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बोतल बंद पानी का वैश्विक बाजार
Posted on 26 May, 2011 09:55 AM

अमेरिका और यूरोप में 19वीं सदी में ही बोतलबंद पानी का बाजार पैदा हो गया था। इसकी एक वजह वहां दुनिया में सबसे पहले औद्योगिकीकरण का होना भी था। बोतलबंद पानी की पहली कंपनी 1845 में पोलैण्ड के मैनी शहर में लगी। इस कंपनी का नाम था ‘पोलैण्ड स्प्रिंग बाटल्ड वाटर कंपनी’ था। 1845 से आज दुनिया में दसियों हजार कंपनियां इस धंधे में लगी हुई हैं। बोतलबंद पानी का यह कारोबार आज 100 अरब डालर पर पहुंच गया है।

टाट की प्याऊ में पानी से भरे लाल घड़े
Posted on 24 May, 2011 01:05 PM

पहले गांव, कस्बों और शहरों में अनेक प्याऊ देखने को मिल जाती थीं, जहां टाट से घिरे एक कमरे में र

नदी के साथ-साथ एक सफर
Posted on 24 May, 2011 12:39 PM

मैं नदी के बहते जल के इस संगीत का इतना अभ्यस्त हो गया हूं कि जब मैं उससे दूर चला जाता हूं, तो म

भारत में जन-निजी भागीदारी
Posted on 24 May, 2011 10:31 AM ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना की प्रस्तावना कहती है ‘‘निम्न गुणवत्ता का बुनियादी ढाँचा भारत की मध्यम अवधि में विकास संभावना को गंभीर रूप से सीमित कर रहा है और ग्यारहवीं योजना शहरी और ग्रामीण दोनों के बुनियादी ढाँचों के विकास के लिए व्यापक कार्य योजना की रूपरेखा प्रस्तुत करती है’’। 15 ग्यारहवीं योजना का अनुमान है कि 9% की वार्षिक औसत विकास दर बनाए रखने के लिए बुनियादी ढाँचे में वर्ष 2007-2008 के खर्च
दरकते पहाड़ उफनती नदियां
Posted on 24 May, 2011 10:06 AM

पिछले एक-डेढ़ साल में लेह में बादल का फटना, राजस्थान, बिहार और कर्नाटक और बुंदेलखंड के कुछ हिस्सों में और अब दिल्ली और उत्तराखंड में आई बाढ़ ने कागजों पर चलते बाढ़ नियंत्रण आयोगों और योजनाओं को डुबो दिया है। आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि बारिश की मात्र कम हुई है और वर्षा-काल भी कम हुआ है, लेकिन बाढ़ से तबाही के इलाकों में कई गुना बढ़ोतरी हुई है।

पानी का संकट और सरकार की बेपरवाही
Posted on 24 May, 2011 08:43 AM

वैज्ञानिक बार-बार चेतावनी दे रहे हैं कि यदि जल संकट दूर करने के शीघ्र ठोस कदम नहीं उठाए गए तो

water scarcity
नदियों पर संकट
Posted on 23 May, 2011 04:13 PM

उत्तरी चीन की पीली नदी, भारत की गंगा नदी, पश्चिम अफ्रीका की नाइजर, संयुक्त राज्य अमेरिका की कोलोराडो घनी आबादी वाले इलाकों की प्रमुख नदियां हैं, जिनके प्रवाह में गिरावट आई है।

देश में पानी की स्थिति कमोबेश ऐसी हो गई है कि हर साल पानी को लेकर कुछ राज्यों में हाहाकार मच जाता है। कुछ राज्यों के शहरी क्षेत्रों में तो स्थिति खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है। ठंड के एक-दो महीने छोड़ दिए जाएं तो शहरी क्षेत्रों में टैंकरों और सार्वजनिक पानी के नलों के आसपास बर्तनों की भीड़ के बीच अपना नंबर आने की आशा में महिलाओं और बच्चों का मजमा लगना आम हो गया है। पानी को लेकर मारपीट तो आम बात है। लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब एक बाल्टी पानी के लिए आंखों से पानी आ जाए तो बड़ी बात नहीं होगी। जिस तरह से साल-दर-साल पानी की समस्या का सामना हम कर रहे हैं, उससे यह बात निश्चित है कि सब को एकजुट होकर प्रयास करने होंगे, नहीं तो हर पानी की बूंद पैसा मांगेगी और स्थिति यह भी हो सकती है कि भले ही हमारी जेब में पैसा तो हो लेकिन पीने के लिए पानी नहीं मिलेगा।
इंडोसल्फान: कीटनाशक का कहर
Posted on 23 May, 2011 01:08 PM

सर्वोच्च न्यायालय ने इंडोसल्फान के प्रयोग पर 8 सप्ताह की अस्थाई रोक लगा दी है। इस दौरान संबंधि

अब तो मां का दूध भी जहर हो गया है
Posted on 21 May, 2011 01:14 PM

देश की सोना उगलने वाली कृषि भूमि और पानी तो प्रदूषित हो ही चुका है, मगर अब मां के अमृत रूपी दूध में भी विषैले तत्व पाए गए हैं। महाराष्ट्र के रत्नागिरी के चिपलुन के डीबीजे कॉलेज के जिओलॉजी विभाग के एक अध्ययन के मुताबिक, मां के दूध में रसायनों की मात्रा खतरनाक स्तर तक पाई गई है। विभाग ने कोटावली सहित इलाके के सात गांवों अवाशी, लोटे, गुनाडे, गनुकंड, सोनगांव और पीरलोटे में वर्ष 2003 से 2004 के बीच

इंडोसल्फान नहीं, खेती को उद्योग बनने से बचाया जाए
Posted on 18 May, 2011 12:58 PM

भूजल का बेतरबीत तरीके से दोहन करके, अत्यधिक रासायनिक उवर्रक और रासायनिक कीटनाशकों को इस्तेमाल म

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