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ओडिशा
ଚହକୋପଡ଼ାର ଉଲ୍ଲାସ
Posted on 11 Dec, 2015 02:49 PMନଳକୂଅରୁ ମୋହ ଭଙ୍ଗ ହେବା ଗୋଟିଏ ସ୍ଥିତି ଥିଲା, ତହିଁରୁ କୂଅ ପାଣିକୁ ମୁହାଁଇବା ଆଉ ସେହି କୂଅ ପାଣିକୁ
ପିଇବା ଯୋଗ୍ୟ କରିବା ପାଇଁ ଉଲ୍ଲାସଙ୍କ ଭଳି ଗ୍ତାମବାସୀ ବି ଲାଗିପଡ଼ିବା ସୃଷ୍ଟି କଲା ନୂତନ ଏକ ଆଧ୍ୟାୟ ।
ଆମ ପାଣି
Posted on 11 Dec, 2015 02:19 PMଗାଁରେ ଥିବା ଦୁଇଟା ନଳକୂଅର ପାଣି ପିଇ ସୁଧୁ ଗରିବ ଆଦିବାସୀ ବସତିର ସମସ ପରିବାରରେ ଏବେ ଫ୍ଲୋରୋସିସ ରୋଗୀ । ପାଣିର ମାନ ସଚେତନ ହୋଇଥିବା ଏହି ଗାଁର ଲୋକେ ସରକାରୀ ବିକଳ୍ପକୁ ଅପେକ୍ଷା ନ କରି ନିଜ ଅର୍ଥ ଓ ପରିଶ୍ରମରେ କୂଅ ଖୋଳି ନିଜ ପାଇଁ ଯୋଗାଡ଼ କରିପାରିଛନ୍ତି ସ୍ୱଚ୍ଛ ଓ ସୁରକ୍ଷିତ ଜଳ ।
नियमगिरी के आदिवासियों का खानपान
Posted on 05 Dec, 2015 09:47 AM उन्तीस सितम्बर की दोपहर मैं मुनिगुड़ा पहुँचा। यह ओड़िशा के नियमगिरी की पर्वत शृंखला के बीच स्थित है। यहाँ दो दिन रहा। आदिवासी जन जीवन को नज़दीक से देखने के साथ मैंने उनके जंगल से खानपान को भी जाना।
आदिवासियों की खेती से सीखें
Posted on 05 Dec, 2015 09:37 AMदेश के कई इलाकों में आदिवासी परम्परागत रूप से अब भी खेती कर रहे हैं। इनमें एक है ओडिशा का नियमगिरी पहाड़ का इलाका। सितम्बर महीने में वहाँ गया था। आदिवासियों की मिश्रित खेती से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। वहाँ देखकर और आदिवासियों से उनके अनुभव सुनकर मेरा यह विश्वास और भी पक्का हो गया।
उड़ीसा भूमि बिल विरोध में विशाल धरना
Posted on 21 Sep, 2015 09:51 AMतिथि : 14 अक्तूबर, 2015स्थान : राज्यपाल कार्यालय, भुवनेश्वर
आयोजक : भूमि अधिकार आन्दोलन, उड़ीसा
खनिजों के मामले में समृद्ध होने के बावजूद, उड़ीसा भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक है। उड़ीसा की काफी आबादी आदिवासी और जनजातीय है। अन्य प्रदेशों की तुलना में अपने जीवनयापन के लिये उड़ीसा आबादी का ज्यादा प्रतिशत खेती, जंगल और मज़दूरी पर आश्रित है। उड़ीसा में भूमि के साथ खिलवाड़ अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ाने वाला तो साबित होगा ही, गरीब की चोटी अमीर के हाथ में सौंप देने वाला भी साबित होगा। गत् एक वर्ष से ज़मीन बचाने की राजनैतिक और सामाजिक जंग चल रही है। इसमें कृषि से लेकर नदी, तालाब, पहाड़, पठार और जंगल की ज़मीन बचाने की जंग भी शामिल है। विरोध से विवश होकर केन्द्र सरकार ने कदम पीछे हटाए भी हैं। अब गेंद, राज्यों के पाले में है। क्या राज्यों ने कोई ठोस वैधानिक आश्वासन प्रस्तुत किया। सम्भवतः नहीं।
उड़ीसा से आई खबर तो उलटी ही है। ‘भूमि अधिकार आन्दोलन’ की ओर जारी विज्ञप्ति में श्री नरेन्द्र मोहंती ने उड़ीसा भूमि बिल - 2015 की असल मंशा भूमि कब्जाना करार दिया है। संगठन के बिल को विपक्ष की अनुपस्थिति में बिना बहस के मंजूर कराने की कवायद को बीजू जनता दल पार्टी की सरकार का अलोकतांत्रिक कदम बताया है।
वनों की रक्षा : गुंडूरिबाड़ी की महिला प्रहरी
Posted on 23 Aug, 2015 12:18 PMओडीशा के छोटे से आदिवासी गाँव गुंडूरिबाड़ी की महिलाएँ रोजाना तंगापलਵਣ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਖਾਧ ਅਤੇ ਪੋਸ਼ਣ ਸੁਰੱਖਿਆ ਦਾ ਅਭਿੰਨ ਅੰਗ ਰਹੇ ਹਨ!
Posted on 09 Jun, 2015 12:01 PMਭਾਰਤ ਜਿਹੇ ਦੇਸ਼, ਜਿੱਥੇ ਇੱਕ ਪਾਸੇ ਗਰੀਬੀ ਘਟਣ ਦੇ ਦਾਅਵੇ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਦੂਸਰੇ ਪਾਸੇ ਭੁੱਖਮਰੀ ਅਤੇ ਕੁਪੋਸ਼ਣ ਵਧ ਰਹੇ ਹਨ, ਕਾਫ਼ੀ ਵਿਰੋਧਾਭਾਸ ਵਾਲੀ ਸਥਿਤੀ ਪੇਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ ਜਿਸ ਉੱਪਰ ਧਿਆਨ ਦੇਣ ਦੀ ਜਰੂਰਤ ਹੈ।ਟਿਕਾਊ ਵਿਕਾਸ ਟੀਚੇ ਦੁਆਰਾ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਭੋਜਨ ਸੰਪ੍ਰਭੁਤਾ ਢਾਂਚਾ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸਟੀਕ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਇਸ ਤੱਥ ਨੂੰ ਮੰਨਦਾ ਹੈ ਕਿ ਭੁੱਖਮਰੀ ਅਤੇ ਕੁਪੋਸ਼ਣ ਸਿਰਫ਼ ਇੱਕ ਆਪੂਰਤੀ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਨਹੀਂ ਹਨ ਪ੍ਰੰਤੂ ਇਹ ਸੰਸਾਧਨਾਂ ਉੱਪਰ ਨਿਯੰਤ੍ਰਣ ਦੇ ਬਾਰੇ ਵਿੱਚ ਹੈ ਜੋ ਕਿ ਸपुरी में प्रदूषणः ऑक्सीजन की बहस
Posted on 29 May, 2015 09:39 AMसवाल अहम है कि एनजीटी के इस आदेश से निकला सन्देश क्या दूर तलक जाएगा? क्या बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी बीओडी और डीओ के बहाने छिड़ी बहस किसी अच्छे नतीजे पर पहुँचेगी? क्या हम जल जीवों के लिए ऑक्सीजन की उपलब्धता बढ़ाकर उनकी ऑक्सीजन की माँग कम कर पाएँगे? या हम होटलों और व्यावसायियों की लॉबी के दबाव में दब कर तमाम मानक बदल देंगे? क्या हरिद्वार और उड़ीसा के प्रदूषण फैलाने वाले होटलों को सबक सिखाने का यह कदम पूरे देश पर असर डालेगा? निश्चित तौर पर पर्यावरण संरक्षण विरोधी इस माहौल में एनजीटी एक नया माहौल बनाएगा और नई चेतना का संचार करेगा?
एक हिन्दी फिल्म में खलनायक एक डायलॉग बोलता है- “हम तुम्हें लिक्विड ऑक्सीजन में डाल देंगे। लिक्विड तुम्हें जीने नहीं देगा और ऑक्सीजन तुम्हें मरने नहीं देगा।” कुछ इसी तरह की रोचक बहस बीओडी यानी बायो ऑक्सीजन डिमांड और डिजाल्व्ड ऑक्सीजन के मानकों के बारे उत्तराखंड से उड़ीसा तक चल रही है। राष्ट्रीय हरित पंचाट यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की जाँच में रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद उड़ीसा के जिन 60 होटलों पर बंद होने की तलवार लटक रही है। उनकी दलील है कि 1986 का पर्यावरण संरक्षण अधिनियम बीओडी का स्तर 350 मिलीग्राम प्रति लीटर तक मान्य करता है। इसलिए उड़ीसा राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड का 75 मिली ग्राम प्रति लीटर का मानक बहुत सख्त है। इसके जवाब में बोर्ड की दलील थी कि केन्द्रीय कानून राज्य बोर्ड को अपने ढँग से मानक तय करने का अधिकार देता है।इसलिए यह जानना भी जरूरी है कि बीओडी क्या है और इससे पानी की गुणवत्ता पर क्या असर पड़ता है।
कालाहांडी में गरीबी का एक मुख्य कारण है परम्परागत जलस्रोतों का ह्रास
Posted on 06 Apr, 2015 01:33 PMपश्चिम उड़ीसा के कालाहांडी क्षेत्र से कभी तो भुखमरी के दर्दनाक समाचार मिलते हैं तो कभी बेहद गरीबी के कारण मजबूर होकर अपने बच्चे को ही बेच देने के। कभी अनेक दिनों तक मात्र कंद-मूल पर जीवित रहने को मजबूर लोगों की व्यथा-कथा हम यहाँ से प्राप्त समाचारों में पढ़ते हैं तो कभी भीषण अभाव के कारण यहाँ से प्रवास कर दूर-दूर भटकने वाले मज़दूरों की अन्तहीन समस्याएँ हमें सुनाई पड़ती हैं। ग्रामीण दुख-दर्द और अभाव की अति का जैसे पर्याय बन गया है कालाहांडी।कालाहांडी क्षेत्र से हमारा अभिप्राय है कालाहांडी जिला और इससे जुड़े हुए नवापाड़ा और बोलनगीर जैसे जिलों का इलाक़ा। पुराना कालाहांडी जिला बहुत बड़ा होने के कारण वैसे भी प्रशासनिक सहूलियत के लिए दो भागों में बाँट दिया गया है अतः केवल एक जिले की बात न कर तीन-चार जिलों में फैले हुए काफी हद तक एक जैसी समस्याओं वाले क्षेत्र की बात करना अधिक उचित है।
ग्रामीणों ने गढ़ी सामाजिक सफलता की मिसाल
Posted on 30 Oct, 2014 10:19 AMओडिशा के आदिवासी बहुल कोरापुट गांव के लोगों को मिली खुले में शौच से राहत पहल