दिल्ली

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‘टेक पू टू द लू’ प्रतियोगिता
Posted on 20 Dec, 2013 12:19 PM फार्म जमा करने की अंतिम तिथि - 07 जनवरी 2014
आईआईटी दिल्ली द्वारा स्वच्छता पर राष्ट्रीय गोलमेज सम्मेलन में सम्मानित करने की तिथि - 21 जनवरी 2014
स्थान : आईआईटी दिल्ली


.खुले में शौच से होने वाली बीमारियों और समस्याओं के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए आईआईटी दिल्ली और यूनिसेफ ने मिलकर एक जागरूकता अभियान की पहल की है। जिसे ‘टेक पू टू लू’ यानि 'शौच शौचालय में जाए' का नाम दिया है। इसका मकसद युवाओं को खुले में शौच से होने वाली समस्याओं से अवगत कराना और समस्याओं से निपटने के लिए एक मुहिम शुरू करना है। यह अभियान पूर्ण रूप से डिजिटल माध्यमों द्वारा चलाया जा रहा है।

इस अभियान में चार तरह की प्रतियोगिताएं रखी गई हैं।


1. सेनिटेशन पर लघु फिल्म प्रतियोगिता
2. सेनिटेशन पर एनिमेशन फिल्म प्रतियोगिता
3. सेनिटेशन पर पोस्टर डिज़ाइन प्रतियोगिता
4. सेनिटेशन पर मोबाइल एप डिज़ाइन प्रतियोगिता
जल - एक संसाधन
Posted on 19 Dec, 2013 11:21 AM

उपलब्ध जल के अपरोधन, या संचयन के लिए निर्मित गड्ढों के जल से भर जाने एवं भू-सतह पर वर्षा की तीव्रता, मृदा की अंतःस्यंदन क्षमता से अधिक होने पर पृथ्वी की सतह पर जल प्रवाह होने लगता है। यह सतही प्रवाह के रूप में अपना रास्ता नदियों, झीलों या समुद्र की ओर करता है जो सतही अपवाह के रूप में जाना जाता है। फिर यह अन्य प्रवाह घटकों के साथ मिलकर संपूर्ण अपवाह बनाता है। अपवाह शब्द का उपयोग साधारणतया जब अकेले होता है तो इसे सतही अपवाह ही कहा जाता है।

कल्पना करें एक ऐसी बाल्टी की जिसके पेंदे में एक छेद हो। इस बाल्टी में रखा है पृथ्वी का संपूर्ण जलः सतही जल, भू-जल और वायुमंडल की आर्द्रता। यदि इसे ज्यों का त्यों छोड़ देंगे तो बाल्टी जल्दी ही खाली हो जाएगी। इस बाल्टी में जलस्तर बनाए रखने हेतु आवश्यक है कि जितनी मात्रा में इसका जल रिस रहा है, उतनी ही मात्रा में वह वापस आए। अनेक प्रक्रियाएं साथ-साथ चलते रहकर पृथ्वी के जल चक्र को गतिशील बनाए रखती हैं। यह सतत चक्र जलीय चक्र कहलाता है।

जलीय चक्र


जलीय शास्त्र पृथ्वी के विज्ञान का वह अंग है जो संपूर्ण पृथ्वी के ऊपर और नीचे व्याप्त जल एवं उसके प्रवाह के बारे में जानकारी देता है। संपूर्ण वर्षा पृथ्वी के जलीय चक्र का परिणाम होती है।
स्वच्छता के अधिकार की समस्याएं और समाधान पर राज्य स्तरीय विचार विमर्श
Posted on 17 Dec, 2013 12:06 PM खुले में शौच के कारण मानव मल से पानी का प्रदूषण और प्रदूषित पानी से मानव जीवन पर खतरे की बड़ी संभावना
शौचालय मर चुके हैं! उन्हें दफ़नाने का समय
Posted on 17 Dec, 2013 11:37 AM पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय का दावा है कि दिसंबर 2010 तक शौचालय अभियान से 53.09 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों तक पहुंचा गया और जनगणना क
भारत में स्वच्छता और स्वास्थ्य पर फैक्ट शीट
Posted on 16 Dec, 2013 03:07 PM नवंबर 2013
विश्व अर्थव्यवस्था में तेजी से अपनी स्थिति मजबूत कर रहा भारत दुनिया की शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। हालांकि, यह मानव विकास सूचकांक पर 134वें स्थान पर फिसल गया है।

भारत : खुले में शौच की वैश्विक राजधानी

गंदगी पर बैठा - शहरी भारत
Posted on 16 Dec, 2013 01:29 PM

शहरी गरीबों के लिए शौचालय निर्माण के लिए कोई महत्वपूर्ण सरकारी योजना नहीं है। ऐसी अकेली योजना ह

जल संग्रहण एवं प्रबंध
Posted on 16 Dec, 2013 10:13 AM

भूमिका


‘हमारी पृथ्वी अन्य ज्ञात खगोल-पिंडों में अनूठी है: यहां जल है।’

पिछले कुछ वर्षों में विकास और विकास प्रक्रियाओं में जल की महत्ता की चेतना बढ़ी है। भूत, वर्तमान, भविष्य के समस्त समाजों विकास और जीवन के लिए पर्याप्त स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है। साथ-ही-साथ स्वच्छ जल की उपलब्धता भौगोलिक और मौसमी कारणों से प्रभावित होती रही है और मानवीय सभ्यताओं ने इस पारिस्थितिकी को अनेक प्रकार से प्रभावित किया है, उनका अनेक प्रकार से दोहन किया है। इसकी जानकारी के लिए कि किस तरह स्वच्छ जल की कमी ने विकास के सामने अनेक बाधाएं खड़ी की हैं, विकासशील देशों की विकास नीतियों के अध्ययन की आवश्यकता है। प्रकृति के पांच उपादानों में जल सबसे महत्वपूर्ण है जो पृथ्वी पर जीवन को संभव करने में मदद करता है। जल का उपयोग बुनियादी मानवीय जीवन और विकास के लिए किया जाता है, साथ ही वह सारे जीवन-चक्र के लिए महत्वपूर्ण है। पानी हमेशा से सभ्याताओं का अवलंब रहा है। लगभग सभी प्राचीन सभ्यताएं, जिनमें से हमारी भी निकली है, जल के नज़दीक पली-बढ़ी हैं। पानी सदा से अपरिहार्य रहा है, न केवल मानवीय विकास के संदर्भ में बल्कि कृषि और मानवीय गतिविधियों के विकास में भी। पृथ्वी को अक्सर जल ग्रह कहा जाता है क्योंकि इसके 71 प्रतिशत भाग पर महासागरों का राज है। वर्षा के माध्यम से जल घटता भी है और फिर बढ़ता भी रहता है। इसलिए पानी के लिए चिंता करने की फिर क्या जरूरत है?

वास्तव में विश्व के जल-भंडार का केवल एक प्रतिशत हमारे उपयोग योग्य है। लगभग 97 प्रतिशत जल समुद्री खारा जल है और पृथ्वी के कुल जल-भंडार का 2.7 प्रतिशत ही स्वच्छ जल है। उस 2.7 प्रतिशत का भी काफी हिस्सा हिमनदों और पहाड़ों की चोटियों पर जमा हुआ है।
दिल्ली में भूजल के अनधिकृत और अवैध उपयोग को रोकने में अपना सहयोग दें
Posted on 15 Dec, 2013 05:17 PM

वॉटर टैंकर मालिक ध्यान दें 30 दिनों में अपना पंजीकरण कराएं


नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिनांक 03.09.2013 को आवेदन संख्या 108/2013, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल बार एसोसिएशन बनाम राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र, दिल्ली तथा अन्य को भूजल पानी के अनधिकृत और अवैध प्रयोग को रोकने के लिए निर्देश जारी किए हैं।
जीवन के लिए नदियां, नदियों के लिए जीवन
Posted on 14 Dec, 2013 03:42 PM कार्यक्रम में गंगा की परिकल्पना एक ऐसी स्वस्थ नदी प्रणाली के रूप मे
कैग ने आईआईटी और जेएनयू को आड़े हाथों लिया
Posted on 14 Dec, 2013 03:15 PM सरकारी लेखा परीक्षक कैग ने दिल्ली स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उनके परिसरों में वर्षा जल संचयन की सुविधा होने के बावजूद उन्होंने पानी के बिल पर 10 प्रतिशत की छूट का लाभ नहीं उठाया।
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