग कि.मी.
पर्वतीय क्षेत्र की प्रमुख मत्स्य जैव विविधता एवं अभ्यागत मत्स्य प्रजातियों का समावेश
Posted on 31 Aug, 2017 04:54 PM
मत्स्य विविधता एवं उनका संरक्षण आज केवल वातावरण एवं परिवेश के दृष्टिकोण से आवश्यक है अपितु खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के डाटाबेस के अनुसार लगभग 708 मछलियाँ मीठे जल की हैं जिसमें लगभग 3.32 प्रतिशत मछलियाँ शीतजल की हैं। पर्वतीय प्रदेश में आज बहुत सी अभ्यागत मछलियाँ प्रवेश कर गयी हैं जिनका मत्स्य पालन में अच्छा घुसपैठ है। विदेश
महासीर मछलियों के आनुवंशिक चरित्र निर्धारण एवं संरक्षण में विविध राइबोसोमल जीन अनुक्रमों का उपयोग
Posted on 31 Aug, 2017 04:51 PM
भारत में महासीर की तकरीबन सात प्रजातियाँ पायी जाती हैं जो देश के अलग-अलग हिस्सों में उपलब्ध हैं। इन सभी प्रजातियों को वैज्ञानिकों ने उनके शारीरिक बनावट एवं संरचना के आधार पर वर्गीकृत किया है। किन्तु निरंतर पर्यावरणीय परिवर्तनों के वजह से इनके शारीरिक बनावट एवं संरचना में कुछ बदलाव आया है जिसके कारण ठीक प्रकार से इनकी पहचान एवं उसके फलस्वरूप पारिस्थितिकी सन्तुलन हेतु इनका संरक्षण करना कठिन हो
सुनहरी महशीर
पारिस्थितिकीय जोखिम के मूल्यांकन हेतु आनुवंशिक विषाक्तता जैव-चिन्हकों की उपयोगिता (The usefulness of genetic toxicity bio-markers to evaluate ecological exposure)
Posted on 31 Aug, 2017 04:46 PM
मानव जाति के पिछले कुछ दशकों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है एवं प्रतिदिन हजारों की तादाद में नये रासायनिक उत्पाद अस्तित्व में आ रहे हैं, जिनका उपयोग कृषि, उद्योग, चिकित्सा, खाद्य, सौन्दर्य सामग्री इत्यादि में किया जा रहा है। कारखानों से निकले संश्लेषित रसायन जिनमें भारी धातु तत्व, कीटनाशक इत्यादि हमारे प्राकृतिक जल संसाधनों को प्रदूषित कर रहा है। इनमें से कुछ
भौगोलिक सूचना तंत्र (GIS) और मात्स्यिकी (Geographic Information Systems (GIS) and Fisheries)
Posted on 31 Aug, 2017 12:25 PM

जलकृषि तटीय क्षेत्रों में एक महत्त्वपूर्ण व्यवसाय माना जाता है जिससे लाखों को रोजगार एवं

शीत जल मत्स्यिकी - संसाधन एवं पुनर्वासन (Cold Water Fisheries - Resources & Rehabilitation)
Posted on 31 Aug, 2017 12:15 PM

जल संसाधनों में इन मछलियों की अधिकाधिक उपलब्धता के लिये विभिन्न प्रसार एवं पुनर्वासन कार्

हिमालय में प्राकृतिक आपदा और प्रबन्धन में सरकार की भूमिका (Role of Government in Natural Disasters and Management in the Himalayas)
Posted on 29 Aug, 2017 11:39 AM
मानव इस पृथ्वी पर आदिकाल से जीवन-निर्वाह करता आया है। प्रकृति के साथ रहते हुए वह आये दिन तमाम तरह की आपदाओं से भी संघर्ष करता रहा है। आपदाएँ चाहे प्राकृतिक हों या मानवजनित यह दोनों रूपों में घटित होकर मानव जीवन को प्रभावित करती हैं। आपदा का दुःखद परिणाम अन्ततः जन-धन व सम्पदा के नुकसान के रूप में हमारे सामने आता है। सामान्य बोलचाल की भाषा में किसी प्राकृतिक रूप से घटित घटना के फलस्वरूप जब मान
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