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नावें
Posted on 04 Oct, 2013 04:09 PM नावों ने खिलाए हैं फूल मटमैले
क्या उन्हें याद है कि वे कभी पेड़ बनकर उगी थीं

नावें पार उतारती हैं
खुद नहीं उतरतीं पार
नावें धार के बीचोंबीच रहना चाहती हैं

तैरने ने दे उस उथलेपन को समझती हैं ठीक-ठाक
लेकिन तैरने लायक गहराई से ज्यादा के बारे में
कुछ भी नहीं जानतीं नावें

बाढ़ उतरने के बाद वे अकसर मिलती हैं
छतों या पेड़ों पर चढ़ी हुई
नदी
Posted on 04 Oct, 2013 04:08 PM हमने घी और दूध से भरी नदियों का स्मरण किया
और उन्हें मल और मूत्र से भर दिया
नदी की सतह पर अब सिर्फ कालिख और तेल है
सूरज तक नहीं देख पाता उसमें अपना चेहरा
मछलियों का दम कब का घुट चुका
मर चुकी है नदी
माझी तुम किस खुशी में
ट्रांजिस्टर बजा रहे हो इस लाश के किनारे
गा सको तो गाओ हइया ओ हइया वाला गीत
याद आएँ दृश्य
बचपन में देखी हुई फिल्म के
पार
Posted on 04 Oct, 2013 04:06 PM पुल पार करने से
पुल पार होता है
नदी पार नदी होती

नदी पार नहीं होती नदी में धँसे बिना

नदी में धँसे बिना
पुल का अर्थ भी समझ में नहीं आता
नदी में धँसे बिना
पुल पार करने से
पुल पार नहीं होता
सिर्फ लोहा-लंगड़ पार होता है

कुछ भी नहीं होता पार
नदी में धँसे बिना
न पुल पार होता है
न नदी पार होती है।

शाप
Posted on 04 Oct, 2013 04:04 PM पेड़ शाप देते हैं

बचे हुए पेड़ धीरे-धीरे अपने पैरों के पास
रेतीली जमीन या पहाड़ों की नंगी रीढ़ सरकते आते देखते हैं
और समझ जाते हैं

प्रतीक्षा करते हैं कि कटकर गिरने से पहले
अपने शरीरों से उठती अंतिम गंध को नहीं कोई तो
सूख जाने वाली उनकी पत्तियाँ ही सूँघे

बादल, नदियाँ, जानवर और चिड़ियाँ
सुनते हैं पेड़ों की आखिरी साँसों को
कहा नदी ने
Posted on 04 Oct, 2013 04:03 PM चट्टानों से चूर-चूर होने का नाटक
चट्टानों को बहलाने के लिए नहीं है

पाला पड़ा
जनम लेते ही
चट्टानों से

पानी की चट्टानें भी
चट्टाने ही हैं

फिर आते गिरि-गह्वर, समतल
और विषम भी

आएगी फिर कोख
कंदरा-मग्न कपिल भी
फिर आएँगे सगर-पुत्र
फिर पछताएगी
पूरी वंशावली...और फिर
दुहराएगी वही कथा

फिर?
इतिहास की एक नदी को
Posted on 04 Oct, 2013 04:02 PM इतिहास की एक नदी को
एक बिछुड़े लोगों के शहर के किनारे
मैंने पाया कि गंगा है
गंगा नदी का अवशेष, जल-खँडहर।

बाढ़ आई होगी के बाद
बिछुड़े लोगों के एक शहर में
मिल जाने वाले रास्ते
खो जाने वाले रास्ते हैं।
बिछुड़ों को ढूँढ़ने
मैं इन्हीं खो जाने वाले रास्तों में हूँ
जो नहीं मिले थे
उनको पाने
स्वयं अपने नहीं मिलने में
आदिवासियों को मिटाने की साजिश
Posted on 04 Oct, 2013 12:20 PM आदिवासी समाज के बारे में जितनी गहरी समझ डॉ.
गंगा जैसी मां और कहां
Posted on 04 Oct, 2013 10:27 AM गंगा के किनारे में तुलसी का रामचरित, आदिगुरु शंकराचार्य का गंगाष्टक
Ganga
नदी के कुछ अदृश्य खँडहर हैं जलवाष्प
Posted on 02 Oct, 2013 04:26 PM नदी के कुछ अदृश्य खँडहर हैं जलवाष्प
इतिहास की नदी हैं, गंगा, ब्रह्मपुत्र, जमुना, व्यास
एक मनुष्य नदी में स्नान करता है
यह सभ्यता है
नदी के किनारे एक स्त्री कपड़े धोती है
यह सभ्यता है
एक मृत लड़का नदी में
संस्कार की तरह
प्रवाहित होता है
बरसात नदी के खँडहर का दृश्य है
जहाँ नदी नहीं है
बरसात में भीगना पर्यटन है।
एक सूखी नदी
Posted on 02 Oct, 2013 04:23 PM एक सूखी नदी
दूसरे वर्ष भी सूखी रही
तो रेत के बहुत नीचे
वह और सूक जाएगी,
सूखी नदी के नीचे
सूखी नदी की परतें हैं।

कई वर्षोंसे ऐसी सूखी नदी के
किनारे के गाँव में
जैसे अंततः रहता हुआ
गाँव का सबसे बूढ़ा आदमी
नदी की रेत की तह से
आखिरी में ढूँढ़ लेगा
एक पारदर्शी फॉसिल शिला
जिसमें चिन्हित होगी
नदी की वनस्पति
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