Posted on 13 Oct, 2011 03:07 PMलोग चलकर, दौड़कर, उछल-कूदकर, रेंगकर, तैरकर या पहियों को घुमाकर आगे जाते हैं। वे चाहे जो भी करें, उनका शरीर लगभग हमेशा जमीन को छूता रहता है। कोई आदमी कूदकर हवा में उड़ता है, यह केवल कुछ क्षणों के लिए होता है और फिर वह दोबारा जमीन पर आ जाता है।
Posted on 27 Jul, 2011 09:21 AMहो सकता है! कल को तुम्हारे हरे-भरे किनारों को बेदखल कर बनवा दिए जाएँ बड़े-बड़े शापिंगमाल और कोई वणिज-वक्रता रोक दे तुम्हारी हवा खड़े कर तुम्हारे आसपास ईमारतों के ढेर यह भी हो सकता है-कल को कोई धन्नासेठ! जोत ले तुम्हारी ज़मीन और रातोंरात वहाँ चमचमाने लगें कई सितारों के होटल
Posted on 24 Jul, 2011 01:42 AMमिश्रित ज्वालामुखी, एक लंबा, शंक्वाकार ज्वालामुखी होता है, जिसका निर्माण जम कर ठोस हुए लावा, टेफ्रा, कुस्रन और ज्वालामुखीय राख की कई परतों (स्तर) द्वारा होता है। मिश्रित ज्वालामुखी को ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि, इनकी रचना ज्वालामुखीय उद्गार के समय निकले मिश्रित पदार्थों के विभिन्न स्तरों पर घनीभूत होने के फलस्वरूप होती है।
Posted on 23 Jul, 2011 04:28 PMइंसान ने प्रकृति पर विजय पाने के सारे हथियार आजमा लिए हैं। मगर आज भी वह इसमें पूरी तरह से असफल रहा है। प्रकृति आज भी किसी न किसी रूप में इस सृष्टि में अपनी प्रचण्ड ताकत का अहसास कराती रहती है। चाहे वह किसी भयंकर तूफान के रूप में हो या भूकंप या फिर ज्वालामुखी के रूप में। इतिहास गवाह है कि इस पृथ्वी पर ज्वालामुखी पर्वतों ने कई सभ्यताओं को पूरी तरह से नष्ट कर दिया।
Posted on 23 Jul, 2011 09:13 AMबड़ी झील! तुम्हारी ऊपरी नीली जल सतह और उसके ऊपर नीला आसमान दोनों के बीच उड़ते परिन्दों से ख्यात चित्रकार जगदीश स्वामीनाथन के कैनवास की उड़ती चिड़िया नीले रंग पर बातचीत में मगन है इसी नीलांश में सालिम अली के पंक्षी-प्रेम पर अपनी बोली-बानी में परिन्दे कर रहे हैं विचार-विमर्श