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पानी की छोटी-छोटी कहानियां
Posted on 08 Jul, 2010 07:27 PM
यूं तो मौसम कई होते हैं। परंतु बच्चों से पूछा जाए कि सबसे अच्छा मौसम कौन सा है, तो अधिकांश का कहना होगा-रेनी सीजन, यानी बारिश। चलिए इस बार आपको बरसात से जुड़ी कुछ खास जानकारियां देते हैं।

 

 

वर्षा जल का संरक्षण


आम तौर पर लोग बरसाती पानी का महत्त्व नहीं समझते। इसीलिए भगवान की इस देन की सब उपेक्षा करते हैं और सारा पानी जमीन में या नदियों में चला जाता है। फिर नदियों का

प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा
Posted on 08 Jul, 2010 11:32 AM जब से कृष्ण कथा प्रचलित हुई या जब से सावन-भादों का मुहावरा बना, मौसम का चक्र ठीक वैसा नहीं था जैसा आज होता है। अगर प्रकृति अपने ही कारणों से मौसम के चक्र को बदलती रहती है तो चिंता किस बात की?कहा जाता है कि भारतीय कृषि मॉनसून पर दांव लगाने पर निर्भर है। लग गया तो बढ़िया बरसात होगी। पासा उल्टा पड़ा तो सूखा और अकाल। जमाने से हम इस जुए के नियम-कायदे सीखते रहे हैं। अब तक तो हमने सारे के सारे रट भी लिए हैं। अधिक से अधिक हम अड़तालिस घंटे पहले से भविष्यवाणी करने लगते हैं, लेकिन चौबिस घंटे से पहले की भविष्यवाणी बस उम्मीद पर आधारित होती है और अक्सर निराश ही कर देती है। अपनी सारी जानकारी और अपने सारे विज्ञान को इस जुए में झोंक देने के बावजूद प्रकृति हमसे बड़ी खिलाड़ी सिद्ध हो गई है। उसने इस मॉनसून के नियम-कायदे ही बदल दिए हैं।
घनन-घनन घिर-घिर आए बदरा
Posted on 05 Jul, 2010 04:28 PM

बादलों की पूरी सज-धज के साथ आखिर फिर आ गई बरसात। धरती ने धानी चुनर ओढ़ ली है तो मेघ-मल्हार और कजरी की उत्सवधर्मिता का भी यह आगाज है। उमड़ते-घुमड़ते, गरजते-बरसते बादल वन-उपवन, खेत-खलिहान, पर्वत-मैदान हर कहीं हरियाली की सौगात लेकर आते हैं, तो बाजवक्त डराते भी हैं। बारिश न हो तो जिंदगी न हो और बारिश ज्यादा हो जाए तो भी जिंदगी पर बन आए। इंद्रधनुषी मौसम के असल रंग कितने हैं, क्या समझ पाना इतना आसान है

कृष्ण जब जन्मे तब अंधेरी रात थी, लेकिन आकाश जलभरे बादलों से भरा हुआ था। काले-काले मेघों की पंचायत जुटी थी और काला अंधेरा उनसे मिलकर कृष्ण का सृजन कर रहा था। राधा उनकी वर्षा बनीं और कृष्ण बरस कर रिक्त हो गए। राधा भी बरस कर रिक्त हो गईं। काले मेंघों की उज्ज्वल वर्षा ने बरस-बरस कर पृथ्वी को उर्वर बनाकर रस से भर दिया। यही रस भारतीय साहित्य,
समुद्र किनारे शिक्षा
Posted on 30 Jun, 2010 01:18 PM अक्टूबर में चेन्नई समुद्रतट पर पहुंचे 24,300 टन वजनी सैलानी पोत से उतरे लोग दक्षिण भारत के सुंदर समुद्रतट को निरखने आए कैमरे लादे पर्यटक नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन के अनुभवों को पढ़ने आए 520 अमेरिकी छात्र और उनके अध्यापक थे। एक सेमेस्टर समुद्र पर पढ़ने वाले इन छात्रों को संसार को देखने की एक व्यापक दृष्टि के साथ ही शैक्षणिक क्रेडिट भी मिलेंगे। पोत पर और उससे परे लगने वाली इनकी कक्षाएं अपने आप में न
महासागरों पर मंडराता खतरा
Posted on 30 Jun, 2010 12:57 PM जलवायु में व्यापक बदलाव के खतरों से जूझने के साथ ही हमें हमारे महासागरों को भी प्रदूषण से बचाने की ज़रूरत है। अमेरिका के नेशनल ओसिएनिक एंड एटमस्फेयरिक एडमिनिस्ट्रिेशन के विशेषज्ञ रिचर्ड फ़ीली और इंटरनेशनल मैरीन कंजर्वेशन ऑर्गेनाइज़ेशन ओसिएनिया के जेफ़ शॉर्ट ने अमेरिकी विदेश विभाग के अंतरराष्ट्रीय सूचना कार्यक्रम ब्यूरो द्वारा आयोजित एक वेबचैट में महासागरों के बढ़ते अम्लीयकरण के खतरों से आगाह कि
कचरा बीनने वालों के जीवन में उम्मीद
Posted on 29 Jun, 2010 01:25 PM
आपका कचरा, उसका कारोबार एक पर्यावरण कार्यकर्ता के प्रयासों से
सुनो, चिड़िया कुछ कहती है
Posted on 29 Jun, 2010 11:02 AM चिड़िया हमारे पर्यावरण की थर्मामीटर जैसी हैं। उनकी सेहत ,उनकी खुशी बताती हैकि जिस माहौल में हमरह रहे हैं , वह कैसा है।प्रदूषित हवा से होनेवाली तेजाबी बारिश काअसर हमारी जिंदगी मेंदेर से जाहिर होता है ,लेकिन इससे चिड़ियों केअंडे पतले पड़ने लगते हैंऔर उनकी आबादी घटने लगती है। मोबाइल फोन से निकलनेवाली तरंगें इंसान पर क्या प्रभाव छोड़ती हैं , इस पर रिसर्चअभी चल ही रही है। लेकिन गौरैया , श्यामा औ
अमीरी की गरीबी
Posted on 26 Jun, 2010 04:20 PM देश छोटा-सा है, आबादी भी हम जैसे देशों की तुलना में बहुत ही कम है। लेकिन दूध, डेयरी और मांस का उत्पादन बहुत ही ज्यादा है। इसलिए पशुओं की संख्या भी खूब है। यहां एक व्यक्ति पर आठ पशुओं का औसत आता है। और इस कारण पशुओं का गोबर भी खूब है। हमारे देश में वरदान माना गया गोबर यहां के पर्यावरण के लिए अभिशाप बन चुका है। यहां इसे ‘राष्ट्रीय’ समस्या माना जा रहा है।अपरिग्रह, जरूरत से ज्यादा चीजों का संग्रह न करने की ठीक सीख सभी पर लागू होती है। सभी पर यानी सभी समय, सभी जगह, सभी देशों में और सभी चीजों पर। ऐसा नहीं कि साधारण चीजों पर ही यह लागू होती हो। अमृत भी जरूरत से ज्यादा किसी काम का नहीं। गोबर को हमारे यहां अमृत जैसा ही तो माना गया है। पर यही गोबर यूरोप के एक देश नीदरलैंड में जरूरत से ज्यादा हो गया तो उसने वहां कैसी तबाही मचाई- इसे बता रहे हैं श्री राजीव वोरा। चीजों के संग्रह, बेतहाशा आमदनी-खर्च पर टिका आज का अर्थशास्त्र हर कभी हर कहीं गिर रहा है। दो बरस पहले अमेरिका में गिरा तो इस समय यह यूरोप में ग्रीस को हिला गया है। कई देशों पर यह संकट छा रहा है। कुछ बरस पहले नीदरलैंड ने अपने अर्थशास्त्र में छिपे अनर्थ को समझने के लिए भारत, इंडोनेसिया, ब्राजील और तंजानिया से चार मित्रो को बुलाकर लगभग पूरा देश घुमाया था, अपने समाज के विभिन्न पदों, क्षेत्रों
हम समझें प्रकृति का सम्मान करना
Posted on 26 Jun, 2010 09:55 AM
वन्य जीवों पर फिल्म बनाने वाले भारतीय फिल्मकार माइक पांडे मानते हैं कि पृथ्वी पर मौजूद प्रत्येक प्राणी को जीवन चक्र में अपना किरदार निभाना होता है। उनका विश्वास है कि पर्यावरण की हिफाजत के लिए सबसे जरूरी है लोगों को शिक्षित करना। वह इस बात को मानते हैं कि लोगों को जब यह समझाया जाता है कि किस तरह वनस्पतियां और जानवर इंसान के लिए जरूरी हैं तो वे इनके संरक्षण के लिए कदम बढ़ाते हैं।
पहाड़ों में औधौगिक विकास तथा पर्यावरणः वास्तविकता व भावी दिशा
Posted on 25 Jun, 2010 04:25 PM पर्वतीय विकास और रोजगार-सुविधा के नाम से पिछले 10 वर्षों में उत्तराखण्ड में औद्यौगिकरण के कई नये उपायों को प्रारम्भ किया गया है। यूं तो रोजगार देने के हर प्रयास का स्वागत पहाड़ की जनता भी करती है और वहां के सरकारी, अर्द्धसरकारी व सामाजिक संस्थान भी करते हैं, क्योंकि पहाड़ की ‘युवा-पलायन’ की समस्या का हल इन उद्योगों के जरिये होगा तथा पहाड़ के under employment को पूरक-रोजगार भी इन उद्योगों से मिलेग
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