Posted on 25 Mar, 2010 09:34 AM छज्जे की बैठक बुरी, परछाई की छाँह। द्वारे का रसिया बुरा, नित उठि पकरै बाँह।।
भावार्थ- छत के छज्जे पर बैठना बुरा होता है। परछाई की छाया भी अच्छी नहीं होती। इसी तरह दरवाजे का (निकट में रहने वाला) प्रेमी भी अच्छा नहीं होता, जो रोज उठकर प्रेमिका की बाँहें पकड़ता रहता है।
Posted on 25 Mar, 2010 09:19 AM घर घोड़ा पैदल चलै, तीर चलावे बीन। थाती धरे दमाद घर, जग में भकुआ तीन।।
भावार्थ- घर में घोड़ा होते हुए भी पैदल चलने वाले, बीन-बीन कर तीर चलाने वाले और अपनी धरोहर (थाती) दामाद के घर रखने वाले, ये तीनो महामूर्ख की श्रेणी में आते हैं।
Posted on 25 Mar, 2010 09:17 AM घाघ बात अपने मन गुनहीं, ठाकुर भगत न मूसर धनुहीं।
भावार्थ- घाघ का मानना है कि जिस प्रकार मूसर (अनाज कूटने वाला उपकरण) झुककर धनुहीं नहीं बन सकता, ठीक उसी प्रकार ठाकुर कभी भगत नहीं बन सकता, न ही झुक सकता है।
Posted on 25 Mar, 2010 09:10 AM गया पेड़ जब बकुला बैठा। गया गेह जब मुड़िया पैठा।। गया राज जहँ राजा लोभी। गया खेत जहँ जामी गोभी।।
शब्दार्थ- मुड़िया-संन्यासी।
भावार्थ- जिस पेड़ पर बगुला बैठता हो, जिस घर में संन्यासी का आना-जाना हो, जिस राज्य का राजा लोभी हो और जिस खेत में गोभी (एक प्रकार की घास) जमने लगे, इन सब को नष्ट हुआ ही समझना चाहिए।