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पिछली सदी के पचास के दशक के आखिरी दिनों गाँधी जी के राजनीतिक उत्तराधिकारी और आजाद भारत के
आज हम जिस युग में जी रहे हैं, वह मानव निर्मित युग है, इस युग में किसी भी बदलाव को देख पान
शिव अलकों की पावन शोभा
अमृत धारा गंगे
मोक्षदायिनी पतितपाविनी
त्रिपथगामिनि गंगे
शैलसुता तुम त्रिविध ताप से
करती थीं उद्धार
सदा निर्मला बहती थी
अब हो विरल धार गंगे
जीवनदायिनी तुमसे बनता था
स्वर्णिम प्रभात
भारत भू की अटल आस्था
अब बदरंग हुई गंगे
मनुज की अमिट लालसा ने
लूटा गंगे तुमको
परेशान सी रहती है अब