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महाराष्ट्र
जीवन यात्राः एक नदी की
Posted on 21 Dec, 2010 10:41 AMमैं गोदावरी हूं!
हां, मैं ही गोदावरी हूं!
दक्षिण की गंगा!
डेढ़ हजार किलोमीटर तक की मेरी जीवन यात्रा। काफी लंबी यात्रा है। अपनी यात्रा का आकलन करते यह सोचना भी कितना विस्मयकारी लगता है कि ब्रह्मगिरी का यह गोमुख मात्र एक किलोमीटर लंबा और इससे भी कम चौड़ा जलकुण्ड और यहीं से मेरे जैसी विशाल नदी का उद्गम। मनुष्य के लिए इस पर विश्वास कर पाना भी मुश्किल है। मुझे भी कहां विश्वास था, मुझे सदियों पहले कहां पता था कि कहां-कहां से गुजरना होगा। पृथ्वी पर आ गई लेकिन मंजिल का पता तो उन राहों पर चलकर ही लगा।
मुला-मुठा का संगम
Posted on 19 Oct, 2010 11:05 AM महाराष्ट्र की नदियों में तीन नदियों से मेरी विशेष आत्मीयता है। मार्कण्डी मेरी छुटपन की सखी, मेरे खेतिहर जीवन की साक्षी, और मेरी बहन आक्का की प्रतिनिधि है। कृष्णा के किनारे तो मेरा जन्म ही हुआ। महाबलेश्वर से लेकर बेजबाड़ा और मछलीपट्टम तक का उसका विस्तार अनेक ढंग से मेरे जीवन के साथ बुना हुआ है। नदियां तो हमारी बहुत देखी हुई होती हैं पर दो नदियों का संगम आसानी से देखने को नहीं मिलता। संगम काव्य ही अलग है।जब दो नदियां मिलती हैं तब अक्सर उनमें से एक अपना नाम छोड़कर दूसरी में मिल जाती है। सभी देशों में इस नियम का पालन होता हुआ दिखाई देता है। किन्तु जिस प्रकार कलंक के बिना चंद्र नहीं शोभता, उसी प्रकार अपवाद के बिना नियम भी नहीं चलते। और कई बार तो नियम की अपेक्षा अपवाद ही ज्यादा ध्यान खींचते हैं। उत्तर अमरीका की मिसिसिपी-मिसोरी अपना लंबा-चौड़ा सप्ताक्षरी नाम द्वंद्व समास से धारण करके संसार की सबसे लंबी नदी के तौर पर मशहूर हुई है। सीता-हरण से लेकर विजयनगर के स्वातंत्र्य-हरण तक के इतिहास को याद करती तुंगभद्रा भी तुंगा और भद्रा के मिलने से अपना नाम और बड़प्पन प्राप्त कर सकी है।
कृष्णा के संस्मरण
Posted on 18 Oct, 2010 01:17 PM कृष्णा का कुटुम्ब काफी बड़ा है। कई छोटी-बड़ी नदीयां उससे आ मिलती हैं। गोदावरी के साथ-साथ कृष्णा को भी हम ‘महाराष्ट्र-माता’ कह सकते हैं। जिस समय आज की मराठी भाषा बोली नहीं जाती थी, उस समय का सारा महाराष्ट्र कृष्णा के ही घेरे के अंदर आता था।एकादशी का दिन था। गाड़ी में बैठकर हम माहुली चले। महाराष्ट्र की राजधानी सातारा से माहुली कुछ दूरी पर है। रास्ते में दाहिनी तरफ श्री शाहु महाराज के वफादार कुत्ते की समाधि आती है। रास्ते पर हमारी ही तरह बहुत से लोग माहुली की तरफ गाड़ियां दौड़ा रहे थे। आखिर हम नदी के किनारे पहुंचे। वहां इस पार से उस पार तक लोहे की एक जंजीर ऊंची तनी हुई थी। उसमें रस्सी से एक नाव लटकाई गई थी, जो मेरी बाल-आंखों को बड़ी ही भव्य मालूम होती थी।बूंद—बूंद में बरकत
Posted on 14 Oct, 2010 03:10 PM
पश्चिमी महाराष्ट्र में पहाडियों के बीच बसे जलगांव के किसान टपक सिंचाई और कॉन्टै्रक्ट फार्मिग के जरिए दो से तीन गुना उत्पादन बढाने में कामयाब हुए हैं। 'मोर क्रॉप, पर ड्रॉप' पर आधारित तकनीक ने किसानों और कृषि व्यवसाय को नई दिशा दी है।
एक बांध और कई बवाल
Posted on 06 Oct, 2010 11:28 AM अशोक चह्वाण कभी कांग्रेस के चहेते मुख्यमंत्रियों में से थे, लेकिन बाभली परियोजना और चंद्रबाबू नायडू के मुद्दे पर वे अब हाई कमान की आंख की किरकिरी बन चुके हैं।एक अरसे से कांग्रेस हाई कमान की आंखों का तारा होने का दम भरते आये महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण अब आंख की किरकिरी साबित हो रहे हैं। पड़ोसी राज्यों-आंध्रप्रदेश और कर्नाटक के साथ बाभली परियोजना और मराठी-भाषी इलाकों के मसले को लेकर उन्होंने जिस राजनीतिक अपरिपक्वता का परिचय दिया है, उससे केंद्र सरकार और कांग्रेस हाईकमान दोनों ही नाराज हैं। गोदावरी नदी पर स्थित बाभली जल परियोजना के मुद्दे पर उन्होंने आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और तेलुगु देशम पार्टी के नेता एन. चंद्रबाबू नायडू को जीरो से हीरो बना दिया। आंध्रप्रदेश में भी कांग्रेस की ही सरकार है और वाइएस राजशेखर रेड्डी के बेटे जगनमोहन रेड्डी ने पहले से ही मुख्यमंत्री के रोसैया की नाक में दम कर रखा है।वर्धा में बारिश
Posted on 09 Jul, 2010 12:04 PMआंखों को और उनसे जुड़े मानसिक जगत को हरीतिमा और वर्षा क्यों भली लगती है? इसके जैविक कारण होंगे, पर ऐतिहासिक या कहिए प्रागैतिहासिक कारण भी हैं। हमारे दूरस्थ पूर्वजों ने कई लाख वर्ष ऐसे ही वातावरण में बिताए होंगे। हमारा सामूहिक अवचेतन उन्हीं स्मृतियों को अपने गुह्य कक्ष में संजोए हुए हैं। जल ही जीवन है, कहा तो गया है, पर खुद जल में कितना जीवन है, मुझे पता नहीं। लेकिन वे पेड़-पौधे, जिन पर वर्षा के बादल अमृत की वर्षा करते हैं, जीवन से भरपूर हैं। दरअसल, ये पेड़-पौधे ही हमारे असली पूर्वज है, क्योंकि यह सचल सृष्टि उन्हीं की कोख से पैदा हुई है।चारों ओर हरा-भरा हो और निरंतर वर्षा हो रही हो, यह दृश्य मैंने ज्यादा नहीं देखा है – यों दुनिया को मैंने देखा ही कितना है- लेकिन जो भी दृश्य देखे हैं, वे किसी प्रेम कथा की तरह मन पर अंकित हैं। पहाड़ों पर बारिश का अपना आनंद है और हरे-भरे मैदान में बूंदों की थाप का अपना सुख। कोलकाता में खूब बारिश होती थी और वहां के वातावरण में वर्षा के दिन जितने असुविधाजनक होते हैं, उसकी तुलना के लिए मेरे पास कोई समांतर अनुभव नहीं है। शायद गांवों में इसी तरह जीवन कीचड़ में लिथड़ जाता हो। फिर भी कोलकाता का जो मौसम मन में रमा हुआ है, वह वर्षा का मौसम ही है। दिल्ली में तो बारिश होती ही नहीं है। जब होती है, तो उसका भी कुछ खुमार होता है, पर इस महान शहर में ऐसा दृश्य मुझे अभी तक देखने को नहीं मिला कि दूर-दूर तक घासमीठे गाजर लगाओ खरपतवार भगाओ
Posted on 07 Jul, 2010 01:50 PMभारतीय किसानों ने एक बार पुनः सिद्ध कर दिया है कि खेती के प्रयोग वातानुकूलित बंद कमरों में नहीं किए जा सकते। खेतों में खरपतवार नष्ट करने के लिए बजाए रासायनिक पदार्थों के गाजर का इस्तेमाल भारतीय किसानों की विशेषज्ञता को सिद्ध करता है। विश्वविद्यालय का कहना है कि वह 15 वर्ष पूर्व ऐसा सफल परीक्षण कर चुका है। उनका यह कथन आंशिक रूप से सही पर यह सिद्ध करता है कि भारतीय कृषि वैज्ञानिक बड़ी कंपनियों से संचालित हैं। वरना वे अपने सफल प्रयोग पर जमी धूल को डेढ़ दशक तक झाड़ क्यों नहीं पाए?
खरपतवार की वजह से भारत के किसानों को प्रतिवर्ष 52,000 करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ता है। इन्हें हाथ से उखाड़ने और रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से लागत भी बढ़ती है। वहीं कीटनाशक तो इसका कोई हल ही नहीं क्योंकि कुछ ही समय में खरपतवार इसकी आदी हो जाती है। इस दौरान महाराष्ट्र के किसानों ने प्रयोगों के माध्यम से यह पाया कि खेत में गाजर लगाने से खरपतवार समाप्त हो जाती हैखेत का पानी खेत में
Posted on 19 Jan, 2010 01:30 PMदेश में मध्यवर्ती भाग विशेष कर मध्यप्रदेश के मालवा, निमाड़, बुन्देलखण्ड, ग्वालियर, राजस्थान का कोटा, उदयपुर, गुजरात का सौराष्ट्र, कच्छ, व महाराष्ट्र के मराठवाड़ा, विदर्भ व खानदेश में वर्ष 2000-2001 से 2002-2003 में सामान्य से 40-60 प्रतिशत वर्षा हुई है। सामान्य से कम वर्षा व अगस्त सितंबर माह से अवर्षा के कारण, क्षेत्र की कई नदियों में सामान्य से कम जल प्रवाह देखने में आया तथा अधिकतर कुएं और ट्य