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जोइगर, बँसगर बुझगर भाय
Posted on 25 Mar, 2010 09:36 AM
जोइगर, बँसगर बुझगर भाय, तिरिया सतवँती नीक सुभाय।
धनुपत हो मन होइ बिचार, कहैं घाघ ई सुक्ख अपार।।


शब्दार्थ- जोइगर-बलवान। बसगर-वंशवाला। बुझगर-समझदार।
छज्जे की बैठक बुरी
Posted on 25 Mar, 2010 09:34 AM
छज्जे की बैठक बुरी, परछाई की छाँह।
द्वारे का रसिया बुरा, नित उठि पकरै बाँह।।


भावार्थ- छत के छज्जे पर बैठना बुरा होता है। परछाई की छाया भी अच्छी नहीं होती। इसी तरह दरवाजे का (निकट में रहने वाला) प्रेमी भी अच्छा नहीं होता, जो रोज उठकर प्रेमिका की बाँहें पकड़ता रहता है।

चार छावैं
Posted on 25 Mar, 2010 09:32 AM
चार छावैं, छः निरावै।
तीन खाट, दो बाट।।


भावार्थ- छप्पर छाने के लिए चार व्यक्ति, निराई के लिए छः व्यक्ति, चारपाई बुनने के लिए तीन व्यक्ति एवं राह पर चलने के लिए दो व्यक्ति होने चाहिए।

चना क खेती चिक्कधन
Posted on 25 Mar, 2010 09:30 AM
चना क खेती चिक्कधन। बिटिअन कै बढ़वारि।।
यतनेहु पर धन ना घटै तो करै बड़े से रारि।।


शब्दार्थ- चिक्क-कसाई। रारि-लड़ाई।

भावार्थ- चने की खेती, बकरी का व्यापार, लड़कियों की बढ़वार, यदि इन सब से धन की समाप्ति न हो, तो किसी बड़े आदमी से लड़ाई कर लो।

चाकर चोर राज बेपीर
Posted on 25 Mar, 2010 09:28 AM
चाकर चोर राज बेपीर।
कहै घाघ का धारी धीर।।


शब्दार्थ- चाकर-नौकर।

भावार्थ- यदि नौकर चोर हो और राजा निर्दयी हो, तो घाघ कहते हैं कि ऐसी स्थिति में धीरज धारण करना कठिन है।

घर की खुनुस औ ज्वर की भूख
Posted on 25 Mar, 2010 09:23 AM
घर की खुनुस औ ज्वर की भूख, छोट दमाद बराहे ऊख।
पातर खेती भकुवा भाय, घाघ कहैं दुख कहाँ समाय।।


शब्दार्थ- खुनुस-कलह, क्रोध। बराहे-रास्ता। भकुआ-मूर्ख।

भावार्थ- घर में दिन-रात की कलह, बुखार के बाद की भूख, बेटी से छोटा दामाद, रास्ते की ऊख, हलकी खेती और मूर्ख भाई ये सभी कष्टकर हैं।

घर घोड़ा पैदल चलै
Posted on 25 Mar, 2010 09:19 AM
घर घोड़ा पैदल चलै, तीर चलावे बीन।
थाती धरे दमाद घर, जग में भकुआ तीन।।


भावार्थ- घर में घोड़ा होते हुए भी पैदल चलने वाले, बीन-बीन कर तीर चलाने वाले और अपनी धरोहर (थाती) दामाद के घर रखने वाले, ये तीनो महामूर्ख की श्रेणी में आते हैं।

घाघ बात अपने मन गुनहीं
Posted on 25 Mar, 2010 09:17 AM
घाघ बात अपने मन गुनहीं,
ठाकुर भगत न मूसर धनुहीं।


भावार्थ- घाघ का मानना है कि जिस प्रकार मूसर (अनाज कूटने वाला उपकरण) झुककर धनुहीं नहीं बन सकता, ठीक उसी प्रकार ठाकुर कभी भगत नहीं बन सकता, न ही झुक सकता है।

घर में नारी आँगन सोवै
Posted on 25 Mar, 2010 09:12 AM
घर में नारी आँगन सोवै, रन में चढ़के छत्री रोवै,
रात में सतुवा करै बिआरी, घाघ मरै तेहि का महतारी।।


शब्दार्थ- बिआरी- रात का खाना।
गया पेड़ जब बकुला बैठा
Posted on 25 Mar, 2010 09:10 AM
गया पेड़ जब बकुला बैठा। गया गेह जब मुड़िया पैठा।।
गया राज जहँ राजा लोभी। गया खेत जहँ जामी गोभी।।


शब्दार्थ- मुड़िया-संन्यासी।

भावार्थ- जिस पेड़ पर बगुला बैठता हो, जिस घर में संन्यासी का आना-जाना हो, जिस राज्य का राजा लोभी हो और जिस खेत में गोभी (एक प्रकार की घास) जमने लगे, इन सब को नष्ट हुआ ही समझना चाहिए।
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