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अल्मोड़ा जिला
नाली गाँव में जल स्रोत अभयारण्य विकास
Posted on 03 Sep, 2015 03:36 PMजल स्रोत के जल समेट क्षेत्र का समुचित संरक्षण व संवर्धन करने के साथ ही नौले व हैंडपम्प में पानी के प्रवाह में गुणात्मक परिवर्तन आया है। ग्रामवासियों के अनुसार वर्ष 2003 में उक्त नौले में वर्ष भर पानी बना रहा तथा इस वर्ष हैंडपम्प से औसतन 1200 लीटर पानी प्रतिदिन प्राप्त हुआ। जल समेट क्षेत्र में मलमूत्र विसर्जन करने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने के साथ ही गाँव में पेयजल सम्बन्धित बीमारियाँ भी काफी कम हुई हैं।
नाली गाँव अल्मोड़ा जिले के धौला देवी ब्लॉक में अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ मार्ग पर दन्यां बाजार के निकट बसा एक छोटा सा गाँव है। इस गाँव में 17 हरिजन परिवार निवास करते हैं, इस गाँव के लिये पेयजल की कोई सरकारी योजना नही है। गाँववासी पानी की दैनिक जरूरतों की पूर्ति गाँव के निकट स्थित नौले से करते रहे हैं। ग्रामवासियों के अनुसार विगत 15 वर्षों से इस सदाबहार नौले का जल प्रवाह निरन्तर कम होता गया तथा वर्ष 1999 तक यह नौला गर्मियों में पूर्ण-रुप से सूख गया। इस नौले के सूखते ही गाँववासियों को पेयजल का गम्भीर संकट उत्पन्न हो गया तथा उन्हें पेयजल हेतु गाँव से डेढ़ किलोमीटर नीचे स्थित दूसरे स्रोत पर निर्भर होना पड़ा। इतनी दूर से पानी ढोने में महिलाओं को 2-3 घण्टे का समय लगने लगा। साथ ही साथ पानी ढोने से उनके सिर में निरन्तर दर्द रहने लगा।
गाँव में पानी की समस्या को दूर करने के लिये ग्राववासियों ने परती भूमि विकास समिति, नई दिल्ली व कस्तूरबा महिला उत्थान मण्डल, दन्या के साथ मिलकर विकल्प ढूँढ़ने प्रारम्भ किये। चूँकि इस गाँव के आस-पास कोई दूसरा उचित जल स्रोत उपलब्ध नहीं था इस कारण इस गाँव में केवल हैंडपम्प व बरसाती जल एकत्रण टैंक ही मुख्य समाधान निकले।
पड़ाई धारा संरक्षण एवं संवर्धन-एक पहल
Posted on 03 Sep, 2015 03:18 PMवर्तमान में जल स्रोत के नियमित प्रबन्धन व रखरखाव से प्रत्येक परिवार को बिना इन्तजार किये शुद्ध पेयजल मिल रहा है तथा पानी के संग्रहण हेतु टैंक का प्रयोग करने से महिलाओं के समय की बचत हो रही है, साथ ही साथ पशुओं के पानी पीने की अलग से व्यवस्था करने से पशुओं को भी शुद्ध जल प्राप्त हो रहा है।
पड़ाई गाँव अल्मोड़ा जिले के धौलादेवी ब्लाक में स्थित एक छोटा से गाँव है जिसमें रहने वाले परिवारों की कुल संख्या 23 है। इस गाँव का एक मात्र जल स्रोत गाँव से तीन सौ मीटर नीचे की तरफ स्थित है। इस स्रोत पर पड़ाई के 23 परिवारों के अलावा निकटवर्ती गाँव खूना के 20 परिवार गर्मियों में पेजयल एवं अन्य घरेलू उपयोग हेतु निर्भर रहते हैं। ग्रामवासियों के अनुसार 50 वर्ष पूर्व यह स्रोत नौले के रूप में था जो कि भू-स्खलन से दब गया, जिसे बाद में खोद कर धारा बना दिया गया। किन्तु इस धारे की निरन्तर उपेक्षा एवं कुप्रबन्धन के कारण इसमें पानी का प्रवाह काफी कम हो गया था, जिससे गाँव में जल संकट काफी गहरा गया था। गाँव का एक परिवार जब अपने जानवरों को पानी पिलाकर लाता था तभी दूसरा परिवार अपने जानवरों को पानी पिलाने जा पाता था। स्रोत के आस-पास कीचड़ व गन्दगी हो जाने के कारण गर्मी के मौसम में अनेक बीमारियाँ फैल जाती थी।जरूरी है विकास और पर्यावरण में संतुलन
Posted on 05 Aug, 2014 09:17 AMजिस देश के सामने गरीबी दूर करने और करोड़ों लोगों की भोजन से लेकर ऊरबड़ी संभावनाएं हैं हिमालय की परंपरा में
Posted on 30 Mar, 2013 12:35 PM औपनिवेशिक काल में अंग्रेजी प्रशासकों ने तराई-भाबर क्षेत्र में सिसंकट में जल योद्धा बनीं बसंती
Posted on 18 Dec, 2012 03:28 PMउत्तराखंडवासियों के लिए जीवनदायिनी मानी जाने वाली कोसी नदी और क्षेत्र के वनों पर मंडराते खतरे के बादल हटाने के लिए बसंती के अभियान ने रंग दिखाया।अल्मोड़ा को पानी की जरूरत कोसी नदी से पूरी होती है। कोसी वर्षा पर निर्भर नदी है। गर्मियों में अक्सर इस नदी में जल का प्रवाह कम हो जाता है। उस पर से वन क्षेत्र में आई कमी से स्थिति बेहद गंभीर हो जाती है। बसंती इन तमाम समस्याओं को देख-समझ रही थीं। उन्हें महसूस हुआ कि अगर जंगलों की कटाई नहीं रोकी गई और जंगलों में लगने वाली आग को फैलने से नहीं रोका गया तो दस वर्ष में कोसी का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। ऋषि कश्यप ने सहस्त्राब्दी पहले पानी और जंगलों के बीच सहजीवी रिश्ते की बात प्रतिपादित की थी। कहने का मतलब यह है कि अगर जंगल रहेंगे तभी नदी का अस्तित्व भी रहेगा। उत्तराखंड में कोसी नदी जीवनरेखा पानी जाती है लेकिन जंगलों की बेतहाशा कटाई और शहरीकरण ने पानी संग्रह करने के कई परंपरागत ढांचों को बर्बाद कर दिया। कई जल स्रोत सूख गए। इसका असर हुआ कि शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक में जल संकट की स्थिति पैदा हो गई। लोगों की प्यास बुझाना मुश्किल होने लगा। हालांकि विपदा की इस घड़ी में बसंती नामक एक जल योद्धा ने नदी जल संरक्षण की कमान संभाली और जंगलों की रक्षा का प्रण किया।
नासमझी में परम्परागत कृषि को नष्ट कर रही है सरकार
Posted on 07 Feb, 2012 01:37 PMमूलतः जैविक प्रदेश उत्तराखंड का कृषि विभाग किसानों को रासायनिक उर्वरक मुफ्त में बाँट रहा है। बगैर किसी सार्वजनिक चर्चा या सूचना के यह प्रसाद ‘पोषक सुरक्षा हेतु तदन्य मोटा अनाज विकास पहल’ के अंतर्गत चुपचाप बाँटा जा रहा है। किसानों को प्रदर्शन के तौर पर डी.ए.पी., यूरिया, जिंक जैसे रासायनिक उर्वरकों के मिनीकिट मुफ्त दिए जा रहे हैं। 2011-2012 के लिए पूरे उत्तराखण्ड में मंडुवा के रु. 3 लाख (प्रति हे.जंगल की सुरक्षा का संकल्प
Posted on 08 Sep, 2011 11:02 AMलक्ष्मी आश्रम की बसंती बहन का नाम कौशानी, अल्मोड़ा, उत्तरांचल में जाना पहचाना है। जाने भी क्यों नहीं जब उनकी प्रेरणा से इस वक़्त कौशानी और अल्मोड़ा के आस-पास के गांवों में लगभग 200 महिला मंगल दल चल रहे हैं। प्रत्येक दल में 10-15 महिलाएं हैं। यह महिलाएं गांव में सुरक्षा प्रहरी की तरह काम करती हैं। हर गलत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने से लेकर हर सही कार्य के साथ खड़े होने का काम। महिला मंगल दल स्वयं सेवी मआफत में अल्मोड़ा
Posted on 01 Jan, 2011 10:00 AMअठारह अगस्त को बागेश्वर जिले के सुमगढ़ में बादल फटने से सरस्वती शिशु मंदिर में जिंदा दफन हुए १८ मासूमों को अभी लोग भूले भी नहीं थे कि एक माह बाद ही प्रकृति फिर प्रलय लेकर आई। इस बार बादल कहर बन कर अल्मोड़ा जिले पर टूटा। यहां भी १८ तारीख लोगों के लिए आफत का दिन बन गई। मूसलाधार बारिश ने जिले में भारी तबाही मचा दी। जिसमें साठ से भी अधिक लोग मौत के मुंह में समा गए जबकि सैकड़ों लोग गंभीर रूप से द्घा
कोसी: स्नेह के स्पर्श से जी उठी
Posted on 30 Dec, 2010 12:54 PMइंसानी करतूतों से पल-पल मरती कोसी के लिए उम्मीद की लौ करीब-करीब बुझ चुकी थी। कभी कोसी नदी की इठलाती-बलखाती लहरों में मात्र स्पंदन ही शेष था। यह तय था कि नदी को जीवनदान देना किसी के वश में नहीं। इन हालात में कोसी को संजीवनी देने का संकल्प लिया इलाके की मुट्ठीभर ग्रामीण महिलाओं ने। नतीजतन आज कोसी के आचल फिर लहरा रहा है। आसपास के इलाके में हरियाली लौट आई है।