दिल्ली

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अमीरीः पीर पराई न जाने रे
Posted on 16 Jan, 2016 11:20 AM
जैसे-जैसे धन-दौलत और शिक्षा का व्यापार बढ़ता है, सफल लोगों में करुणा और संवेदना कम होती जातीहै। यह किसी धार्मिक गीत या गाँधीजी की कही हुई बात भर नहीं है। अब इसके सबूत आधुनिक मनोविज्ञानसे आ रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन : सूचना व जनसंचार तंत्र की भूमिका
Posted on 16 Jan, 2016 10:10 AM


विदित हो कि गत दो माह के दौरान जलवायु परिवर्तन के भिन्न पहलुओं पर मैंने कुछ अध्ययन, मनन और लेखन किया है, किन्तु मौसम विभाग के महानिदेशक डाॅ. लक्ष्मण सिंह राठौर एवं भारतीय कृषि अनुसन्धान केन्द्र के वैज्ञानिक डाॅ. एस. नरेश कुमार से हुई आकाशवाणी चर्चा के बाद मन बहुत उद्वेलित भी है और उत्साहित भी। इन्हीं भावों में विचरते रात भर नींद नहीं आई।

बड़ा है कुछ तो गड़बड़ है
Posted on 16 Jan, 2016 09:48 AM

आजकल अखबारों में, टेलिविजन में भोजन विशेषकर सब्जियों में बहुत ही भयानक कीटनाशकों की, जहरी

विशेष सूचना : ‘स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद’ शृंखला का शुभारम्भ
Posted on 15 Jan, 2016 03:32 PM


.सन्यासी बाना धारण कर प्रो. जीडी अग्रवाल से स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद का नामकरण हासिल गंगापुत्र का संकल्प किसी परिचय का मोहताज नहीं।

जानने वाले, गंगापुत्र स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद को ज्ञान, विज्ञान और संकल्प के एक ऐसे ही संगम की तरह जानते हैं, जैसा कि हम तीरथपति प्रयाग को जानते हैं; विज्ञान और आध्यात्म, विचार और कर्म और सच कहें, तो धर्म और उसके मर्म का संगम रहे हमारे प्रयाग, माघ मेला और कुम्भ को जानते हैं।

माँ गंगा के सम्बन्ध में अपनी माँगों को लेकर स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद द्वारा किये कठिन अनशन को करीब सवा दो वर्ष हो चुके हैं और ‘नमामि गंगे’ की घोषणा हुए करीब डेढ़ बरस, किन्तु माँगों को अभी भी पूर्ति का इन्तजार है।

जैविक खेती का रासायनिक किसान
Posted on 15 Jan, 2016 10:51 AM
ज्यादा पुरानी बात नहीं है। देश में खाने की किल्लत थी और सीमा पर हमले का डर था। तब जय जवान, जय किसान का नारा लगा। देश को किसानों की जरूरत थी, इसलिये प्रगति के नाम पर उनसे अपने पुराने तरीके छोड़ आधुनिक खेती करने को कहा गया।

कई इलाकों के किसानों को जोर डाल कर कहा गया कि उत्पादन बढ़ाएँ। इसके लिये उन्हें कई तरह के उन्नत कहे जाने वाले बीज और नई तरह के कीटनाशक और खाद दिये गए।

उत्पादन बढ़ा भी। गोदाम भर गए। हमारे समाज के सत्तासीन लोग जो लोग अपना भोजन नहीं उगाते, उनकी चिन्ता दूर हुई। किसान का महत्त्व स्वतः ही कम हो गया। कई इलाकों में भुखमरी फिर भी दूर नहीं हुई।
अकेले दिल्ली पर कड़ाई नहीं सुधरेगी राजधानी की सेहत
Posted on 14 Jan, 2016 12:41 PM

दिल्ली में बढ़ते जहरीले धुएँ के लिये आमतौर पर इससे सटे इलाकों में खेत में खड़े ढूँठ को जलाने से

ऐसे तो नहीं सुधरेगी नदियों की सेहत
Posted on 14 Jan, 2016 10:41 AM


आजकल देश में सबसे ज्यादा राष्ट्रीय नदी गंगा और उसके बाद यमुना की सफाई को लेकर चर्चा है। अभी तक इन दोनों नदियों की सफाई को लेकर बीते दशकों में हजारों करोड़ की राशि स्वाहा हो चुकी है लेकिन उनके हालात में कोई बदलाव नहीं आया है। हकीक़त यह है कि यह दोनों नदियाँ पहले से और ज्यादा मैली हो गई हैं।

मकर संक्रान्ति, फिर बने राष्ट्र विमर्श का नदी पर्व
Posted on 13 Jan, 2016 11:07 AM

मकर सक्रान्ति पर विशेष

 


मकर सक्रान्ति ही वह दिन है, जब सूर्य उत्तरायण होना शुरू करता है और एक महीने, मकर राशि में रहता है; तत्पश्चात सूर्य, अगले पाँच माह कुम्भ, मीन, मेष, वृष और मिथुन राशि में रहता है। एक दिन का हेरफेर हो जाये, तो अलग बात है, अन्यथा मकर सक्रान्ति का यह शुभ दिन, हर वर्ष अंग्रेजी कैलेण्डर के हिसाब से 14 जनवरी को आता है।

पंचांग के मुताबिक, इस वर्ष सूर्य 14 जनवरी की आधी रात के बाद प्रातः एक बजकर, 26 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेगा।

अब चूँकि मकर राशि में प्रवेश के बाद का कुछ समय संक्रमण काल माना जाता है; अतः सूर्योदय के सात घंटे, 21 मिनट के बाद यानी दिन में एक बजकर, 45 मिनट से संक्रान्ति का पुण्यदायी समय शुरू होगा। इस नाते इस वर्ष मकर सक्रान्ति स्नान 15 जनवरी को होगा।

सूखे का संकट स्थायी क्यों है
Posted on 11 Jan, 2016 04:25 PM


पिछले कुछ सालों से किसानों को बार-बार सूखे से जूझना पड़ रहा है और अब लगभग यह हर साल बना रहने वाला है। वर्ष 2009 में सबसे बुरी स्थिति रही है। पहले से ही खेती-किसानी बड़े संकट के दौर से गुज़र रही है। कुछ सालों से किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला रुक नहीं रहा है। इस साल भी सूखा ने असर दिखाया है, एक के बाद एक किसान अपनी जान दे रहे हैं।

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