एस.सी महनोत और डी.सी. शर्मा

एस.सी महनोत और डी.सी. शर्मा
जल - एक संसाधन
Posted on 19 Dec, 2013 11:21 AM

उपलब्ध जल के अपरोधन, या संचयन के लिए निर्मित गड्ढों के जल से भर जाने एवं भू-सतह पर वर्षा की तीव्रता, मृदा की अंतःस्यंदन क्षमता से अधिक होने पर पृथ्वी की सतह पर जल प्रवाह होने लगता है। यह सतही प्रवाह के रूप में अपना रास्ता नदियों, झीलों या समुद्र की ओर करता है जो सतही अपवाह के रूप में जाना जाता है। फिर यह अन्य प्रवाह घटकों के साथ मिलकर संपूर्ण अपवाह बनाता है। अपवाह शब्द का उपयोग साधारणतया जब अकेले होता है तो इसे सतही अपवाह ही कहा जाता है।

कल्पना करें एक ऐसी बाल्टी की जिसके पेंदे में एक छेद हो। इस बाल्टी में रखा है पृथ्वी का संपूर्ण जलः सतही जल, भू-जल और वायुमंडल की आर्द्रता। यदि इसे ज्यों का त्यों छोड़ देंगे तो बाल्टी जल्दी ही खाली हो जाएगी। इस बाल्टी में जलस्तर बनाए रखने हेतु आवश्यक है कि जितनी मात्रा में इसका जल रिस रहा है, उतनी ही मात्रा में वह वापस आए। अनेक प्रक्रियाएं साथ-साथ चलते रहकर पृथ्वी के जल चक्र को गतिशील बनाए रखती हैं। यह सतत चक्र जलीय चक्र कहलाता है।

जलीय चक्र


जलीय शास्त्र पृथ्वी के विज्ञान का वह अंग है जो संपूर्ण पृथ्वी के ऊपर और नीचे व्याप्त जल एवं उसके प्रवाह के बारे में जानकारी देता है। संपूर्ण वर्षा पृथ्वी के जलीय चक्र का परिणाम होती है।
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