झारखंड

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मुखियाजी से मांगिये शौचालय
Posted on 08 Oct, 2012 05:34 PM गांधी जंयती के मौके पर वर्धा से केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश और अभिनेत्री विद्या बालन की मौजूदगी में निर्मल भारत यात्रा की शुरुआत हुई। इस यात्रा का उद्देश्य देश के गांवों को स्वच्छ रहने के लिए प्रेरित करना है। यात्रा 17 नवंबर को बिहार के बेतिया में पहुंच कर संपन्न होगी। इससे पहले भी सरकार की ओर से निर्मल भारत अभियान की शुरुआत की गयी है, जिसका उद्देश्य पूरे भारत को निर्मल बनाना है। इ
किसानों ने खुद ही साफ की 3 किमी. लंबी नहर
Posted on 06 Oct, 2012 05:02 PM श्रमदान : पांच सौ किसानों ने कायम की मिसाल, दो हजार एकड़ खेतों आएगी हरियाली
मंडल बांध : रोशनी नहीं अंधेरा बांट रहा
Posted on 03 Sep, 2012 04:29 PM झारखंड के गढ़वा जिले में बन रहा मंडल बांध नासूर बन चुका है। लगभग 40 साल पहले कोयल नदी पर इस बांध को बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई। पर आज तक उसका काम पूरा नहीं हो पाया है। इस अधूरे बांध के कारण हालांकि लोगों की जिंदगी जरूर नरक बना दी गई। मुआवजा और पुनर्वास बांध प्रभावितों को बहुत दूर की चीज हैं। पर उनको हर सरकारी सुविधाओं जैसे स्कूल, अस्पताल आदि से महरूम कर दिया गया है। उनके गांव बगैर मुआवजा दिए ह
धारा से ध्वस्त होती नागरिकता
Posted on 30 Aug, 2012 12:04 PM

मालदा के पंचानंदपुर और मुर्शिदाबाद के धुलियान कस्बों को कभी विकसित इलाका माना जाता था। लेकिन अब उनका अस्तित्व ही नहीं है। मालदा में 1980 से अब तक 4816 एकड़ जमीन नदी में समा चुकी है। मालदा जिले से 40 हजार परिवार विस्थापित हो चुके हैं। 1995 के बाद से 26 गांव पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। इन गांवों में स्थित 100 प्राइमरी स्कूलों और 15 हाईस्कूलों का अब कहीं पता नहीं।

नाम: मंजूर आलम। उम्रः 52 साल। पताः खटियाखाना चक (द्वीप), हमीदपुर। कहने को तो यह हमीदपुर पश्चिम बंगाल मालदा जिले में पड़ना चाहिए। लेकिन बीच गंगा में नदी के इस द्वीप का पता कुछ भी नहीं है। मंजूर आलम ने 1979 में इस द्वीप के जिस छोर पर अपना घर बनाया था, वह जगह अब 15 किलोमीटर दूर निकल गई है। अब तक चार बार विस्थापित होकर नया आशियाना जोड़ते-जोड़ते अपना पता भी खो बैठा है मंजूर आलम। मालदा जिले में कालियाचक थ्री ब्लॉक के हमीदपुर ग्राम पंचायत इलाके में मंजूर आलम जैसे लगभग दो लाख लोगों में से लगभग हरेक की दास्तान है- जाएं तो कहां जाएं। नौ साल पहले तक ये सभी लोग पश्चिम बंगाल के नागरिक थे। लेकिन गंगा नदी में कटान के चलते उनका मूल गांव कटकर झारखंड की सीमा से जा लगा था।
मिसाल : ललगड़ी की हरी गाड़ी
Posted on 27 Jul, 2012 01:24 PM नक्सल प्रभावित और अत्यंत पिछड़े राज्य में गिना जाने वाला झारखंड के लतेहार जिले का ललगड़ी एक मिसाल कायम की है। इस गांव में ग्रामीणों के आपसी समझदारी के कारण आज तक एक भी केस-मुकदमा नहीं हुआ है। ललगड़ी गांव में 69 प्रतिशत लोग पढ़े-लिखे हैं। जहां देश में सूखे का संकट मंडरा रहा है। लेकिन ललगड़ी में व्यवस्थित इंतजाम से साल भर चारों तरफ हरियाली छाई रहती है। पंचायत में लगा आर्थिक दंड का पैसा आरोपी के खिलाफ नहीं जाता बल्कि गांव के विकास कार्य में जाना एक मिसाल है।

ज्ञान-विज्ञान के इस दौर में बड़े-बड़े शहर आधुनिकता की चाहे जितनी डींगें हांकें, सघन रूप से नक्सल प्रभावित और अत्यंत पिछड़े क्षेत्र के रूप में पहचान बना चुके लातेहार का एक गांव ललगड़ी ने जो मिसाल कायम की है, उससे पूरी दुनिया को सीख लेनी चाहिए।
खदानों में लगी आग से जल रहा झारखंड
Posted on 07 Jun, 2012 03:51 PM

भारत विश्व में कोयला का सबसे बड़ा उत्पादक देशों में शुमार किया जाता है फिर भी इसे विद्युत उत्पादन के लिए कोयला आ

प्रदूषण का गुणगान
Posted on 12 Feb, 2012 04:24 PM

इस इलाके का पानी का महत्वपूर्ण स्रोत सीतारामपुर बांध भी मिल के बिना उपचारित जल के बांध में जाने से प्रदूषित होता

जल, जंगल, जमीन, जिंदगी... सब बर्बाद !
Posted on 21 Jan, 2012 03:09 PM

कौशल, अनिता और प्रीती... एक अंधेरी जिंदगी के गवाह

giridih pollution
कोई ग्रामीण मजदूरी करने नहीं जाता बाहर
Posted on 16 Jan, 2012 12:03 PM

अकेला किसान ने सुधार दी गांव की दशा

सामुदायिक वन प्रबंधन का अनूठा प्रयोग
Posted on 13 Dec, 2011 10:00 AM

गांव वालों के प्रयास से जंगलों को मिला नवजीवन


इस पंचायत में एक गांव है- कठारा। यह गांव मूलतः आदिवासियों का गांव है। आदिकाल से ही इनका जल, जंगल और जमीन से भावनात्मक लगाव रहा है। जल, जंगल और जमीन के प्रति गहरी आस्था उनकी परंपरा रही है। दरअसल जिरवा पंचायत के लोगों के लिए कठारा गांव के आदिवासी ही प्रेरणास्रोत बने। पंचायत के लोगों ने वनों के संरक्षण व संवर्धन की कला इन्हीं आदिवासियों से सीखी।

आधुनिकीकरण और औद्योगिकीकरण के नाम पर जिस तरह से जंगलों की अंधाधुंध कटाई हो रही है। उसका दुष्परिणाम हम सबके सामने है। जंगलों को बचाने के लिए कोई ठोस उपाय कारगर सिद्ध नहीं हो रहा है। ऐसे में झारखंड के चतरा स्थित सिमरिया के जिरवा पंचायत के लोगों ने तकरीबन पांच सौ हेक्टेयर क्षेत्र में जंगलों को पुनर्जीवित कर सामुदायिक वन प्रबंधन का अनूठा प्रयोग किया है। गांव वालों के प्रयास से यहां के जंगलों में सखुआ, आसन व चकोड़ी के हजारों वृक्ष अपने यौवन पर इतरा रहे हैं।
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