Posted on 15 May, 2013 03:17 PM1. वाणसागर नहर परियोजना क्या है? 2. परियोजना का उद्देश्य क्या है? 3. अब तक खर्च धन व तमाम बाधाएं, जिसकी वजह से यह परियोजना निकट भविष्य में पूरी होती नहीं दिख रही।
Posted on 05 May, 2013 12:41 PM1. दरिया हमारे भाई हैं, क्योंकि वे हमारी प्यास बुझाते हैं। नदियां हमारी नौकाओं का परिवहन करती हैं और हमारे बच्चों का पेट भरती हैं। 2. ‘‘बिना जानवरों के मनुष्य का अस्तित्व ही क्या है? जिस दिन पशु नहीं रहेंगे, उस दिन मनुष्य अपनी आत्मा के भयानक एकाकीपन में घुटकर मर जाएगा। जो कुछ पशुओं के साथ होता है वह जल्द ही मनुष्य के साथ भी गुजरेगा। सभी चीजें एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं।
मेजा वन रेंज के अधिकारियों के लिए दुर्लभ काले हिरणों की मौत से शायद कोई फर्क नहीं पड़ता। पिछले महीने कुत्तों की शिकार बनीं दो गर्भवती हिरणों की मौत के बाद भी वन विभाग नहीं जागा। ग्रामीणों के काफी हो-हल्ला मचाने पर वन रेंज का एक दरोगा मौके पर पहुंचा और मारी गई हिरण के शव को उठाकर चला गया। उसके बाद उधर कोई अधिकारी झांकने नहीं गया। काले हिरण मर रहे हैं। वन विभाग के अधिकारी आँख मूंदे हुए हैं। काश ये बोल पाते तो खुद के उपर हो रहे जुल्म के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते। तब काले हिरणों इलाके में राजनैतिक मुद्दा बन सकते। तब शायद सरकारें इस ओर थोड़ा ध्यान देतीं। 1854 में जब गोरे लोग अमरीका में रेड इंडियनों से ज़मीन खरीदने का समझौता कर रहे थे तब सिएटल के एक रेड इंडियन नेता ने गोरों पर उपरोक्त टिप्पणी की थी। यह जैव विविधता व पर्यावरण को समझने के लिए सबसे अच्छा वक्तव्य है। इलाहाबाद के मेजा-कोरांव अंचल में बनाए जा रहे पॉवर प्लांट के कारण उपजे त्रिविध मानवीय संकट व जैव विविधता पर आसन्न खतरे को देखकर उस रेड इंडियन की याद आती है, जिसकी भविष्यवाणी आज पूरे दुनिया में सच साबित हो रही है। बिजली विकास के लिए लगाए जा रहे कारखाने, अधाधुंध अवैध खनन, बाजार पैदा होने की लालच में रात-दिन बनाई जा रहीं दुकानों व बढ़ते आवागमन के शोर-गुल से यहां दुर्लभ काले हिरणों को जिस तरह से अपनी जान गँवानी पड़ रही है, उसे देखकर लगता है कि मनुष्यों व जानवरों के बीच सदियों का सहअस्तित्व जीवन बड़े ही दर्दनाक ढंग से समाप्त होने की कगार पर पहुंच गया है। शायद यह मानवीय जगत के लिए काफी भयावह होगा। उस रेड इंडियन ने दुनिया को इसी भयनाक परिणाम के लिए ही तो चेताया था।
Posted on 29 Apr, 2013 04:36 PM1. चौतरफा संकट से जूझ रहे हैं पॉवर प्लांट से विस्थापित परिवार 2. मेजा उर्जा निगम प्रा. लि. को दी गई चेतावनी
विस्थापन सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी है, क्योंकि इसमें शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की यातनाएँ दी जाती है। विस्थापन का दर्द इन परिवारों की बेबसी व परेशानी को देखकर आसानी से समझा जा सकता है। दरअसल सवाल सिर्फ हैंडपंपों से निकल रहे प्रदूषित पानी का ही नहीं है। बुनियादी बात है पॉवर प्लांट अधिकारियों के झूठे वायदे की, जो अब विस्थापित परिवारों के लिए भारी पड़ रहा है। ज़मीन अधिगृहीत करते समय सैकड़ों सपने दिखाए गए थे। लेकिन इस मौजा से विस्थापित दर्जनों परिवारों का हाल तो और भी बुरा है। इलाहाबाद। अपने घर व ज़मीन से विस्थापित हुए इन परिवारों को अब बिजली उत्पादन के विकास की बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। जिला प्रशासन व प्लांट मैनेजरों के कोरे आश्वासन से सैकड़ों परिवारों का भविष्य दाँव पर लग गया है। मेजा उर्जा निगम प्रा. लि. ने विस्थापन एवं पुर्नवास नीति का पालन नहीं किया। किसानों से ज़मीन लेकर उनके परिवार को जंगल में ला पटका। पुनर्वास के नाम पर एक-एक परिवार को केवल 150 वर्ग मी0 रिहायशी भूमि पट्टा के रूप में दी गई और पेयजल के लिए चार हैंडपंप लगाकर फ़ुरसत पा लिया गया। इनमें दो खराब हो गए हैं। बाकी बचे दोनों हैंडपंपों से आर्सेनिक युक्त पानी निकल रहा है, जो पीने लायक ही नहीं हैं। दूषित पानी से यहां गंभीर बीमारी का खतरा मंडरा रहा है। अपने जल, जंगल व ज़मीन से बेदखल किए गए इन किसान परिवारों का कहना है कि ज़मीन अधिग्रहण के वक्त प्लांट के मैनेजरों ने जल निगम की तर्ज पर पाइप लाइन से शुद्ध पेयजल आपूर्ति का वायदा किया था। लेकिन उन्हें पीने के पानी के लिए अब आन्दोलन करना पड़ रहा है।
Posted on 21 Apr, 2013 10:17 AMहिण्डन नदी का उदगम् सहारनपुर जिले के गांव पुर का टांका गांव से हुआ। हिण्डन शब्द का उद्भव हिण्ड शब्द से हुआ जिसका अर्थ है इधर-उधर घूमना फिरना या जाना होता है। इस प्रकार यह नदी टेढ़े- मेढ़े रास्ते से होती हुई आगे बढ़ती है। आज से 35-40 वर्ष पहले तक हिण्डन नदी कल-कल की आवाज़ करती हुई निर्मल जल से होकर बहती थी। कई जिलों के खेतों को सींचती हुई अपने गन्त्वय की ओर बढ़ती थी। हिंडन नदी के बारे में गरिमा ने
Posted on 18 Apr, 2013 12:33 PMपानी तेज रफ्तार जहां मिट्टी की कटान करती है, वहीं दूसरी तरफ पानी रुक न पाने के कारण सिंचाई भी नहीं हो पाती। इस दोतरफा नुकसान से बचने के लिए लोगों ने मेड़बंदी की प्रक्रिया अपनाई और अपने खेतों की सुरक्षा की।