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किसानों की समृद्धि के लिये खेती का सम्पूर्ण स्वरूप अपनाना जरूरी
Posted on 27 Jul, 2018 02:35 PM
मधुमक्खी पालन, बकरी पालन इत्यादि कृषि से सम्बद्ध ऐसी गतिविधियाँ हैं, जिनसे न केवल देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को सहारा मिलता है, बल्कि किसानों को भी आर्थिक मजबूती मिलती है। खेती की एकीकृत प्रणाली इन सब गतिविधियों को एक साथ जोड़कर विकसित की गई एक पद्धति है जिसमें 2-25 एकड़ जमीन में ही सारे क्रियाकलापों की व्यवस्था की जाती है।
ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था
मत्स्य पालन के नए आयाम (New dimensions of fisheries)
Posted on 27 Jul, 2018 01:07 PM

भारत सरकार द्वारा लक्ष्य निर्धारित किया गया है कि देश के मात्स्यिकी उत्पादन में वर्ष 2020 तक कम-से-कम 50 टन लाख की बढ़ोत्तरी होनी चाहिए। इसके लिये न सिर्फ तकनीकी विकास जरूरी है बल्कि विभिन्न क्षेत्रों तक बुनियादी सुविधाओं को पहुँचाया जाना भी उतना ही आवश्यक है। यही नहीं उपलब्ध संसाधनों का क्षमता के अनुसार समुचित उपयोग सुनिश्चित किया जाना भी इस क्रम में अनिवार्य शर्त है।
मत्स्य पालन
पर्यावरण अनुकूल जैविक खेती
Posted on 26 Jul, 2018 03:20 PM

1965-66 कृषि के क्षेत्र में हरित क्रान्ति की शुरुआत के बाद से देश की बेतहाशा बढ़ रही आबादी की आवश्यकताओं को पूरा

जैविक खेती के फायदे
मिसाल बेमिसाल
Posted on 25 Jul, 2018 02:44 PM


द्वारका वाटर बॉडीज रिवाइवल कमेटी (Dwarka Water Bodies Revival Committee) का प्रयास आखिरकार रंग लाया। कमेटी के सदस्यों ने बिना सरकारी मदद के इलाके के दो तालाबों को जीवन्त रूप देने में सफलता हासिल की है। लेकिन सफलता की यह लड़ाई काफी लम्बी है जिसमें सरकारी महकमें की उदासीनता और कानूनी दाँव-पेंच से भी कमेटी के सदस्यों को रूबरू होना पड़ा है।

डिस्ट्रिक्ट पार्क तालाब सेक्टर 23 द्वारका दिल्ली
तालाब: कश्मीर की लुप्तप्राय विरासत
Posted on 22 Jul, 2018 07:02 PM

खराब रख-रखाव, जनसंख्या के बढ़ते दबाव के साथ ही नए बसाव स्थलों की जरुरत ने कश्मीर में तालाबों को मारने का का

pond
हरित निवेश से करें खेती में हुए नुकसान की भरपाई
Posted on 22 Jul, 2018 02:02 PM

फलदार वृक्षों में अमरूद, जामुन, महुआ, आँवला और अनार के पेड़ खेतों की मेंड़ पर लगाए जा सकते हैं। यह पेड़ पा

Horticulture
जीवन का अर्थ : अर्थमय जीवन
Posted on 18 Jul, 2018 09:30 AM


आजकल अक्सर ऐसी बैठकों में, सभा सम्मेलनों के प्रारम्भ में एक दीपक जलाया जाता है। यह शायद प्रतीक है, अन्धेरा दूर करने का। दीया जलाकर प्रकाश करने का। इसका एक अर्थ यह भी है कि अन्धेरा कुछ ज्यादा ही होगा, हम सबके आसपास।

यह अन्धेरा बाकी समय उतना नहीं दिखता, जितना वह तब दिखता है जब हम अपने मित्रों के साथ ऐसी सभाओं में बैठते हैं। तो दीये से कुछ अन्धेरा दूर होता होगा और शायद आपस में इस तरह से बैठने से, कुछ अच्छी बातचीत से, विचार-विमर्श से भी अन्धेरा कुछ छँटता ही होगा। शायद साथ चाय, कॉफी पीने से भी।

ऐसा कहना थोड़ा हल्का लगे तो इसमें संस्कृत का वजन भी डाला जा सकता है: ओम सहना ववतु, सहनौ भुनक्तु आदि। दीया जलाने का यह चलन कब शुरू हुआ होगा, ठीक कहा नहीं जा सकता। इससे मिलती-जुलती प्रथा ऐसी थी कि जब ऐसी कोई सभा-गोष्ठी होती, अतिथियों के स्वागत में मंच के सामने पहले से ही एक दीया जलाकर रख दिया जाता था।

बिहार में चिन्ताजनक है भूजल स्तर की स्थिति
Posted on 10 Jul, 2018 05:54 PM


नई दिल्ली। बिहार के कई जिलों में भूजल स्तर की स्थिति पिछले 30 सालों में चिन्ताजनक हो गई है। कुछ जिलों में भूजल स्तर दो से तीन मीटर तक गिर गया है।

एक ताजा अध्ययन के अनुसार, भूजल में इस गिरावट का मुख्य कारण झाड़ीदार वनस्पति क्षेत्रों एवं जल निकाय क्षेत्रों का तेजी से सिमटना है। आबादी में बढ़ोत्तरी और कृषि क्षेत्र में विस्तार के कारण भी भूजल की माँग बढ़ी है।

वर्ष 1984 से 2013 के दौरान मानसून से पहले और बाद में भूजल स्तर की स्थिति
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