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सिमटती दुनिया वन्य जीवों की त्रासदी बना इंसान
Posted on 16 Oct, 2012 01:22 PM जन्म से खूंखार होने के बाद भी बाघ इंसान पर डर के कारण हमला नहीं क
संकट में काजीरंगा और कार्बेट अभ्यारण्य
Posted on 15 Oct, 2012 05:39 PM देश में अभ्यारण्यों की दुर्दशा देखने के बाद सर्वोच्च न्यायालय को दखल देना पड़ा है। कभी-कभार बाढ़ और आग से होने वाले नुकसान के अलावा भी कई मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। शिकारियों की घुसपैठ और पर्यटन एजेंसियों की दखलंदाजी ने संकट को और गहरा किया है। काजीरंगा और जिम कार्बेट अभ्यारण्यों के कुप्रबंधन का जायजा ले रहे हैं शेखर पाठक।
विस्थापन का खतरा
Posted on 13 Oct, 2012 04:58 PM बढ़ते औद्योगीकरण, बांध परियोजनाओं तथा खनन की वजह से विस्थापन का संकट गहराता जा रहा है। जिस रफ्तार से देश विकास और आर्थिक लाभ की दौड़ में भागे जा रहा है उसी रफ्तार से लोग विस्थापित होने का दंश भी झेल रहे हैं। उद्योगों तथा परियोजनाओं का शान्ति से प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस प्रशासन ऐसे हिंसक अत्याचार कर रहा है गोया कि प्रशासन ने लोगों के प्रति सब जिम्मेदारियों से पल्ला ही झाड़ लिया है। जंगल मे
पर्यावरणीय शरणार्थियों की बढ़ती संख्या
Posted on 12 Oct, 2012 03:58 PM अमेरिकन एसोसिएशन फॉर द एडवांसमेंट ऑफ साइंस के विशेषज्ञों ने गत वर्ष अनुमान लगाया था कि कृषि में आ रही
हर हाल में हानिकर खुला शौच
Posted on 09 Oct, 2012 11:32 AM महात्मा गांधी और विनोबा भावे ने कभी सुचिता यानि स्वच्छता से आत्मदर्शन की कल्पना की थी। ‘शुचिता से आत्मदर्शन’, जिसमें ‘शौचात् स्वांगजुगुप्सा’ तक भौतिक शुचिता से लेकर आध्यात्मिक शुचिता, आत्मानुभूति तक। जिससे भारत के जन-जीवन में शुचिता का दर्शन होगा। वह मानते थे कि तन व मन दोनों जब तक स्वच्छ नहीं होंगे तब तक धर्म, दर्शन व भगवान की बात करना ही बेमायने है। आज से करीब 90 साल पहले गॉंधी ने ग्राम स्वच्छता अभियान की शुरुआत की थी। उन्होंने यह बहुत पहले ही समझ लिया था कि देश में कई एक महामारियों का एक मात्र कारण है-खुले में शौच और घरों के आसपास फैली बजबजाती गंदगी। उस समय हैजा, कालरा, चिकन पॉक्स जैसी जानलेवा बीमारियों से कभी-कभी गांव की पूरी की पूरी आबादी ही साफ हो जाती थी। यही कारण था कि गांधी ने ताउम्र सफाई अभियान की न केवल वकालत की बल्कि गंदी से गंदी बस्ती में जाकर पाखाना साफ किया और लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक किया। वह खुले में शौच के घोर विरोधी थे। वह गांव-गांव जाकर लोगों को खुले में शौच न करने व साफ-सफाई के विषय में वैज्ञानिक ढंग से समझाते थे।

वैज्ञानिकों के मुताबिक एक मक्खी एक दिन में कम से कम तीन किलोमीटर तक जरूर उड़ती है। इस तरह से मक्खियां एक बस्ती से दूसरी बस्ती, आसपास, खेत व जंगलों का सफर करती रहती हैं। मक्खियां मल पर बैठती हैं और फिर उड़ कर घरों में पहुंच कर खाने-पीने की चीजों पर बैठती हैं। उनके पैरों व पंखों में मल चिपका हुआ रहता है जो खान-पान की चीजों में जाकर घुल जाता है। इससे हैजा, कालरा व डायरिया जैसी जानलेवा बीमारी फैलने में देर नहीं लगती।

सोच, शौच और शौचालय
Posted on 09 Oct, 2012 10:41 AM खुले में शौच तो हमें हर हाल में रोकना ही होगा। खुले में पड़ी टट्टी से उसके पोषक तत्व (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम) कड़ी धूप से नष्ट होते हैं। साथ ही टट्टी यदि पक्की सड़क या पक्की मिट्टी पर पड़ी है तो कम्पोस्ट यानी खाद भी जल्दी नहीं बन पाती और कई दिनों तक हवा, मिट्टी, पानी को प्रदूषित करती रहती है। मानव मल में मौजूद जीवाणु और विषाणु हवा, मक्खियों, पशुओं आदि तमाम वाहकों के माध्यम से फैलते रहते हैं और कई रोगों को जन्म देते हैं। सुबह-सुबह गांवों में अद्भुत नजारा होता है। रास्तों में महिलाओं की टोली सिर पर घूंघट डाले सड़कों पर टट्टी करती मिल जाएगी। पुरुषों की टोली का भी यही हाल होता है। टोली जहां-तहां सकुचाते, शर्माते और अपने भाई-भाभियों, काका-काकियों से अनजान बनते मलत्याग को डटी रहती है। हिंदुस्तान की बहुत सी भाषाओं में शौच जाने के लिए ‘जंगल जाना’, ‘बाहर जाना’, ‘दिशा मैदान जाना’ आदि कई उपयोगी शब्द हैं। झारखंड में खुले में ‘मलत्याग’ को अश्लील मानते हुए लोगों में एक ज्यादा प्रचलित शब्द है ‘पाखाना जाना’। पर जनसंख्या बहुलता वाले इस देश में न गांवों के अपने जंगल रहे और न मैदान ही। अब तो गांवों को जोड़ने वाली पगडंडियां, सड़कें, रेल की पटरियां, नदी-नालों के किनारे ही ‘दिशा मैदान’ हो गए हैं। परिणाम; गांव के गली-कूचे, घूरे-गोबरसांथ और कच्ची-पक्की सड़कें सबके सब शौच से अटी पड़ी हैं।
10 साल में खत्म करेंगे खुले में शौच
Posted on 08 Oct, 2012 06:01 PM केंद्रीय ग्रामीण विकास, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री जयराम रमेश गांवों को स्वच्छ बनाने के अभियान में जोर-शोर से जुटे हैं। वे लगातार लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जब तक लोग खुले में शौच करते रहेंगे, देश कुपोषण और दूसरी बड़ी बीमारियों से मुक्त नहीं हो पायेगा। इस संदर्भ में 3 अक्टूबर को वर्धा से निर्मल भारत यात्रा का शुभारंभ किया गया है। पेश है अंजनी कुमार सिंह से उनकी बातचीत के मुख्य अंश
जिन्हें खाना नसीब नहीं वे शौचालय कैसे बनायेंगे
Posted on 08 Oct, 2012 05:30 PM सुलभ शौचालय के रूप में देश के शहरों और कस्बों को सार्वजनिक शौचालय का बेहतरीन विकल्प पेश करने वाले बिंदेश्वशर पाठक किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्हें इस जनकल्याणकारी योजना को व्यवसाय का रूप दे दिया है। पेश है ग्राणीण स्वच्छता के मुद्दे पर उनसे विशेष बातचीत

एक स्वच्छ शौचालय का मानव जीवन में कितना महत्व है?
स्वच्छ भोजन जीवन के लिए जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी स्वच्छ शौच की व्यवस्था भी है। मल त्याग की अव्यवस्थित व्यवस्था कई तरह की बीमारियों को जन्म देती है। बीमारियों की वजह से न सिर्फ दैहिक नुकसान होता है, बल्कि आर्थिक हानि भी होती है। शौचालय की व्यवस्था होने पर सामाजिक, शारीरिक और आर्थिक तीनों ही रूप में सशक्त होते हैं। इसके साथ ही यह प्रदूषण मुक्ति में भी सहयोगी है। मानव मल खाद बन कर जहां खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में मददगार होता है, वहीं इससे बायोगैस का निर्माण भी होता है।

खजूर की पत्तियों से साफ होगा गंदा पानी
Posted on 08 Oct, 2012 01:07 PM खजूर की पत्तियों से अस्पतालों से निकलने वाले गंदे पानी से औषधीय रसायन निकाला जा सकता है। यह नया शोध ओमान के वैज्ञानिकों ने किया है। ‘गल्फ न्यूज’ समाचार पत्र के मुताबिक मस्कट के ‘सुल्तान काबूज यूनिवर्सिटी’ के रसायन विभाग की एक परियोजना के मुख्य अनुसंधानकर्ता अल सईद अल शाफी ने अस्पतालों के गंदे पानी की सफाई के लिए रासायनिक ईकाई की स्थापना के उद्देश्य से यह शोध शुरू किया। अल शाफी का कहना है कि खजूर क
बिजली उत्पादन की खामियां
Posted on 06 Oct, 2012 03:08 PM बिजली उत्पादन के अनेकानेक तरीकों से प्रयास किया जा रहा है। ‘थर्मल पॉवर सिस्टम, हाइडिल सिस्टम, न्यूक्लियर सिस्टम’ इन सभी से ही ज्यादातर बिजली हमें प्राप्त होती है। पर इन तीनों के सीमाएं और दिक्कतें हमारे सामने हैं। जरूरी हो गया है कि इन तीनों से बाहर जाकर ऊर्जा जरूरतों के लिए बिजली को पहचाना जाए। पवनचक्की, सौर ऊर्जा, ज्वार-भाटा ऊर्जा तथा गोबर गैस आदि तरीकों को मजबूत करना होगा। हर हाल में हमें बि
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