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जल संरक्षण में बालको की पहल
Posted on 27 Sep, 2009 08:00 AM

अब तो ग्रीष्म ऋतु की शुरूआत होते ही शहरों और गांवों में पानी के लिए हाहाकार मच जाता है। इस वर्ष भोपाल जैसे सूखा एवं जल समस्या से पीड़ित देश के अनेक हिस्सों में पानी के लिए लोगों के बीच झगड़े हुए। कुछ को तो जल समस्या की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। ये घटनाएं स्पष्ट रूप से इस बात की ओर संकेत है कि यदि हम अब भी न चेते तो फिर पछतावे के लिए भी समय न होगा।
आज भी खरे हैं तालाब
Posted on 26 Sep, 2009 08:10 PM

बुरा समय आ गया था।
भोपा होते तो जरूर बताते कि तालाबों के लिए बुरा समय आ गया था। जो सरस परंपराएं, मान्यताएं तालाब बनाती थीं, वे ही सूखने लगी थीं।
दूरी एक छोटा- सा शब्द है। लेकिन राज और समाज के बीच में इस शब्द के आने से समाज का कष्ट कितना बढ़ जाता है, इसका कोई हिसाब नहीं। फिर जब यह दूरी एक तालाब की नहीं, सात समुंदर की हो जाए तो बखान के लिए क्या रह जाता है?
चांद पर पानी
Posted on 26 Sep, 2009 07:10 AM

सितंबर की शुरूआत भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए बहुत दुखद थी. समय से पहले ही चंद्रयान-1 बेकार हो गया और उसने काम करना बंद कर दिया. २९ अगस्त को जब चंद्रयान-१ परियोजना को समाप्त होने की घोषणा की गयी तब तक चंद्रयान द्वारा भेजी गयी तस्वीरों और आंकड़ों का विस्तृत अध्ययन नहीं किया जा सका था.
बड़ी सिंचाई परियोजनाओं के कार्य प्रदर्शन की चौकाने वाली कहानी
Posted on 24 Sep, 2009 09:20 PM

15 सालों से नहरों द्वारा सिंचित इलाकों में कोई बढ़ोतरी नहीं

 

पानी के लिये स्थापित प्रतिमानों का आपसी संघर्ष
Posted on 24 Sep, 2009 06:40 PM

(पानी एक सामाजिक सम्पत्ति है या आर्थिक सम्पत्ति? प्रतिमानों की इस भीषण लड़ाई के लिये युद्धक रेखाएं खींची जा रही हैं)

हरित शौचालयः ईको फ्रैंडली टॉयलेट
Posted on 24 Sep, 2009 06:32 PM
पर्यावरण की सफ़ाई के लिये अपशिष्ट को उपयोगी संसाधन में बदलना ही नये युग का प्रतिमान गढ़ना है।
जलक्षेत्र सुधार एवं ढाँचागत बदलाव की समीक्षा
Posted on 24 Sep, 2009 12:45 PM
पानी की फिजूलखर्ची का प्रमुख कारण है कि लोगों को यह लगभग मुफ्त के भाव उपलब्ध करवाया जाता है। इसलिए मुफ्त में पानी की आपूर्ति को लोग अपना अधिकार समझते हैं। पानी की फिजूलखर्ची पर रोक लगाने का तरीका यह है कि पानी की दरें लागत खर्च वापसी के हिसाब से तय की जाएँ। संचालन और संधारण खर्च के साथ निजी निवेश पर सुनिश्चित लाभ भी प्राप्त होना चाहिए। गत दो दशकों से विभिन्न स्तरों पर अखबारों, विचार गोष्ठियों और सभाओं में `पानी´ पर बहस जारी है। विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, एशियाई विकास बैंक, बहुराष्ट्रीय कंपनियों, अनेक देशों कीसरकारों, संचार-माध्यमों आदि सभी ने इस मुद्दे को अत्याधिक महत्व दिया है। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और शोध-प्रबंधों में यह विषय छाया रहा है। इसकी वजह दुनिया के कई विकासशील देशों में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय एजेंसियों द्वारा प्रायोजित `सेक्टर रिफार्म´ लागू किया जाना रहा हैं। इन परिवर्तनों के संदर्भ में बुनियादी सुविधाओं की कमी और उनके कारणों को समझने की आवश्यकता है।
जल का प्रमुख स्त्रोत-कुआं
Posted on 24 Sep, 2009 08:16 AM
महानगर या नगरों में कुआं का महत्व उतना नहीं है, जितना कि ग्रामिण क्षेत्रों में है। यह हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है और जल का प्रमुख स्त्रोत है। वास्तुशास्त्र में कुएं को पर्याप्त जल की प्राप्ति कैसे होती रहेगी, इसके बारे में बताया गया है।
मौसम डाटा 2004-2008
Posted on 23 Sep, 2009 09:47 PM
एक आरटीआई याचिका के जवाब में भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने अपनी वेबसाइट पर देश के प्रत्येक जिले के लिए मासिक स्तर पर पिछले कुछ एक सालों के वर्षा के आंकड़े (रेनफॉल डेटा) उपलब्
कोसी परियोजना- ऐतिहासिक सिंहावलोकन
Posted on 23 Sep, 2009 01:08 PM
कोसी नदी बेसिन मानव अधिवास के लिये प्राचीन काल से ही उपयुक्त जगह है। 12-13वीं शताब्दी में पश्चिम भारत की कई नदियों के सूख जाने के कारण वहां के पशुचारक समाज के लोग कोसी नदीबेसिन में आकर बस गये। कोसी नदी घाटी में बढ़ती जनसंख्या और कोसी नदी के बदलते प्रवाह मार्ग के बीच टकराहट होने लगी। नदी की अनियंत्रित धारा को लोग बाढ़ समझने लगे। बाढ़ नियंत्रण के लिये तात्कालीन शासकों ने कदम उठाये।1 सबसे पहले 12वीं
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