Posted on 20 Mar, 2010 08:40 AM आद्रा तौ बरसै नहीं, मृगसिर पौन न जोय। तौ जानौ यो भड्डरी, बरखा बूँद न होय।।
भावार्थ- भड्डरी का मानना है कि यदि आर्द्रा नक्षत्र में पानी न बरसा और मृगशिरा नक्षत्र में हवा न चली तो वर्षा नहीं होगी, जिससे फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
Posted on 19 Mar, 2010 04:13 PM हस्त बरसे तीन होय, साठी सक्कर मास। हस्त बरसे तीन जाय, तिल कोदो औ कपास।।
भावार्थ- हस्त नक्षत्र की वर्षा से धान, ईख और ऊड़द इन तीनों की पैदावार बढ़ जाती है, लेकिन इसी नक्षत्र की वर्षा से कोदो, कपास और तिल तीनों की फसल नष्ट हो जाती है।
Posted on 19 Mar, 2010 04:01 PM हथिया बरसे चित्रा मँडराय। घर बैठे किसान रिरियाय।।
शब्दार्थ- रिरियाय-दीन वाणी बोलना।
भावार्थ- यदि हस्त नक्षत्र में वर्षा हो और चित्रा में केवल बादल मंडराते रहें और वर्षा न हो तो किसान दीन-हीन होकर घर में असहाय बैठा रहेगा क्योंकि वर्षा कम होगी जिससे अन्न की उपज बहुत कम होगी।
Posted on 19 Mar, 2010 03:03 PM सावन सुक्ला सत्तमी, बादर बिजुरी होय। करि खेती पिय भवन में, निश्चित रहिए सोय।।
भावार्थ- यदि सावन शुक्ल सप्तमी को बादल में बिजली चमक रही हो तो पत्नी अपने पति से कहती है कि हे प्रियतम! खेती करके (बीज डाल करके) आराम से घर में सो जाओ क्योंकि इस वर्ष खेती बहुत अच्छी होगी।
Posted on 19 Mar, 2010 02:40 PM सुदि असाढ़ नौमी दिना, बाहर झीनो चंद। जानै भड्डरी भूमि पर, मानो होय अनन्द।।
भावार्थ- यदि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की नवमी को बादलों के बीच में झीना, धुंधला चन्द्रमा दिखायी दे तो समझ लेना चाहिए कि पृथ्वी पर प्रसन्नता ही प्रसन्नता होगी अर्थात् अच्छी वर्षा होगी और अनाज खूब पैदा होगा।