मध्य प्रदेश

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जलकथा
Posted on 23 Jan, 2010 04:10 PM

(1)‘पोखरा बनवाने का पुण्य’


(नारद पुराण/पूर्व भाग/प्रथम पाद)
गौंड देश में एक वीरभद्र नामक राजा थे। उनकी रानी का नाम चम्पक मंजरी था। उनके मंत्री का नाम बुद्धिसागर था।

जलाशय-निर्माण का पुण्य फल
Posted on 23 Jan, 2010 04:04 PM

(नारद पुराण/पूर्व भाग/पाद)

- - जो स्वयं अथवा दूसरे के द्वारा तालाब बनवाता है, उसके पुण्य की संख्या बताना असंभव है।
- यदि एक राही भी पोखरे का जल पी ले तो उसके बनाने वाले पुरुष के सब पाप अवश्य नष्ट हो जाते हैं।
- जो मनुष्य एक दिन भी भूमि पर जल का संग्रह एवं संरक्षण कर लेता है, वह सब पापों से छूट कर सौ वर्षों तक स्वर्गलोक में निवास करता है।

जल-शुद्धिकरण
Posted on 23 Jan, 2010 03:57 PM

यदि कूप, वापी, पोखर इत्यादि का जल किसी कारण अशुद्ध या अपवित्र हो जाये ते इसके लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए-

वापी कूप तडागानां दूषितानां च शोधनम्।
अद्धरेत षट्शतं पूर्णं पंचगव्येन शुद्धयाति ।।225।।

जल के गुण-दोष
Posted on 23 Jan, 2010 03:51 PM

‘गरुड़-पुराण’ आचार काण्ड के अनुसार ‘जल’ में निम्नलिखित गुण/दोष पाये जाते हैः

- वर्षा का जल तीनों दोषों (वात-पित्त-कफ) का नाशक, लघु स्वादिष्ट तथा विषापहारक है।
- नदी का जल वातवर्धक, रुक्ष, सरस, मधुर और लघु होता है।
- वापी का जल वात-कफ विनाशक होता है।
- झरने का जल रुचिकर, अग्निदीपक, रुक्ष कफनाशक और लधु होता है।
- कुएँ का जल अग्निदीपक, पित्तवर्धक तथा

‘जल’ की नित्यता पर विचार
Posted on 23 Jan, 2010 03:39 PM


पुराणों में ‘जल’के सम्बन्ध मे, उसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में या उसकी ‘नित्यता’ (सदैव विद्यमान रहने) के सम्बन्ध में निम्नलिखित अवधारणाएँ दी हुई हैं, जो अनेक परस्पर विरोधी विचारों या शंकाओं को जन्म देती हैं। इनका क्या रहस्य है? क्या ये मिथ्या कल्पनाएँ हैं? इन पर विचार किया जाना आवश्यक है-

पञ्चम सूक्त
Posted on 23 Jan, 2010 03:34 PM

पञ्चम सूक्त


अपांभेषज (जल चिकित्सा), मन्त्रदृष्टा – सिन्धु द्वीप ऋषि। देवता – अपांनपात्, सोम, और आपः। छन्दः 1-2-3 गायत्री, 4 वर्धमान गायत्री।
मन्त्र
आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ता न ऊर्जे दधातन।
महे रणाय चक्षसे।।1।।

हे आपः। आप प्राणीमात्र को सुख देने वाले हैं। सुखोपभोग एवं संसार में रमण करते हुए, हमें उत्तम दृष्टि की प्राप्ति हेतु पुष्ट करें।

अथर्ववेद
Posted on 23 Jan, 2010 10:15 AM

‘अथर्ववेद’ में ‘आपो देवता’ से सम्बन्धित तीन सूक्त हैं। ये तीनों सूक्त ‘अपां भेषज’ अर्थात् जल चिकित्सा से सम्बन्ध रखते हैं। पाठकों के लाभार्थ उक्त तीनों सूक्त प्रस्तुत हैं-अथर्ववेद प्रथम काण्ड/चतुर्थ सूक्तमंत्रदृष्टाः सिंधुद्वीप ऋषि। देवताः अपांनपात्-सोम-और ‘आपः’। छन्दः 1-2-3 गायत्री, 4 पुरस्तातबृहती। मन्त्रअम्बयो यन्त्यध्वमिर्जामयो अध्वरीयताम्।
पृञ्चतीर्मधुना पयः।।1।।

सामवेद में आपो देवता
Posted on 22 Jan, 2010 01:45 PM

‘सामदेव’ में ‘आपो देवता’ से सम्बधित केवल तीन ‘साम’ (सामवेदीय मंत्र) उपलब्ध हैं। इन ‘सामों’ के मंत्रदृष्टा ऋषिः त्रिशिरात्वाष्ट्र अथवा सिन्धु द्वीप आम्बरीष हैं। इनका छन्दः गायत्री है। ये ‘साम’ उत्तरार्चिक के बीसवें अध्याय के सप्तम खण्ड में है। किन्तु ‘अथर्ववेद’ (1-सू-5) में भी उपलब्ध है।

(1837) आपो ही ष्ठा मयो भुवस्ता न ऊर्जे दधातन।
महे रणाय चक्षसे।।4।।

यजुर्वेद में आपो देवता
Posted on 22 Jan, 2010 01:42 PM

यजुर्वेद संहिता के दूसरे अध्याय के मन्त्र 34 – ‘आपो देवता’ के ऋषि प्रजापति और छन्दः भुरिक् उष्णिक् है।

मन्त्रः
(65) ऊर्जं वहन्तीरमृतं घृतं पयः कीलालं परिस्त्रुतम्।
स्वधा स्थ तर्पयत मे पितृन।।34।।

यजुर्वेद संहिता में ‘आपो देवता’
Posted on 22 Jan, 2010 01:34 PM

(यजुर्वेद संहिता प्रथमोSध्यायः) मन्त्रदृष्टा ऋषिः – परमेष्ठी प्रजापति देवता – लिंगोक्त आपः (12) छन्दः – भुरिक् अत्यष्टि।

मन्त्रः
(12)पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसवः उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः।
देवीरापो अग्रेगुवो अग्रेपुवो ग्रS इममद्य यज्ञं नयताग्रे यज्ञपति सुधातुं यज्ञपतिं देवयुवम्।।2।।

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