मुंगेर जिला

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मुंगेर जिले के खैरा गाँव में फ्लोराइड का प्रबंधन (एकीकृत-समेकित तरीका)
Posted on 01 Dec, 2013 02:05 PM

1 परिचय


अच्छे स्वास्थ्य हेतु शुद्ध जल एक मूलभूत आवश्यकता है तथा बिहार राज्य के लिए इसके 8.3 करोड़ लोगों को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराना आज भी एक समस्या है। पिछले कई सालों से PHED ईमानदारी के साथ लोगों को शुद्ध जल उपलब्ध कराने में लगी है परंतु समस्याएँ लगातार बढ़ ही रहे हैं। भूजल का संक्रमित होना लगातार बढ़ ही रहा है तथा राज्य के विभिन्न जिलों में भूजल में फ्लोराइड की समस्या देखने को मिल रही है। अधिक मात्रा में फ्लोराइड के सेवन से समान्यतः पीने वाले पानी के द्वारा फ्लोरोसिस नाम की बीमारी होती है जो दाँतों तथा हड्डियों को प्रभावित करती है। निर्धारित सीमा से कुछ अधिक फ्लोराइड के सेवन द्वारा दंतीय फ्लोरोसिस तथा अधिक समय तक अत्यधिक मात्रा में फ्लोराइड का सेवन करने पर खतरनाक कंकालीय समस्याएँ उत्पन्न होती है। इसलिए फ्लोरोसिस की रोकथाम के लिए पीने वाले पानी की गुणवत्ता सही होनी चाहिए फ्लोरोसिस के तरीके एवं प्रकार लोगों के द्वारा सेवन की गई फ्लोराइड की मात्रा पर निर्भर करता है, दंतीय फ्लोरोसिस अधिक मात्रा में फ्लोराइड के सेवन के द्वारा कम समय में ही दिखने लगती है, जबकि कंकालीय प्रभाव अत्यधिक फ्लोराइड के सेवन से होता है। चिकित्सा विज्ञान में दंतीय फ्लोरोसिस के लक्षण दाँतों में लाल, पीले, भूरे तथा काले रंग के धब्बे एवं अधिक खतरनाक अवस्था में दाँतों के एनामेल तक नष्ट हो जाते है।
बिहार में आर्सेनिक
Posted on 06 Apr, 2009 03:19 PM हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार गंगा के दोनों ओर स्थित बिहार के 15 जिलों के भूजल में आर्सेनिक के स्तर में खतरनाक बढ़ोतरी हुई है, जिसके कारण इस इलाके में रहने वालों के लिये कैंसर का खतरा बढ़ गया है। IANS की रिपोर्ट के मुताबिक गंगा किनारे के दोनों तरफ़ के 57 विकासखण्डों के भूजल में आर्सेनिक की भारी मात्रा पाई गई है। आर्सेनिक नामक धीमे ज़हर के कारण लीवर, किडनी के कैंसर और “गैंगरीन” जैसी बीमारियों
सब्जी की खेती से मालामाल हो रहे विनाश के गर्त से निकले लोग
Posted on 23 Aug, 2015 04:22 PM

भूगर्भ से जरूरत से अधिक पानी निकलने की सम्भावना अत्यल्प होती है। अभी इन 18 गाँवों के 123 किसान 64 एकड़ ज़मीन में सब्जी की खेती कर रहे हैं। 18 गाँवों के बीच यह कोई बड़ा आँकड़ा नहीं है। पर समेकित जल प्रबन्धन कार्यक्रम सब्जी की खेती तक सीमित नहीं है। उसने इलाके के लिये उपयुक्त फसलों और उपयुक्त विधियों के चयन किया। धान व गेहूँ की खेती के लिये श्रीविधि, एसवीआई और एसडब्ल्यूआई विधि में प्रशिक्षण की व्यवस्था की।

कोसी तटबन्धों के बीच फँसे बिहार के सर्वाधिक बाढ़ग्रस्त और भयंकर सुखाड़ से पीड़ित गाँवों में गोभी, प्याज और मिर्च की लहलहाती फसल देखना जितना सुखद था, उतना ही आश्चर्यजनक भी। सुपौल जिले के मैनही गाँव में यह नजारा परम्परागत जलस्रोतों के समन्वित प्रबन्धन के साथ विभिन्न नवाचारों को अपनाने की वजह से दिख रहा है। यशस्वी इंजीनियर दिनेश कुमार मिश्र की पुस्तक ‘दुई पाटन के बीच’ के माध्यम से कोसी तटबन्धों के बीच फँसे 380 गाँवों और उनमें रहने वाली करीब 10 लाख लोगों की व्यथा-कथा उजागर होने पर मातमपूर्सी तो काफी हुई, पर संकटग्रस्त लोगों के कष्टों का टिकाऊ समाधान खोजने के प्रयास कम ही हुए।

इस तरह की कोशिश में जर्मनी की संस्था के सहयोग से जीपीएसवीएस, जगतपुर घोघरडीहा ने समेकित जल प्रबन्धन कार्यक्रम के माध्यम से टिकाऊ खेती और स्वस्थ्य जीवन का प्रयोग आरम्भ किया। इसके लिये ग्रामीण समुदाय को प्रेरित और संगठित किया गया।
vegetable farming
गांव की एटीएम हैं तालाब
Posted on 24 Nov, 2012 12:01 PM सामान्य खेतों में जहां साल भर खूब मेहनत के बावजूद फसल उत्पादन से अच्छी आय नहीं होती है, वहीं तालाब बनवा कर मछलीपालन अधिक लाभकारी है। बिहार में बेगूसराय के किसान जयशंकर कुमार को मात्र 38 कट्ठे की जमीन पर तालाब से चार से छह लाख रुपये सालाना आय हो रही है। जयशंकर की तरह ही राज्य के कई किसान अब सामान्य खेती के बदले समेकित खेती करने लगे हैं। समेकित खेती के लिए तालाब जरूरी है। बिहार में कृषि और मत्स्य
भारत के कुछ राज्यों के भूजल में उच्च आर्सेनिक की मौजूदगी
Posted on 21 Oct, 2009 08:53 AM

असम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों में आर्सेनिक प्रदूषण काफी बड़े स्तर तक प्रभावित कर रहा है।
अटैचमेंट में देखें कि किस राज्य के किस ब्लॉक में यह प्रदूषण कहां तक फैला है।
उत्तर प्रदेश, असम और छत्तीसगढ़ राज्यों के मामले में आर्सेनिकप्रदूषण की पहचान केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड और राज्य भूमि जल विभागों के निष्कर्ष के आधार पर की गई है ।

Arsenic
बिहार की जमनिया नदी की सतह पर भी आर्सेनिक
Posted on 16 Aug, 2009 05:55 PM

गंगा किनारे बसे राज्य के बारह जिलों भागलपुर, कटिहार, खगडिय़ा, मुंगेर, लखीसराय, बेगूसराय, समस्तीपुर, पटना, भोजपुर, बक्सर, वैशाली और सारण के लगभग 80 प्रखंडों में आर्सेनिक का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि, वैज्ञानिक अभी यह बता पाने में अक्षम हैं कि जल में जहर के रूप में आर्सेनिक कहां से और कैसे फैलता जा रहा है, पर यह भी सच है कि इस खतरे से बांग्लादेश, पश्चिम बंगाल तथा नेपाल के भीतर का बड़ा हिस्सा भी

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