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पर्यावरण संबंधी पत्रकारिता प्रतियोगिता
Posted on 08 Jul, 2014 04:20 PM भारत जर्मनी पर्यावरण भागीदारी कार्यक्रम (Indo-German Environment Partnership -IGEP Programme) की ओर से आपका हार्दिक अभिनन्दन।

हमें आपको यह सूचित करते हुए हार्दिक प्रसन्नता हो रही है की पर्यावरण के मुद्दों के बेहतर मीडिया कवरेज को प्रोत्साहित करने के लिए, जी आइ जेड (German International Cooperation-GIZ), ICLEI-South Asia, एशियन कालेज ऑफ़ जर्नलिज्म (Asian College of Journalism), द थर्ड पोल (The Third Pole) और देउत्स्चे वेल्ले अकादमी (Deutsche Welle Academy) द्वारा सयुंक्त रूप से एक पर्यावरण संबंधी पत्रकारिता प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। इस प्रतियोगिता में IFAT India 2014 (http://www.ifat-india.com/) का भी सहयोग है तथा जर्मन दूतावास का प्रश्रय प्राप्त है। जर्मन दूतावास की ओर से इस प्रतियोगिता में 'स्वछ गंगा' पर एक विशेष पुरस्कार की घोषणा की गई है।

हमें विश्वास है की आपके माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोग जिन्होंने गंगा से संबंधित किसी भी प्रकार का मीडिया कवरेज 1 जुलाई 2013-30 जून 2014 की बीच किया है, वो इस प्रतियोगिता में भाग ले सकेंगे। इस प्रतियोगिता में भाग लेने की लिए कृपया www.igep.in पर जाएं। प्रविष्टियां 15 अगस्त 2015 तक ऑनलाइन जमा की जा सकती है।
समग्र नदी-संस्कृति एवं पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन के लिए 14 नदी-सूत्र
Posted on 08 Jul, 2014 01:59 PM 40-50 साल पहले बिना किसी फंडिंग, प्रोजेक्ट या एक्शन प्लान के हमारी नदियां साफ थीं, निर्मल थीं, अविरल थीं और हमारे गांव के लाखों किसान अपनी जिम्मेदारी को अपने कंधो पर लेकर पानी का काम करते रहे। विकास ने हमारी पारंपरिक समझ और हिस्सेदारी को चुनौती दी और आज हम सब नदियों में साफ पानी के लिए तरस रहे हैं। नदी, नाव और गांव की संस्कृति की समझ पर विश्वास कर हम अगर जन भागीदारी से योजना बनाएं और सामाजिक जागरूकता से लोगों को जोड़े तो हम काफी हद तक गंगा नदी को अविरल, निर्मल और नैसर्गिक बना सकते हैं। नदियों को पहले बेजान कर उन्हें पुनर्जीवित करने की कोशिश के बजाय, हमें उन्हें शुरू से ही स्वस्थ रखना होगा। नदियों की रक्षा अपने बच्चों की रक्षा करने जैसी है। हम सबको स्वस्थ रहने के लिए, हमारी नदियों का स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है।

भारत की अधिकांश नदियां मृत हो रही है, यह हमारे अस्तित्व के लिए एक बुरा संकेत है। एक नदी की स्थिति पारिस्थितिक तंत्र की स्थिति को प्रतिबिंबित करती है, जिसका हम एक अविभाज्य हिस्सा है और यह वास्तविकता है कि यदि हमारी नदियां मृत होती रही तो हम भी अधिक काल तक जीवित नहीं रहेंगे।

एक नदी कैसे मृत हो जाती है? अत्यधिक जल के दोहन से नदियां सूख रही हैं अथवा सूखाग्रस्त होने के कगार पर हैं , नदियों में अपशिष्ट एवं विषाक्त जल प्रवाहित करने से नदियों में हर प्रकार का जीवन नष्ट हो रहा है , इसके जल को हमने इतना गंदा कर दिया है की हम अब इनके किनारों पर स्नान-ध्यान, मनोरंजन, तथा धार्मिक अनुष्ठान को करना बंद कर दिया है।
कृषि को देनी होगी प्राथमिकता
Posted on 07 Jul, 2014 03:01 PM

कृषि के विकास और उत्पदकता बढ़ाने के मकसद से तीन-चार संगोष्ठियां तो लगभग हर रोज होती हैं, पर क्य

मानसून के लिए नदियों के जलस्तर की होगी निगरानी
Posted on 07 Jul, 2014 01:27 PM

दक्षिणी राज्यों में कृष्णा घाटी के दक्षिण में बहने वाली कावेरी, पेन्नार और अन्य नदियों की व्याप

पर्यावरण की अनदेखी
Posted on 07 Jul, 2014 11:23 AM पोलावरम संबंधी अध्यादेश के बाद, नर्मदा बांध की ऊंचाई सत्रह मीटर बढ़
पाणी दवा घणी अनमोल
Posted on 07 Jul, 2014 10:55 AM कई पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में पानी का उपयोग एक औषधि के रूप कि
water
पाणी देवे दर्द घणा
Posted on 07 Jul, 2014 10:06 AM देश के कई हिस्से आज फ्लोरोसिस प्रभावित हैं। इन इलाकों में आप 8 साल
waterborne disease
कबीर व रहीम के पानीदार दोहे
Posted on 07 Jul, 2014 09:43 AM
पानी केरा बुदबुदा, अस मानुष की जात।
देखत ही छिपि जाएगा, ज्यों तारा परभात।।

संगति भई तो क्या भया, हिरदा भया कठोर।
नौनेजा पानी चढ़ै, तऊ न भीजै कोर।

दान किए धन ना घटै, नदी ना घटै नीर।
अपनी आंखों देखिए, यों कथि गए ‘कबीर’।।

ऊंचै पानी ना टिकै, नीचै ही ठहराय।
नीचा होय सो भरि पिवै, ऊंचा प्यासा जाए।।
जल, जल ही नहीं एक गुणकारक औषधि भी
Posted on 06 Jul, 2014 04:21 PM
रात में नींद के समय लगभग 6 घंटे तक हर व्यक्ति के शरीर में कम-
स्वच्छ पेयजल से वंचित आधी आबादी
Posted on 06 Jul, 2014 04:03 PM
पानी की जरूरत मोटे तौर पर तीन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हो
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