दिल्ली

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राष्ट्रों का संघ और पर्यावरण सन्तुलन
Posted on 27 May, 2016 04:23 PM
जलवायु बदलाव और इससे जुड़े पर्यावरणीय खतरों की एक खास बात यह
गाँधीवाद रहे न रहे
Posted on 27 May, 2016 03:28 PM

अगर आप अहिंसक हैं तो आपको ऐसे नारे चुपचाप सुन लेने चाहिए। अगर गाँधीवाद में असत्य की बू है

भारतीय कृषि भविष्य की चुनौतियाँ
Posted on 27 May, 2016 11:13 AM

भारतीय कृषि के सामने जो चुनौतियाँ है, उनका गहराई से विश्लेषण करते हुए लेखक का कहना है कि उनका सामना समेकित नीति/कार्यक्रम से ही किया जा सकता है। किसी एक या दो पहलुओं पर ही जोर देने से लक्ष्य की पूर्ति अधूरी रह सकती है।

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार रहा है और अब भी है। इसे सिर्फ सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र के योगदान के रूप में ही नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि कृषि पर बड़ी संख्या में लोगों की निर्भरता और औद्योगिकीकरण में कृषि क्षेत्र की भूमिका के रूप में भी देखा जाना चाहिए। देश में कई महत्त्वपूर्ण उद्योग कृषि उत्पाद (उपज) पर निर्भर हैं जैसे कि वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग या फिर लघु व ग्रामीण उद्योग, जिनके अंतर्गत तेल मिलें, दाल मिलें, आटा मिलें और बेकरी आदि आते हैं।

आजादी के बाद से भारतीय कृषि ने काफी बढ़िया काम किया है। वर्ष 1950-51 में खाद्यान्न उत्पादन 5.083 करोड़ टन था जो 1990-91 में बढ़कर 17.6 करोड़ टन हो गया। इस प्रकार खाद्यान्न उत्पादन में लगभग 350 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी। तिलहन, कपास और गन्ने के उत्पादन में भी इसी प्रकार की वृद्धि दर्ज की गई है।
कृषि विकास के लिये उपयुक्त टेक्नोलॉजी
Posted on 27 May, 2016 11:00 AM

कम उपजाऊ तथा बारानी इलाकों में कृषि विकास, गाँवों में रोजगार बढ़ाने और गरीबी दूर करने दोनों दृष्टियों से आवश्यक है। यद्यपि यह एक चुनौती है परन्तु हमारे वैज्ञानिक इसका सफलतापूर्वक मुकाबला कर सकते हैं, क्योंकि कृषि अनुसंधान प्रणाली ने काफी अच्छे परिणाम दिए हैं। लेखक का कहना है कि बेहतर यही होगा कि हमारे कृषि अर्थशास्त्री तथा वैज्ञानिक उपयुक्त कृषि टेक्नोलॉजी विकसित करने के लिये मिलकर काम करें।

भारत में पिछले ढाई दशकों में हरित क्रांति तथा अनाज के मामले में आत्म निर्भरता की प्राप्ति में देश में विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी की सफलता की कहानी छिपी हुई है। वास्तव में कृषि उत्पादन के क्षेत्र में अब तक की उपलब्धियाँ हमारे कृषि अनुसंधान प्रणाली की पूर्ण क्षमताओं को प्रकट नहीं करतीं। पिछले वर्षों, विशेषकर गत डेढ़ दशक के दौरान भिन्न-भिन्न जलवायु तथा सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में भारतीय कृषि की आवश्यकताएँ पूरी करने में इस प्रणाली की क्षमताओं में बहुत वृद्धि हुई है। इतनी ही महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भारत में यहाँ तक कि दूर-दराज के इलाकों में छोटे-बड़े किसानों को विस्तार कार्यों और अनुभव के जरिए नई तथा बेहतर कृषि तकनीकों के इस्तेमाल और विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के लाभों की अच्छी जानकारी हो गई है। कृषि में काम आने वाली आधुनिक वस्तुओं की उनकी मांग तथा नए तरीकों को जानने की इच्छा बढ़ती जा रही है, जिसके फलस्वरूप गाँवों में विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी पर आधारित जो कृषि आज हमें दिखाई दे रही है, वह 25 वर्ष पहले की खेती-बाड़ी से बहुत भिन्न है। हमारी कृषि अनुसंधान प्रणाली तथा उसके प्रति किसानों की रचनात्मक प्रतिक्रिया इन दोनों बातों को देख कर लगता है, कि निकट भविष्य में कृषि क्षेत्र में तेजी से प्रगति होगी।
पानी का अर्थशास्त्र
Posted on 27 May, 2016 09:45 AM
Economics Of Water

संदर्भ - विश्व बैंक की ‘हाई एंड ड्राईः क्लाईमेट चेंज, वाटर एंड दी इकॉनोमी रिपोर्ट’

Reference -‘High and Dry: Climate Change, Water and the Economy Report by World Bank’
कृषि और आठवीं पंचवर्षीय योजना
Posted on 26 May, 2016 04:11 PM

लेखक का कहना है कि आठवीं पंचवर्षीय योजना का लक्ष्य खेती की पैदावार सम्बंधी प्रौद्योगिकी के लाभों को स्थायी व सुदृढ़ करना है ताकि ने केवल बढ़ती हुई घरेलू मांगों को पूरा किया जा सके अपितु निर्यात के लिये अतिरिक्त पैदावार की जा सके। काम कठिन है, परन्तु वर्षा सिंचित इलाकों के विकास, सिंचाई-सुविधाओं के कुशल उपयोग और आर्थिक दृष्टि से व्यावहारिक खेती की उन्नत तकनीकों की निरंतर सुलभता से हम अपने लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकते हैं।

महात्मा गाँधी ने हमें चिंतन के लिये एक आर्थिक विचार दियाः “मेरे हिसाब से भारत की ही नहीं बल्कि विश्व की आर्थिक संरचना ऐसी होनी चाहिए कि इसमें रहने वाले किसी भी व्यक्ति को रोटी और कपड़े की परेशानी न हो। दूसरे शब्दों में प्रत्येक को पर्याप्त रोजगार मिले ताकि उसकी गुजर-बसर होती रहे और समूचे विश्व में यह आदर्श तभी स्थापित हो सकता है। जब जीवन की बुनियादी जरूरतों के उत्पादन के साधन जनसाधारण के नियंत्रण में हों। वे सब लोगों को इस प्रकार उपलब्ध होने चाहिए, जैसे कि परमात्मा से हमें जल और वायु मिलते हैं या मिलने चाहिए...”। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात आर्थिक विकास की एक नियोजित प्रक्रिया शुरू की गई। कृषि के बारे में पंडित नेहरू ने कहा था कि ‘‘हरेक चीज इंतजार कर सकती है, खेती नहीं।”

भारतीय कृषि अधिकांशतया मौसम की स्थितियों पर, प्रमुख तौर पर वर्षा और समय पर व अधिकतम क्षेत्र पर वर्षा होने पर निर्भर करती है।
परती भूमि का विकास
Posted on 26 May, 2016 03:54 PM

देश में परती भूमि के फैलाव के कारण उत्पादक संसाधनों के आधार तथा जीवनदायी प्रणालियों के लि

अहम है ग्लेशियरों की रक्षा का सवाल
Posted on 26 May, 2016 03:45 PM
ग्लेशियर की बर्फ पिघलने से पानी अपने साथ मलबा लेकर आ रहा है।
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