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छत्तीसगढ़
पांडरपुरी के ग्रामीण बना रहे खंडी नदी में बाँध
Posted on 11 Jan, 2013 11:31 AMछत्तीसगढ़ के एक गांव में डेढ़ सौ महिला-पुरुषों ने उठाया बीड़ा
![श्रमदान कर खंडी नदी में बांध बनाने जुटे पांडरपुरी के ग्रामीण श्रमदान कर खंडी नदी में बांध बनाने जुटे पांडरपुरी के ग्रामीण](/sites/default/files/hwp/import/images/shramdan_khandi river_in chhattisgarh.jpg)
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर
Posted on 04 Jul, 2011 01:23 PMमीडिया फैलोशिप
समाज और देश के विकास में मीडिया की भूमिका और अपेक्षाओं को रेखांकित करने के उद्देश्य से विश्वविद्यालय द्वारा छत्तीसगढ़ के महान पत्रकारों की स्मृति में स्थापित मीडिया फैलोशिप 2011-12 के लिए अर्हताधारी शोधार्थियों एवं मीडिया प्रोफेशनल्स से आवेदन निर्धारित प्रपत्र में आमंत्रित है-
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी फैलोशिप
गांव के लोगों ने खुद ही बना लिया अपना बांध
Posted on 19 Apr, 2011 09:16 AMपिथौरा/रायपुर। पानी की कमी से निपटने के लिए छत्तीसगढ़ के देवरूम गांव के लोग जोंक नदी में हर साल अपने बलबूते बांध का निर्माण कर संकट से निजात पा रहे हैं। बांध से पांच किमी के दायरे में पानी का भराव रहता है। इससे आसपास की पंद्रह सौ एकड़ जमीन पर गर्मी में रबी की फसल ली जाती है। इसके चलते भूजल स्तर में सुधार हो रहा है।
![](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/bandh1_f_5.jpg?itok=YfVaLMjI)
नरेगा
Posted on 29 Oct, 2010 09:13 AMखास बात
• अर्जी देने के १५ दिनों के अंदर न्यूनतम निर्धारित मजदूरी की दर पर प्रत्येक वित्तीय वर्ष में किसी ग्रामीण परिवार के एक व्यस्क सदस्य को(बशर्ते वह हाथ के काम करने को तैयार हो) १०० दिनों तक रोजगार मुहैया कराने के लिए राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम को भारत की संसद ने साल २००५ में लागू किया किया।*
केलो नदी को बचाने की जरूरत
Posted on 08 Jun, 2010 07:32 AMछत्तीसगढ़, रायगढ़ का ख़मरिया गांव भारत के बाक़ी गांवों से कम भाग्यशाली नहीं है. इसकी सा़फ-सुथरी गलियां, सलीके से बनाए गए मिट्टी के घर यह बताते हैं कि दूसरे ग्रामीण इलाक़ों की समृद्धि किस तरह हो सकती है. केलो नदी इसी गांव से होकर गुज़रती है. यही नदी इन इलाक़ों की कृषि के लिए सिंचाई का साधन है. गांव से मुख्य मार्ग तक पहुंचने का साधन भी आसान है. बिजली आदि सभी सुविधाएं होने के कारण शिक़ायत की कोई वजह नहीं हो सकती है. लेकिन, यदि कोई इस गांव के आवासीय इलाक़ों से होकर गुज़रता है तो उसके मन में इसकी ग़लत छवि क्यों उभर आती है? सबसे ख़ास बात यह कि वह पानी जो खमरिया और इसके पड़ोसी गांवों का पालन पोषण करता है, काला हो रहा है. यह पानी पीने, नहाने और सिंचाई के लायक़ बिल्कुल ही नहीं रह गया है.
खमरिया के पास केलो नदी की जलधारा कोयला खान मालिकों और मोनेट इस्पात एवं ऊर्जा लिमिटेड द्वारा नियंत्रित होती है. यदि कोई चिड़िया उड़कर आए तो कोयले की खान से खमरिया गांव की दूरी तीन किलोमीटर से ज़्यादा नहीं होगी.