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आखिर कब मिलेगा लोगों को पीने का साफ पानी
Posted on 25 Apr, 2017 11:15 AM
हर साल 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। उस समय हर देशवासी के लिये पीने के पानी की उपलब्धता को लेकर नेताओं व मंत्रियों द्वारा खूब लम्बे चौड़े भाषण दिए जाते हैं, लेकिन कार्यक्रम खत्म होते ही इनके आयोजकों से लेकर मुख्य वक्ता तक सब कुछ भूल जाते हैं। अगली बार यह सब एक साल बाद ही याद आता है। यह कोई आज का किस्सा नहीं है। आजादी के बाद से ही यही सब जारी है। दशकों से वायदों और हकीकत की य
पेयजल : जरूरत बनाम जिम्मेदारी
Posted on 25 Apr, 2017 10:17 AM
आज पानी का कारोबार एक बड़ा उद्योग बन चुका है। पानी का शुद्धिकरण, उसकी मार्केटिंग और घरों तक पहुँचाने के लिये। एक बड़ा नेटवर्क है, लेकिन इस सब के बीच जल की जरूरत और गुणवत्ता की जिम्मेदारियों को नजरअंदाज किया जा रहा है…
‘नक़्शे’ पर देखें देश (Nakshe Portal - www.soinakshe.uk.gov.in)
Posted on 24 Apr, 2017 08:58 PM

नई दिल्लीः प्रशासन, सुरक्षा, कृषि, सिंचाई, वन-प्रबंध, उद्योग, संचार आदि विविध क्षेत्रों में रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए मानचित्र पहली आवश्यकता है। किसी देश की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानचित्र बेहद जरूरी होते हैं। भारतीय सर्वेक्षण विभाग (एसओआई) ने अपनी स्थापना की 250वीं वर्षगाँठ के मौके पर नया वेब पोर्टल ‘नक़्शे’ लांच किया है, जिस पर देश के विभिन्न हिस्सों के ओपन सीरी

पुस्तक परिचय : ‘अमृत बन गया विष’
Posted on 23 Apr, 2017 01:39 PM
यह भूजल की कहानी है: अमृत का विष में परिवर्तित होने की कहानी। जिसमें हैंडपम्प से निकले हुए पानी को पीने की आम दिनचर्या भी एक जानलेवा बीमारी का स्रोत बन जाता है। यह एक ‘प्राकृतिक’ दुर्घटना नहीं है - जहाँ भूगर्भ में उपस्थित प्राकृतिक संखिया (आर्सेनिक) और फ्लोराइड पीने के पानी में अपने आप आ गया हो। यह कहानी है जान-बूझकर किए गए विषाक्तीकरण का। जिसे रूप दिया है सरकार की गलत नीतियों, ट्यूबवेल की ब
अमृत बन गया विष
धरती के प्रति धर्म निभाने का आह्वान
Posted on 22 Apr, 2017 10:25 AM

 

पृथ्वी दिवस, 22 अप्रैल 2017 पर विशेष


पृथ्वी का अस्तित्व खतरे मेंपृथ्वी का अस्तित्व खतरे मेंशेयर बाजार अपनी गिरावट का दोष, बारिश में कमी को दे रहा है। उद्योगपति, गिरते उत्पादन का ठीकरा पानी की कमी पर फोड़ रहे हैं। डाॅक्टर कह रहे हैं कि हिन्दुस्तान में बढ़ती बीमारियों का कारण जहरीला होते हवा-पानी हैं। भूगोल के प्रोफेसर कहते हैं कि मिट्टी में अब वह दम नहीं रहा। उपभोक्ता कहते हैं कि सब्जियों में अब स्वाद नहीं रहा। कृषि वैज्ञानिक कह रहे हैं कि तापमान बढ़ रहा है, इसलिये उत्पादन घट रहा है। किसान कहता है कि मौसम अनिश्चित हो गया है, इसलिये उसके जीवन की गारंटी भी अनिश्चित हो गई है।

पेयजल को लेकर आये दिन मचने वाली त्राहि-त्राहि का समाधान न ढूँढ पाने वाली हमारी सरकारें भी मौसम को दोष देकर अपना सिर बचाती रही हैं। अप्रैल के इस माह में बेकाबू होते पारे को हम सभी कोस रहे हैं, किन्तु अपने दोष को स्वीकार कर गलती सुधारने की दिशा में हम कुछ खास कदम उठा रहे हों; ऐसा न अभी सरकार के स्तर पर दिखाई देता है और न ही हमारे स्तर पर।

earth in danger
तापमान बढ़ने से परेशान धरती
Posted on 20 Apr, 2017 03:35 PM

पृथ्वी दिवस, 22 अप्रैल 2017 पर विशेष


पृथ्वी के गर्म होने से संकट में जीवन पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। यह सर्वविदित और निर्विवाद तथ्य है। संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी अन्तर-सरकारी समिति के साथ कार्यरत 600 से ज्यादा वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके कारणों में सबसे अधिक योगदान मनुष्य की करतूतों का है। पिछली आधी सदी के दौरान कोयला और पेट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधनों के फूँकने से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरी ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा खतरनाक हदों तक पहुँच गई है। मोटे अनुमान के मुताबिक आज हमारी आबोहवा में औद्योगिक युग के पहले की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड मौजूद है।

सामान्य स्थितियों में सूर्य की किरणों से आने वाली ऊष्मा का एक हिस्सा हमारे वातावरण को जीवनोपयोगी गर्मी प्रदान करता है और शेष विकिरण धरती की सतह से टकराकर वापस अन्तरिक्ष में लौट जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार वातावरण में मौजूद ग्रीनहाउस गैसें लौटने वाली अतिरिक्त ऊष्मा को सोख लेती हैं जिससे धरती की सतह का तापमान बढ़ जाता है।

पृथ्वी के गर्म होने से संकट में जीवन
पर्यावरण विकास का आधार बने तभी धरती बचेगी
Posted on 20 Apr, 2017 03:21 PM

पृथ्वी दिवस, 22 अप्रैल 2017 पर विशेष

गर्म हो रही पृथ्वी
पुस्तक परिचय : 'जल, जंगल और जमीन - उलट-पुलट पर्यावरण'
Posted on 18 Apr, 2017 04:42 PM
स्वतंत्र मिश्र की पुस्तक ‘जल, जंगल और जमीन : उलट पुलट पर्यावरण’ प्राकृतिक संसाधनों के अविवेकपूर्ण दोहन से उत्पन्न आपदाओं और खतरों को समझने और उसका विश्लेषण करने की एक गम्भीर कोशिश है। मनुष्य प्रकृति का अंश है, लेकिन पिछली एक-दो शताब्दी में मनुष्य ने खुद को प्रकृति का जेता समझ लिया। विकास के नाम पर प्रकृति के साथ एक प्रकार का युद्ध छेड़ दिया गया। जब प्रकृति का पलटवार शुरू हुआ तो पूरी धरती का
जल, जंगल और जमीन - उलट-पुलट पर्यावरण
बड़े बाँध निर्माताओं से कुछ सवाल
Posted on 18 Apr, 2017 04:40 PM

बड़े बाँध की योजना से बड़ी आबादी को बहुत लाभ मिलने की सम्भावनाएँ दर्शाई जाती हैं, परन्तु

पानी की पुरानी परम्परा ही दिलाएगी राहत
Posted on 18 Apr, 2017 01:15 PM

जल संकट में नवीन और प्राचीन की गुंजाईश नहीं होती है। प्रकृति पानी गिराने का तरीका अगर नही

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