उत्तर प्रदेश

Term Path Alias

/regions/uttar-pradesh-1

उत्तराखंडः प्रकृति नहीं विकास को कोसें
Posted on 15 Oct, 2010 03:43 PM अनियंत्रित और मैदानी प्रकृति का विकास उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इलाकों के लिए विनाशकारी सिद्ध हो रहा है। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि पड़ोस में लगी आग यदि हम नहीं बुझाएगें तो हमारा घर भी जल कर भस्म हो जाएगा। पूरा उत्तरी भारत इस बार उत्तराखंड की बाढ़ की भयावहता का विस्तार बन कर रह गया। इस विभीषिका का पुनरावृति रोकने के लिए आवश्यक भी है कि पहाड़ों को नैसर्गिक रूप से बचे रहने दिया जाए।-का.सं.सितम्बर के तीसरे सप्ताह की अखण्ड बारिश ने पूरे उत्तराखण्ड को तहस-नहस करके रख दिया था। अनुमान है कि इस दौरान दो सौ लोग तथा एकाध हजार पशु मारे गए। एक हजार मकान और फसल से भरे खेत भी नष्ट हो गए थे और अनेक सड़कें भी बह गई। वर्ष 1956, 1970 एवं 1978 में भी इस प्रकार की बारिश हुई थी। लेकिन तब इस प्रकार की तबाही नहीं हुई थी। मेरे बचपन में जहां गोपेश्वर गांव की आबादी 500 थी वह आज 15000 हो गई है। नए फैले हुए गोपेश्वर में बरसात के दिनों में टूट-फूट एवं जल-भराव की घटना कभी कभार होती रहती हैं लेकिन जो पुराना गांव है उसमें अभी तक इस प्रकार की गड़बड़ी नहीं के बराबर है। गोपेश्वर मन्दिर के नजदीक भूमिगत नाली पानी के निकास के लिए बनी थी जिसमें जलभराव की नौबत ही नहीं आती थी।

मनरेगा यानी कुछ भी चलेगा
Posted on 25 Aug, 2010 01:31 PM
उत्तर प्रदेश में अच्छे इरादों का बंटाधार कैसे होता है इसकी ताजा मिसाल है महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना। जयप्रकाश त्रिपाठी की रिपोर्ट

सोनभद्र जिले के नगवां ब्लॉक में पड़ने वाले पड़री को सरकारी दस्तावेज नक्सल प्रभावित गांव बताते हैं। लेकिन यहां जाने पर पता चलता है कि गांव पर सरकारी उपेक्षा का प्रभाव भी कम नहीं। जर्जर मकान, कच्ची गलियां और उनमें नंगे बदन दौड़ते बच्चे इसकी गवाही देते हैं। इसी गांव में हमें परमल मिलते हैं। साइकिल पंचर जोड़कर जैसे-तैसे अपना परिवार पालने वाले परमल बताते हैं कि उनके एक बच्चे ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत तब मजदूरी की जब वह पेट में था।

title=
कमेले ने प्रदूषित किया पानी, पर्यावरण
Posted on 21 Jul, 2010 11:47 AM एक ओर तो बढ़ते प्रदूषण तथा घटते जलाधि प्राकृतिक संसाधनों से वैश्विक बृद्धिजीवी चिन्तित हैं लेकिन दूसरी ओर सरकारी तंत्र की छत्र-छाया में ही सरेआम यह सब किया जा रहा है। इसके जिम्मेदारों को न तो किसी का भय है और न ही आने वाली पीढ़ियों की चिन्ता? कानून के रखवाले उनकी मुटठी में हैं तो कानूनी पेचीदगियां उनकी हम सफर! फिर कैसे होगा निर्मल वातावरण का सपना सच?
काली नदी का काला सफर
Posted on 16 Jul, 2010 12:52 PM
गंगा की सहायक नदी के रूप में जानी जाने वाली लगभग 300 किलोमीटर लम्बी काली नदी (पूर्व) मुजफ्फरनगर जनपद की जानसठ तहसील के अंतवाड़ा गांव से प्रारम्भ होकर मेरठ, गाजियाबाद, बुलन्दशहर, अलीगढ़, एटा व फर्रूखाबाद के बीच से होते हुए अन्त में कन्नौज में जाकर गंगा में मिल जाती है। कुछ लोग इसका उद्गम अंतवाड़ा के एक किलोमीटर ऊपर चितौड़ा गांव से मानते हैं। यह नदी उद्गम स्रोत से मेरठ तक एक छोटे नाले के रूप म
गोमती: एक नदी की उदास कहानी
Posted on 03 Feb, 2010 08:42 AM लखनऊ। दरअसल गोमती अवध को परमेश्वर से वरदान के रूप में मिली नदी है। शिवपुराण में नदी को आदेश दिया गया है कि वह मां बन कर जनता का लालन-पालन करे। गोमती, प्रतिकूल परिस्थितियों में भी माता की भूमिका निभा रही है, यह बात दीगर है कि अवध खासकर लखनऊ के लोग अपनी भूमिका भूल चुके हैं। ऋग्वेद के अष्टम और दशम मण्डल में गोमती को सदानीरा बताया गया है। शिव महापुराण में भगवान आशुतोष ने नर्मदा और गोमती नदियों को अपनी
सीएसई की आदर्श जल संग्रहण परियोजना
Posted on 31 Dec, 2009 07:40 PM

बीपीसीएल नोएडा की वर्षाजल संग्रहण व्यवस्था

शहरों में पानी संकट से निपटने के अपने प्रयासों में दिल्ली स्थित एक गैर सरकारी संगठन ‘सेंटर फॉर साइंस एण्ड इन्वायरमेंट’(सीएसई) दिल्ली शहर में ऐसी अनेक आदर्श वर्षाजल संग्रहण व्यवस्थाएं खड़ी करने में सहयोग कर रही हैं, जिनसे इन मॉडलों की देखा-देखी अन्य लोग भी वर्षाजल संग्रहण के लिए उत्साहित हों और वे जान सकें कि शहरों में वर्षाजल संग्रहण की इस तकनीकी
जल स्वराज अभियान के पहल-प्रयास
Posted on 31 Dec, 2009 07:24 PM पानी पर कार्यशाला

कानपुर आधारित एक गैर-सरकारी संगठन ‘इको फ्रेंड्स’ ने पानी के कई सवालों को लेकर 27-28 सितम्बर 2003 के बीच एक दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया, जिसमें कानपुर के 29 स्कूलों के 10वीं से लेकर 12वीं कक्षा तक के 80 से ज्यादा छात्रों के साथ-साथ अध्यापकों ने भी भाग लिया।

प्रदूषण और अवर्षण से दम तोड़ रहा रिहंद
Posted on 30 Nov, 2009 09:01 PM

उत्तर भारत में उर्जा संकट बेकाबू होने का खतरा


अगली बरसात तक निर्बाध उत्पादन के लिए न्यूनतम जलस्तर को बनाये रखने के लिए जरुरी है कि बाँध के जल को संरक्षित रखा जाए। गौरतलब है कि न्यूनतम जलस्तर के नीचे जाने पर बिजलीघरों की कूलिंग प्रणाली हांफने लगती है, अवर्षण की निरंतर मार झेल रहे रिहंद की वजह से पिछले पांच वर्षों से ग्रीष्मकाल में ताप विद्युत् इकाइयों को चलाने में दिक्कतें आ रही थी, लेकिन इस वर्ष का खतरा ज्यादा बड़ा है।
प्रदूषण के अथाह ढेर पर बैठा रिहंद समूचे उत्तर भारत में अभूतपूर्व उर्जा संकट की वजह बन सकता है। लगभग 15,000 मेगावाट के बिजलीघरों के लिए प्राणवायु कहे जाने वाले रिहंद बाँध की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि आने वाले दिनों में रिहंद के पानी पर निर्भर बिजलीघरों से उत्पादन ठप्प हो सकता है। आज रिहंद बाँध यानि कि पंडित गोविन्दवल्लभपंत सागर जलाशय का स्तर 848.7 फिट रिकॉर्ड किया गया जो पिछले वर्ष की तुलना में 6.7 फिट कम और वास्तविक न्यूनतम जलस्तर से मात्र 18.7 फिट अधिक है। अगली बरसात तक निर्बाध उत्पादन के लिए न्यूनतम जलस्तर को बनाये रखने के लिए जरुरी है कि बाँध के जल को संरक्षित रखा जाए
Rihand
प्राकृतिक सफाईकर्मी गिद्ध पर एक नजर
Posted on 27 Nov, 2009 08:21 AM एशियाई पर्यावरण के संतुलन में गिद्धों की बड़ी भूमिका है।सदियों से ये गिद्ध ही मरे हुए जानवरों के अवशेष
vulture
संकट में सारस
Posted on 21 Nov, 2009 08:46 AM सारस पक्षी के लिये दुनिया का एक मात्र स्थल होने के बावजूद इटावा को पूरी तरह से सरकारी तौर पर उपेक्षित रखा गया है,जब कि सर्वोच्च न्यायालय के सारस संरक्षण के आदेशों को बलाये ताक रख कर आजतक ना तो केन्द्र सरकार और ना ही उत्तर प्रदेश सरकार ने कोई ठोस कार्य योजना अमल में नहीं लाई गई है.जब कि सारस पक्षी को उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य पक्षी का दर्जा देकर महज खाना पूरी कर रखी है.
सारस पक्षी
×