दिल्ली

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घनन-घनन घिर-घिर आए बदरा
Posted on 05 Jul, 2010 04:28 PM

बादलों की पूरी सज-धज के साथ आखिर फिर आ गई बरसात। धरती ने धानी चुनर ओढ़ ली है तो मेघ-मल्हार और कजरी की उत्सवधर्मिता का भी यह आगाज है। उमड़ते-घुमड़ते, गरजते-बरसते बादल वन-उपवन, खेत-खलिहान, पर्वत-मैदान हर कहीं हरियाली की सौगात लेकर आते हैं, तो बाजवक्त डराते भी हैं। बारिश न हो तो जिंदगी न हो और बारिश ज्यादा हो जाए तो भी जिंदगी पर बन आए। इंद्रधनुषी मौसम के असल रंग कितने हैं, क्या समझ पाना इतना आसान है

कृष्ण जब जन्मे तब अंधेरी रात थी, लेकिन आकाश जलभरे बादलों से भरा हुआ था। काले-काले मेघों की पंचायत जुटी थी और काला अंधेरा उनसे मिलकर कृष्ण का सृजन कर रहा था। राधा उनकी वर्षा बनीं और कृष्ण बरस कर रिक्त हो गए। राधा भी बरस कर रिक्त हो गईं। काले मेंघों की उज्ज्वल वर्षा ने बरस-बरस कर पृथ्वी को उर्वर बनाकर रस से भर दिया। यही रस भारतीय साहित्य,
यमुना को बचाने के लिए व्यापक अभियान
Posted on 05 Jul, 2010 12:00 PM नई दिल्ली, 4 जुलाई (जनसत्ता)। नागरिक परिषद यमुना को बचाने का व्यापक अभियान शुरू करेगी। परिषद के अध्यक्ष वीरेश प्रताप चौधरी ने रविवार को दिल्ली में इस बारे में विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों की बैठक बुलाई। इस मौके पर यहां एक संगोष्ठी का भी आयोजन हुआ जिसमें पर्यावरणविद, जल-विशेषज्ञों और पूर्व नौकरशाहों सहति कई राजनेताओं व गैरसरकारी संगठनों ने जमना-सफाई पर अपने अनुभव और विचार रखे।
इतिहास बनता जा रहा है भूगोल
Posted on 02 Jul, 2010 10:23 AM दिल्ली में 1857 के गदर का हाल बताते हुए मिर्जा गालिब अपनी एक चिट्ठी में दरियागंज का जिक्र 'दरिया किनारे बसा नया मुहल्ला' के रूप में करते हैं। पढ़ कर आश्चर्य होता है कि दरियागंज क्या सचमुच कभी यमुना नदी के किनारे रहा होगा? अभी तो इससे यमुना की दूरी दो-ढाई किलोमीटर से कम नहीं होगी। नदियों की धारा पलटना भूगोल में एक स्वाभाविक घटना मानी जाती है, लिहाजा डेढ़ सौ सालों में घटित इस आश्चर्य को हम अनदेखा भी कर सकते हैं। लेकिन राजधानी के तेजी से बदलते भूगोल के साथ इस तरह के कई आश्चर्य जुड़े हैं, जिनकी वजह कोई प्राकृतिक घटना नहीं बल्कि मानवीय गतिविधियां हैं। जैसे रायसीना हिल्स का किसी पहाड़ी से नाता अब बिल्कुल समझ में नहीं आता। लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य ने खुद को सल्तनत-ए-मुगलिया का कहीं बेहतर वारिस साबित करने की कोशिश में रायसीना नाम की पहाड़ी को समतल करके वहां वाइसराय हाउस की स्थापना की, जिसे हम आज
नागरिक परिषद जुटेगी यमुना बचाने में
Posted on 01 Jul, 2010 09:33 AM नदी को बचाने के लिए अदालतों के आदेश को ठीक से लागू नहीं किया सरकार नेः वीरेश

नई दिल्ली, 30 जून। नागरिक परिषद दिल्ली ‘यमुना बचाओ अभियान’ शुरु करने जा रही है जिसकी अगुआई परिषद के अध्यक्ष वीरेश प्रताप चौधरी, पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना और दिल्ली के पूर्व मंत्री राजेंद्र गुप्ता करेंगे। इसकी जानकारी बुधवार को परिषद की ओर से हुई प्रेस कांफ्रेंस में दी गई। इस मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना और वीरेश प्रताप चौधरी ने बताया कि परिषद ने दिल्ली में चार जुलाई को एक संगोष्ठी का आयोजन किया है, जिसमें चंद विशेषज्ञों को भी आमंत्रित किया गया है। उस बैठक में अभियान की आगे की रूपरेखा तैयार की जाएगी। खुराना ने कहा कि यमुना दिल्ली और दिल्लीवालों के लिए सिर्फ एक नदी नहीं, इसकी जीवन रेखा है। यह हमारी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत
महासागरों पर मंडराता खतरा
Posted on 30 Jun, 2010 12:57 PM जलवायु में व्यापक बदलाव के खतरों से जूझने के साथ ही हमें हमारे महासागरों को भी प्रदूषण से बचाने की ज़रूरत है। अमेरिका के नेशनल ओसिएनिक एंड एटमस्फेयरिक एडमिनिस्ट्रिेशन के विशेषज्ञ रिचर्ड फ़ीली और इंटरनेशनल मैरीन कंजर्वेशन ऑर्गेनाइज़ेशन ओसिएनिया के जेफ़ शॉर्ट ने अमेरिकी विदेश विभाग के अंतरराष्ट्रीय सूचना कार्यक्रम ब्यूरो द्वारा आयोजित एक वेबचैट में महासागरों के बढ़ते अम्लीयकरण के खतरों से आगाह कि
कचरा बीनने वालों के जीवन में उम्मीद
Posted on 29 Jun, 2010 01:25 PM
आपका कचरा, उसका कारोबार एक पर्यावरण कार्यकर्ता के प्रयासों से
सुनो, चिड़िया कुछ कहती है
Posted on 29 Jun, 2010 11:02 AM चिड़िया हमारे पर्यावरण की थर्मामीटर जैसी हैं। उनकी सेहत ,उनकी खुशी बताती हैकि जिस माहौल में हमरह रहे हैं , वह कैसा है।प्रदूषित हवा से होनेवाली तेजाबी बारिश काअसर हमारी जिंदगी मेंदेर से जाहिर होता है ,लेकिन इससे चिड़ियों केअंडे पतले पड़ने लगते हैंऔर उनकी आबादी घटने लगती है। मोबाइल फोन से निकलनेवाली तरंगें इंसान पर क्या प्रभाव छोड़ती हैं , इस पर रिसर्चअभी चल ही रही है। लेकिन गौरैया , श्यामा औ
अमीरी की गरीबी
Posted on 26 Jun, 2010 04:20 PM देश छोटा-सा है, आबादी भी हम जैसे देशों की तुलना में बहुत ही कम है। लेकिन दूध, डेयरी और मांस का उत्पादन बहुत ही ज्यादा है। इसलिए पशुओं की संख्या भी खूब है। यहां एक व्यक्ति पर आठ पशुओं का औसत आता है। और इस कारण पशुओं का गोबर भी खूब है। हमारे देश में वरदान माना गया गोबर यहां के पर्यावरण के लिए अभिशाप बन चुका है। यहां इसे ‘राष्ट्रीय’ समस्या माना जा रहा है।अपरिग्रह, जरूरत से ज्यादा चीजों का संग्रह न करने की ठीक सीख सभी पर लागू होती है। सभी पर यानी सभी समय, सभी जगह, सभी देशों में और सभी चीजों पर। ऐसा नहीं कि साधारण चीजों पर ही यह लागू होती हो। अमृत भी जरूरत से ज्यादा किसी काम का नहीं। गोबर को हमारे यहां अमृत जैसा ही तो माना गया है। पर यही गोबर यूरोप के एक देश नीदरलैंड में जरूरत से ज्यादा हो गया तो उसने वहां कैसी तबाही मचाई- इसे बता रहे हैं श्री राजीव वोरा। चीजों के संग्रह, बेतहाशा आमदनी-खर्च पर टिका आज का अर्थशास्त्र हर कभी हर कहीं गिर रहा है। दो बरस पहले अमेरिका में गिरा तो इस समय यह यूरोप में ग्रीस को हिला गया है। कई देशों पर यह संकट छा रहा है। कुछ बरस पहले नीदरलैंड ने अपने अर्थशास्त्र में छिपे अनर्थ को समझने के लिए भारत, इंडोनेसिया, ब्राजील और तंजानिया से चार मित्रो को बुलाकर लगभग पूरा देश घुमाया था, अपने समाज के विभिन्न पदों, क्षेत्रों
हम समझें प्रकृति का सम्मान करना
Posted on 26 Jun, 2010 09:55 AM
वन्य जीवों पर फिल्म बनाने वाले भारतीय फिल्मकार माइक पांडे मानते हैं कि पृथ्वी पर मौजूद प्रत्येक प्राणी को जीवन चक्र में अपना किरदार निभाना होता है। उनका विश्वास है कि पर्यावरण की हिफाजत के लिए सबसे जरूरी है लोगों को शिक्षित करना। वह इस बात को मानते हैं कि लोगों को जब यह समझाया जाता है कि किस तरह वनस्पतियां और जानवर इंसान के लिए जरूरी हैं तो वे इनके संरक्षण के लिए कदम बढ़ाते हैं।
जैव विविधता पर टूटता कहर
Posted on 25 Jun, 2010 02:55 PM धरती में पाई जाने वाली ”जैव विविधता” अनमोल सम्पदा है। इस सम्पदा के बारे में अधिकांश लोग परिचित नहीं हैं। जैव विविधता में प्रकृति का अनुपम सौंदर्य समाया हुआ है। वहीं जैव विविधता को संरक्षित कर हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचाए हुए हैं। जैव विविधता का आर्थिक महत्व भी है, जो आज हो रहे जलवायु परिवर्तन, औद्योगिक विकास के कारण खत्म हो रही है।

जैव विविधता वर्ष 2010


जैविक विविधता से आशय जगत में विविध प्रकार के लोगों के साथ, इस जीव परिमंडल में भी भौगोलिक रचना के अनुसार अलग-अलग नैसर्गिक भूरचना, वर्षा, तापमान एवं जलवायु के कारण जैव विविधता, वनस्पति एवं प्राणी सृष्टि में प्राप्य है। मानवता के लिए अनिवार्य वर्ष 2010 को दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण
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