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नरसी गेहूँ सरसी जवा
Posted on 23 Mar, 2010 12:04 PM
नरसी गेहूँ सरसी जवा।
अति के बरसे चना बवा।।


शब्दार्थ- नरसी – नीरस या शुष्क।

भावार्थ- गेहूँ की बोवाई खुश्क खेत में और जौ की तर खेत में करनी चाहिए, लेकिन यदि पानी अधिक बरसे तो उसमें चना बोना चाहिए।

जौ गेहूँ बौवै पाँच पसेर
Posted on 23 Mar, 2010 11:12 AM
जौ गेहूँ बौवै पाँच पसेर, मटर के बीघा तीसै सेर।
बोवै चना पसेरी तीन, तिन सेर बीघा जोन्हरी कीन।।

दो सेर मोथी अरहर मास, डेढ़ सेर बिगहा बीज कपास।।
पाँच पसेरी बिगहा धान, तीन पसेरी जड़हन मान।।

सवा सेर बीघा साँवाँ मान, तिल्ली सरसों अँजुरी जान।।
बर्रै कोदो सेर बोआओ, डेढ़ सेर बीघा तीसी नाओ।।
जब बर्र बरौठे आई
Posted on 23 Mar, 2010 11:07 AM
जब बर्र बरौठे आई।
तब रबी की होय बोवाई।।


शब्दार्थ- बर्रे-ततैया। हाड़ी। बरौठे-दालान में।

भावार्थ- जब बर्रे उड़ती हुई दालान में बैठने लगें, तब समझ लेना चाहिए कि रबी की बोवाई का समय आ गया है।

जो तू भूखा माल का
Posted on 23 Mar, 2010 11:05 AM
जो तू भूखा माल का।
तो ईख करे नाल का ।।


भावार्थ- यदि किसान धन का भूखा है तो उसे नाले या नहर की ओर ईख बोनी चाहिए। सिंचाई की सुविधा के कारण फसल अच्छी होगी।

जो कोई अगहन बोवै जौआ
Posted on 23 Mar, 2010 10:08 AM
जो कोई अगहन बोवै जौआ।
होइ त होइ नहीं खावै कौआ।।


भावार्थ- जो किसान अगहन मास में जो बोता है तो जौ हुआ, बर्ना उसे कौवे ही खाते हैं अर्थात् वह फसल भाग्य के भरोसे ही होती है।

छीछी भली जो चना
Posted on 23 Mar, 2010 10:06 AM
छीछी भली जो चना, छीछी भली कपास।
जिनकी छीछी ऊखड़ी, उनकी छोड़ो आस।।


शब्दार्थ- छी-छी-बीड़र, कुछ दूर-दूर।

भावार्थ- यदि जौ, चना और कपास को दूर-दूर बोयें तो अच्छा होता है परन्तु यदि ईख बीड़र हो गई अर्थात् दूर-दूर गई तो उसके पैदावार की आशा छोड़ देनी चाहिए।

चना चित्तरा चौगुना
Posted on 23 Mar, 2010 10:04 AM
चना चित्तरा चौगुना।
स्वाती गेहूँ होय।।


भावार्थ- यदि चना की बोवाई चित्रा नक्षत्र में एंव गेहूँ की बोवाई स्वाती नक्षत्र में की जाये तो पैदवार चौगुनी बढ़ जाती है।

चित्रा गोहूँ अद्रा धान
Posted on 23 Mar, 2010 10:02 AM
चित्रा गोहूँ अद्रा धान,
न उनके गेरुई न इनके घाम।


भावार्थ- चित्रा नक्षत्र में गेहूँ और आर्द्रा नक्षत्र में धान बोना चाहिए। इन नक्षत्रों में बोने से गेहूँ में न तो गेरुई रोग लगता है और न ही धान को धूप लगती है अर्थात् धान धूप लगने से भी सूखता नहीं है।

घनी-घनी जब सनई बोवै
Posted on 23 Mar, 2010 10:00 AM
घनी-घनी जब सनई बोवै।
तब सतरी की आसा होवै।।


भावार्थ- सनई को पास-पास बोने से पैदावार अधिक होती है जिससे सुतली की आशा हो जाती है।

गाजर गंजी मूरी
Posted on 23 Mar, 2010 09:57 AM
गाजर गंजी मूरी,
तीनों बोवै दूरी।


भावार्थ- गाजर, गंजी (शकरकंद) और मूली इन तीनो को दूर-दूर बोना चाहिए।

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