Posted on 03 Apr, 2015 08:07 AMमनुष्य सदियों से प्रकृति की गोद में फलता-फूलता रहा है। इसी से ऋषि-मुनियों ने आध्यात्मिक चेतना ग्रहण की और इसी के सौन्दर्य से मुग्ध होकर न जाने कितने कवियों की आत्मा से कविताएँ फूट पड़ीं। वस्तुतः मानव और प्रकृति के बीच बहुत गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। मानव अपनी भावाभिव्यक्ति के लिए प्रकृति की ओर देखता है और उसकी सौन्दर्यमयी बलवती जिज्ञासा प्रकृति सौन्दर्य से विमुग्ध होकर प्रकृति में
Posted on 03 Apr, 2015 08:03 AMभारत में वन एवं वृक्ष की क्षेत्रवार सूची को प्रणालीगत स्वरूप तथा नियमितता प्रदान करने की शुरुआत दो दशक पूर्व 1987 में हुई थी। नियमित समय पर वैज्ञानिक आधार पर प्रत्येक दो वर्ष में सुदूर संवेदी प्रौद्योगिकी के द्वारा वन की स्थिति रिपोर्ट बनाना, देश के नवीनतम वन क्षेत्र का मूल्यांकन उपलब्ध कराना तथा इसमे आए बदलाव को ध्यान में रखना और राष्ट्रीय वन क्षेत्रों का सूचीकरण एवं वन क्षेत्रों के बाहरी वृक्षों
Posted on 02 Apr, 2015 06:57 AMयह सही है कि हम सब लोग इस दुनिया में मिलकर काम कर रहे हैं, पर साथ ही साथ हम पर्यावरण के लिए खतरे भी पैदा कर रहे हैं। हमें खुद को आगे विकसित करते हुए इन खतरों को पैदा होने से रोकना है और समाज को एक मानव संवेदी परिवार बनाकर चलना है। यह जरूरी है कि हम समाज तथा आने वाली पीढि़यों के प्रति अपने उत्तरदायित्वों को समझें। यह जीवन प्रकृति की वजह से है। प्रकृति ही मनुष्य जाति के लिए जीने के साधन जुटाती रही ह
Posted on 31 Mar, 2015 08:13 AMसंसद में 13 दिसम्बर, 2005 को अनुसूचित जनजाति (वन अधिकारों को मान्यता) विधेयक 2005, जिसे फिर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारम्परिक वनवासी (वन अधिकारों को मान्यता) कानून, 2006 का नाम दिया गया, को पेश किया गया। इस कानून को 18 दिसम्बर, 2006 को संसद ने पारित कर दिया। राष्ट्रपति ने 29 दिसम्बर को इस विधेयक को मंजूरी दी और यह कानून प्रभावी हो गया। यह कानून अपने-आप में महत्त्वपूर्ण है। इसमें भविष्य में भारत के